शादी में ईमानदारी बुनियादी जरूरत है, लेकिन हम इस नींव के खिसकने के बाद भी शादी को बचाए रखने में यकीन रखते हैं. हमारी अदालतें, हमारा समाज सब शादी को बचाए रखने में यकीन रखते हैं, क्योंकि तमाम मतभेदों के बावजूद सुबह लड़तेझगड़ते पतिपत्नी शाम को फिर एक हो जाते हैं. कई जोड़े तो तलाक की सीमारेखा को छूने के बाद भी इस कदर एक हो जाते हैं कि मालूम ही नहीं पड़ता कि विच्छेद शब्द भी उन्हें कभी छू कर गया था.
महिमा के मातापिता उस के लिए लड़का देख रहे थे, लेकिन वह देखनेदिखाने की पारंपरिक रस्म से नहीं गुजरना चाहती थी. लेकिन वह यह भी सोचती कि विवाह 2 परिवारों, 2 व्यक्तियों का संबंध है. अत: बहुत सोचसमझ कर एक रिश्तेदार के शादी समारोह में मिलना तय हुआ. आगे ये मुलाकातें रेस्तरां और घर पर भी हुईं. दोनों के एकदूसरे को अच्छी तरह जानसमझ लेने के बाद पारंपरिक रिवाज से विवाह की रस्में भी पूरी हो गईं.
जीवनसाथी के चुनाव का आधार अब समान सोच, समान विचारधारा होने लगी है. युवा पीढ़ी अपनी पसंद और सोच के साथसाथ दोनों परिवारों की पसंद और उन के मेलजोल की अहमियत को भी समझने लगी है. भाग कर शादी कर लेने का विचार अब विकट परिस्थितियों में ही लिया जाता है.
जयपुर में मैट्रोमोनियल एजेंसी चलाने वाली श्वेता विश्नोई कहती हैं, ‘‘अपनी पसंद के जीवनसाथी के लिए दृढ़ता से खड़े रहना युवा पीढ़ी ने सीख लिया है. कई मानों में शादी अब अपनेआप को बदल रही है, जहां पतिपत्नी एकदूसरे के सखा, दोस्त, हमराज हैं. ऐसे बदलावों के साथ विवाह संस्था का वजूद सदा बना रहेगा तथा कोई और संबंध कभी इसे विस्थापित नहीं कर सकेगा.’’