गुरुग्राम की रहने वाली रंजना के बेटे की शादी का अवसर था. विदाई के समय दुलहन की मां अपनी बेटी से गले मिलते हुए बोलीं, ‘‘अब एक मम्मी से नाता तोड़ कर दूसरी मम्मी को अपना बनाने जा रही हो. आज से तुम्हारी मम्मी रंजनाजी हैं. अब इन की बेटी हो तुम.’’
रंजना ने तुरंत उन की बात काटते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं आप से एक मां का अधिकार नहीं छीनना चाहती. मम्मी तो आप ही रहेंगी इस की. मैं अभी तक अपनी बेटी का प्यार तो पा ही रही थी, अब मुझे बहू का प्यार चाहिए. मैं मां के साथसाथ खुद को अब ‘सासूमां’ कहलवाना भी पसंद करूंगी. सासबहू के सुंदर रिश्ते को महसूस करने का समय आया है. मैं भला क्यों वचिंत रहूं इस सुख से?’’
प्रश्न है कि आखिर आवश्यकता ही क्यों पड़ती है रिश्तों के नाम बदलने की या किसी अन्य रिश्ते से तुलना करने की? सास शब्द इतना भयंकर सा क्यों हो गया कि बोलते ही मस्तिष्क में ममतामयी स्त्री के स्थान पर एक कू्रर, डांटतीफटकारती अधेड़ महिला की तसवीर उभरने लगती है. बहू शब्द क्यों इतना पराया लगने लगा कि अपनत्व की भावना से सजाने के लिए उस पर बेटी शब्द का आवरण डालना पड़ता है. कारण स्पष्ट है कि कुछ रिश्तों ने अपने नामों के अर्थ ही खो दिए हैं.
अहम और स्वार्थ के दलदल में फंस कर एकदूसरे के प्रति व्यवहार इतना रूखा हो गया है कि रिश्तों का केवल एक पक्ष ही उजागर हो रहा है. उन रिश्तों का सुखद पहलू दर्शाने के लिए किसी अन्य रिश्ते के नाम का सहारा लेना पड़ रहा है. मगर केवल नाम बदल देने से कोई भी रिश्ता उजला नहीं हो सकता. इस के लिए आवश्यक है कि व्यवहार व सोच में बदलाव लाया जाए.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
- 24 प्रिंट मैगजीन