‘गूसीगूसी जैंडर…’ ‘जैक ऐंड जिल…’ ‘रिंग ए रिंग ओ रोसेज…’ ‘बाबा ब्लैक शीप…’ ‘लंदन ब्रिज इज फालिंग डाउन…’ ‘हंप्टीडंप्टी…’ ‘ईनीमीनी मो…’ ‘ओल्ड मदर हर्ब्ब्ड…’ ‘रब ए डबडब…’ ‘यानकी डूडली…’ ‘थ्री ब्लाइंड माइस…’
इस तरह की नर्सरी राइम्स भारत में भी पढ़ाई जाती हैं. जब भी घर में कोईर् आता है तो बच्चों को आंटी या अंकल के सामने राइम सुनाने पर खूब शाबाशी मिलती है, भले ही मातापिता या फिर घर आए मेहमान को उस राइम का मतलब समझ न आए.
इन्हें सिखाने पर जोर देने के पीछे सोच यह होती है कि ये गंग्लिश की नर्सरी राइम्स बच्चों की अंगरेजी की पकड़ और उन के अच्छे महंगे स्कूल का आभास देती हैं. मेहमान को इन इंग्लिश राइम्स को सुन कर पूछना ही होता है कि बच्चा कौन से स्कूल में पढ़ने जाता है. यह मौका रोब जमाने के लिए होता है.
पेरैंट्स को लगता है कि अगर उन के बच्चे ये राइम्स सीखते हैं तो तभी वे मौडर्न नजर आएंगे. वे दकियानूसी नहीं माने जाएंगे.
इंगलैंड की ब्रिस्टल रौयल बाल चिकित्सालय की टीम ने पाया कि टीवी कार्यक्रमों की तुलना में या पारंपरिक नर्सरी राइम्स में हिंसा 10 गुना ज्यादा होती है.
साहित्यिक इतिहासकारों की रोचक खोज है कि ‘बाबा ब्लैक शीप…’, ‘लंदन ब्रिज इज फालिंग…’ ‘हंप्टीडंप्टी…’ ‘जैक ऐंड जिल…’ ‘मैरीमैरी…’, ‘लिटिल बौय ब्लू…’, ‘ई वल्ड कौक रोबिन…’ ‘ब्लाइंड माइस…’, ‘सिंग ए सौंग औफ सिक्सपैंस…’, ‘इट्स रेनिंग इट पोरिंग…’, ‘गौंगीपौर्गी…’ जैसी प्रसिद्ध राइम्स नैगेटिव हैं.
ये राइम्स इंगलैंड व अमेरिका के सदियों पहले के दौर के रीतिरिवाजों, अत्याचारों, वेश्यावृत्ति, अंधविश्वास, असमानता व धार्मिक कुरूतियों के संदर्भ में गढ़ी गई थीं. ये अनैतिकता की जड़ हैं.
कुछ राइम्स पर एक नजर डालते हैं
बाबा ब्लैक शीप:
ऐसा माना जाता है कि यह राइम इंगलैंड के सामंती काल के जीवन की वास्तविकता पर आधारित है, जो भेड़ से निकले ऊन से संबंधित है. उस समय राजा के दरबारियों ने किसान से भारी ऊन कर वसूला. ऊन से भरा बैग किसानों से छीन कर पहले इलाके के लौर्ड को भेजा जाता था, फिर कुछ हिस्सा चर्च के पास और अंत में जो बचता था केवल वही किसान का होता था जो बेहद गरीबी में जीता था पर राजा और चर्च के गुण गाता था.
गूसीगूसी जैंडर…:
यह नर्सरी राइम भी इसी तरह की है. साहित्य के इतिहासकारों का मानना है कि यह राइम इंगलैंड के राजा हेनरी 8वें और बाद में इंगलैंड के सम्राट के समकक्ष ओलिवर क्रौंबेल के शासनकाल पर आधारित है. उस समय प्रोटैस्टैंट दबाव के कारण कैथोलिक भक्तों को प्रार्थना करने की अनुमति नहीं थी और कैथोलिक पुजारी बनना देशद्रोह बन गया था. इस वजह से कैथोलिक पुजारी तहखानों में छिप कर रहते थे. अगर वे प्रार्थना करते हुए पकड़े जाते थे तो सैनिक उन के पैरों को रस्सी से बांध कर सीढि़यों से नीचे गिरा देते थे. यह नर्सरी राइम इसी पर है जिस में प्रीस्ट को सीढि़यों से फेंकने की बात बच्चों को सिखाई जाती है.
