आपके बच्चों ने जवानी की दहलीज पर कदम रख लिया है? हां. ..तो आपके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है? मालूम नहीं, कुछ कह नहीं सकते. आपको मालूम तो है, बस आप अपनी जबान पर लाना नहीं चाहते, कोई बात नहीं, चलिए मैं ही आपको बताता हूं.
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आपके जवान बच्चे आपकी आस्थाओं व एक्शंस पर निरंतर ऐसी भाषा व अल्पाक्षरों में सवाल उठाते हैं, जिसकी जानकारी आपको नहीं होती. आज के इंटरनेट युग के ये युवा, जिनमें मेरे भी दो बच्चे शामिल हैं, ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो सुनने में तो अंग्रेजी के से प्रतीत होते हैं, लेकिन उस अंग्रेजी के नहीं जो मैंने अपने स्कूल के दिनों में पढ़ी थी. ‘वोक’ के बारे में मेरी जानकारी सिर्फ इतनी थी कि यह ‘वेक’ यानी नींद खुलने का भूतकाल है और ‘जागा/जागी’ के लिए प्रयोग होता है. लेकिन जब आपके बच्चे आपको आपके ‘वोकनेस’ पैमाने पर परखते हैं, तब बड़ी मुश्किल से ही आपको मालूम हो पाता है कि आजकल ‘वोक’ का अर्थ यह भी है कि आप कितने जागृत या जागरूक हैं अर्थात आपको कितनी जानकारी है.
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बहरहाल, जब पहली बार मेरे बच्चों ने मुझे मेरे ‘वोकनेस’ पैमाने पर परखा तो मैं ठीकठाक नंबरों से पास तो हो गया, लेकिन इससे मेरी आंखें भी खुल गईं. मुझे लगा कि मैं वह अपने में गुम इंटेलेक्चुअल हूं जिसे यह गलतफहमी होती है कि उसे सब कुछ पता है और जो नहीं पता, वह पता करने के लायक ही नहीं है. लेकिन पिछले साल 15 अगस्त को मेरी आंखें खुल गई जब मेरी छोटी बेटी जो बंग्लुरु में एक इंस्टिट्यूट से एमबीए कर रही है, का व्हाट्सएप्प मैसेज आया, लिखा था- ‘हाई पप्पा, कांग्रट्स! हिड.” कांग्रट्स को तो मैंने समझ लिया कि मुबारकबाद दे रही है, लेकिन किस चीज की- ‘हिड’ की? यह ‘एच आई डी’ हिड क्या बला है, ‘छुपना’ है? क्या है? कोई ‘छुपने’ की मुबारकबाद क्यों देगा? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, रह रहकर बस गालिब का यह शेर याद आ रहा था- ‘बक रहा हूं जुनूं में क्या क्या कुछ/कुछ न समझे खुदा करे कोई’.