क्या तकनीकी ने इंसान के निजी कौशल को शून्य कर दिया है? क्या तमाम सफलताओं का एक निश्चित तयशुदा फार्मूला है और वे उन्हें फार्मूलों के चलते मिलते हैं? क्या अब हमारे काम करने के ढंग और भावनाओं या हमारे निजी संभव का हमारी सफलता से कोई लेना देना नहीं है? कई अध्ययन मानते हैं ऐसा नहीं है. आज भी सफलता निजी, गुणों का नतीजा होती है.
दो साल पहले हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक अध्ययन के मीडिया में छपे निष्कर्ष बताते हैं कि सफलता आज भी व्यक्तिगत उद्यम हैं न कि तकनीकी का नतीजा. यही वजह है कि हर गतिविधि को एक नियम में ढाल देने के बावजूद सफलता सुनिश्चित नहीं है. इसे आज भी सजगता, प्रतिबद्धता, जुनून और ईमानदारी जैसे वैयक्तिक गुणों और मूल्यों से ही हासिल किया जा सकता है. इसीलिये हमारी कुछ आदतों का महत्वपूर्ण योगदान हमें अमीर बनाने या सफल बनाने में होता है.
सवाल है ये आदतें क्या हैं? इनमें पहली आदत है कि अमीर आदमी तमाम चकाचैंध के बावजूद दिन को दिन रात को रात मानता है. रात में समय से सोकर सुबह जल्दी उठता है. अमीर आदमी की हर गतिविधि में अपनी एक तयशुदा गति होती है. वह न तो कभी हड़बड़ी में होता है, न ही आत्मघाती बेफिक्री में डूबा होता है. उसकी दैनिक दिनचर्या में एक लय होती है. अमीर लोग हर रोज कुछ न कुछ नया सीखते हैं या यूं कहें कि वे हमेशा कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं. देखने के इस दौर में भी वे कुछ न कुछ नया पढ़ते ही रहते हैं. अमीर आदमी या सफल आदमी ही नहीं बल्कि हर सुखी और हर खुश व्यक्ति नियमित रूप से सुबह व्यायाम करता है. बिल गेट्स आज भी हर दिन सुबह जल्दी उठकर कोई प्रेरक या नयी सीख देने वाली किसी किताब के कुछ अंश जरूर पढ़ते हैं.
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