लंदन ब्रिज इज फालिंग डाउन…:
इस राइम को पुल बनाने के काम से जोड़ा जाता है. इस की धुन से लगता है कि यह मस्ती से संबंधित है. लेकिन इस के पीछे का इतिहास कुछ और है. दरअसल, इस के निर्माताओं का मानना था कि ब्रिज को मजबूत रखने के लिए मानव बलि देनी होगी खासकर बच्चों की बलि, जिन की आत्माएं पुल की रक्षा करेंगी यानी लंदन ब्रिज से जोड़ कर इस राइम के पीछे बच्चों का बलिदान छिपा है.
हंप्टीडंप्टी…:
बच्चों की किताब में ‘हंप्टीडंप्टी…’ को एक बड़े से अंडे के रूप में दिखाया गया है, जो बच्चों की तरह कपड़े पहने हुए है. लेकिन यह एक दुखद कहानी है, जिस में ‘हंप्टीडंप्टी…’ न तो वास्तविक इंसान थे और न ही वे अंडे के आकार के थे बल्कि वह एक बड़ी तोप का नाम था जो काफी डरावनी व प्रभावशाली थी. उस का इस्तेमाल ब्रिटेन के गृहयुद्ध के दौरान किया गया था जब कोल्पेस्टर शहर पर राजा के दुश्मनों ने हमला किया था. तब ‘हंप्टीडंप्टी…’ को बाहर निकाला गया और चर्च की दीवार के ऊपर रखा गया. लेकिन दुश्मन दीवार को नष्ट करने में सफल हुए और ‘हंप्टीडंप्टी…’ के कई टुकडे़ हो गए. उन की फिर कभी मरम्मत नहीं हो सकी. इस राइस का भी बच्चों से कोई लेनादेना नहीं है.
जैक ऐंड जिल…:
इस राइम में फ्रांस के राजा लुई 16वें को जैक और उन की रानी मैरी एटोनेट को जिल के रूप में दिखाया गया है. यह भी बच्चों के खेल से संबंधित नहीं है बल्कि इस में यह बताया गया है कि कैसे जनता ने विद्रोह कर के पहले राजा जैक का मुकुट सिर काटा फिर उन की रानी जिल का सिर भी काट कर लटका दिया गया. सिर्फ यही नहीं, इस राइम के और भी कई अर्थ हैं जो बच्चों के विकास के लिए नहीं यूरोप अन्य कई घटनाओं पर आधारित हैं.
रिंग ए रिंग ओ रोजेस:
बच्चे इस राइम को गागा कर खेलते हैं. लेकिन यह राइम इंगलैंड में फैली प्लेग से संबंधित है. इस बीमारी में शरीर से एक अजीब सी दुर्गंध आती थी जिस से शरीर लाल हो जाता था और रैशेज हो जाते थे. उस समय इस दुर्गंध को कम करने के लिए लोग अपनी जेब में गुलाब के खुश्बूदार फूल व जड़ीबूटियां रखते थे. इस की आखिरी पंक्ति में मरने वालों के अंतिम संस्कार का उल्लेख है.
हियर वी गे अराउंड द मलबेरी बुश:
इस राइम का बच्चों से कोई लेनादेना नहीं है. इतिहासकार आर एस डंकन का कहना है कि इस राइम को इंगलैंड के वेकफील्ड जेल में महिला कैदी गाती थी, जब वह चांदनी रात में एक शहतूत के पेड़ के पास कसरत करती थीं.
मैरीमैरी क्वाइट कौंट्रेरी:
हमें लगता है कि यह राइम बागबानी से संबंधित है और इसी वजह से बच्चों को सिखाई जाती है, लेकिन वास्तव में यह राजा हेनरी 8वें की बेटी मैरी की क्रूरता पर आधारित है. मैरी कैथोलिक धर्म मानती थी और इसी वजह से वह प्रोटैस्टैंट भक्तों को मरवा डालती थी. ब्रिटेन में वैस ही ईसाई कैथोलिकों और ईसाई प्रोटैस्टों में मारकाट हुई जैसी हमारे यहां हिंदूमुसलिमों में हुई.
इन नर्सरी राइम्स का अर्थ नकारात्मकता, धार्मिक भेदभाव और क्रूरता को दर्शाता है. उदाहरण के तौर पर ‘जैक ऐंड जिल…’ में जैक का सिर काट कर शरीर से अलग कर दिया गया, ‘हंप्टीडंप्टी…’ में घातक चोट की बात की गई है, ‘रौक ए बाई बेबी…’ में पेड़ की शाखा से बच्ची को ?ाले के साथ धड़ाम से गिरते दिखाया गया है, ‘लंदन ब्रिज…’ में गिरता हुआ लंदन ब्रिज, ‘देयर वाज एन ओल्ड वूमन’ में जूते में रहने वाली बूढ़ी औरत अपने बच्चों को सजा देती है, ‘गूसीगूसी जैंडर…’ में कैथोलिक प्रार्थना करने पर सीढि़यों से नीचे धकेलना, ‘पीटरपीटर…’ में पत्नी की हत्या कर कद्दू में दफनाने जैसी घटनाओं का जिक्र है.
धर्म का महिमामंडन: दुनियाभर के देशों में छोटे बच्चों को स्कूलों में नर्सरी राइम्स सिखाई जा रही हैं जबकि ‘गूसीगूसी जैंडर…’ ‘थ्री ब्लाइंड माइस…’ ‘मैरीमैरी…’ राइम्स धार्मिक शोषण पर आधारित हैं, जिन से बच्चे नर्सरी क्लास से ही धर्म के प्रति नफरत की भावना रखना शुरू कर देते हैं.
आज भी पूरी दुनिया में धर्म के नाम पर हिंसा हो रही है. वह चाहे कश्मीर में पत्थरबाजी हो या अमेरिका में नस्लवादी घटनाएं, इन की जड़ों में बच्चों में जानेअनजाने धार्मिक प्रचार ही है.
इस तरह की राइम्स से बच्चों के दिमाग में सब से पहला सवाल यह आता है कि कैथोलिक कौन होते हैं और प्रोटैस्टैंट कौन. आप उन्हें जो भी बताएं वे उस के आधार पर अपने दोस्तों से भी पूछते हैं कि वे क्या हैं. इस से उन के बीच भेदभाव पैदा होता है. वे एकदूसरे से नफरत करने लगते हैं? जबकि नर्सरी राइम्स का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वे बच्चों को मानवता का गुण सिखाएं, जिन में व्यक्ति को प्यार करने, आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने की बात हो. उन में धर्म, नस्ल, जाति, रंग कहीं आड़े न आए.
केवल धर्म ही नहीं, अधिकांश राइम्स में तो लड़कों को ऊर्जावान, साहसी, महत्त्वाकांक्षी व मजबूत रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि लड़कियों को कमजोर व शांत दिखाया गया है, जैसे ‘जैक ऐंड जिल…’ में जिल को पुरुषप्रधान समाज की एक कमजोर लड़की के रूप में दिखाया गया है. ‘मैरी हैड ए लिटिल लैंब…’ में मैरी की तुलना एक मेमने से की गई है. इसी तरह ‘पौली पुट द कैटल औन…’ में कहा गया है कि पौली की जगह किचन में है. उस के भाई बाहर जा कर खेल सकते हैं, जबकि वह किचन में ही अपनी सहेलियों के साथ चाय पार्टी करती है. इस राइम में यह बताया गया है कि लड़कियों की जगह किचन में ही है, वे घर से बाहर नहीं निकल सकतीं.
नर्सरी राइम्स की विचित्रता यहीं समाप्त नहीं होती बल्कि ‘चब्बी चीक्स…’ नर्सरी राइम से लड़कियों को ऐसा लगने लगता है कि यदि उन के होंठ गुलाबी, रंग गोरा, डिंपल, चिन व घुंघराले बाल नहीं हैं तो वे सुंदर नहीं हैं.
जैंडर डिस्क्रिमिनेशन वाली राइम्स सिखा कर लड़कियों के दिमाग में हीनभावना भरी जा रही है कि वे कमजोर हैं, जबकि आज के समय में लड़कियां किसी भी काम में लड़कों से कम नहीं हैं.
ऐसा नहीं है कि केवल इंग्लिश राइम्स ही ऐसी हैं. हमारे देश की भाषाओं में भी इस तरह की कविताओं की मिसालें मिलती हैं जिन में धर्म, पूजापाठ, प्रार्थना, अंधविश्वास का वर्णन किया गया है. जैसे-
‘हे भगवान तुझे प्रणाम…’ ‘तेरे बच्चे हम हो सचे…’ ‘पढ़ेंगेलिखेंगे योग्य बनेंगे…’ काम करेंगे नहीं डरेंगे…’ ‘नित्य बढ़ेंगे बढ़े चलेंगे…’ ‘दो वरदान हे भगवान…’
जब आप इस तरह की कविताएं बच्चों को सिखाते हैं तो उन के दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि अगर वे भगवान से प्रार्थना करेंगे तो परीक्षा में पास हो जाएंगे, जबकि आप को भी पता है सफलता इन चीजों से नहीं बल्कि मेहनत व लगन से मिलती है. फिर बच्चे को ऐसी चीजें सिखाने का क्या फायदा?