‘‘मां तुम ने अब तक यह सचाई मुझ से खुल कर क्यों नहीं कही कि मैं एक अडौप्टेड चाइल्ड हूं?’’ सत्यन अंतिकाड़ की एक फिल्म में अच्चू का किरदार निभा रही कलाकार मीरा जास्मीन अपनी मां का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री उर्वशी से यह पूछती है. फिल्म में वनजा अपनी अडौप्टेड बेटी से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती कि वह उस की गोद ली बेटी है. वनजा सिंगल पेरैंट है, वह सोचती है कि अब तक पिता के बारे में कुछ न जान पाने का ही दुख उस की बेटी को था, अब मां भी झूठी है, यह जानेगी तो इन सब बातों को कैसे बरदाश्त करेगी. इसी कारण उस ने बेटी से यह सचाई छिपा कर रखी थी. अनाथ बच्चों को गोद ले कर अपना बनाने की इच्छा लिए हमारे बीच न जाने कितने लोग होंगे, लेकिन बच्चे को गोद ले लेने के बाद उस को यह सचाई खुल कर बताने से सब हिचकिचाते हैं कि वह उन की गोद ली संतान है. दरअसल, इस के पीछे यह धारणा रहती है कि यदि बच्चे और समाज को यह पता चलेगा तो समाज का नजरिया उन के बच्चे के प्रति बदल जाएगा और बच्चा भी यह सब जानने के बाद अपने पेरैंट्स से नफरत करने लगेगा. इसी डर के कारण लोग बच्चों को सचाई बताने से डरते हैं.
लेकिन आज जमाना बदल रहा है. नई पीढ़ी इन समस्याओं से अवगत होने के बावजूद इस सचाई के साथ जिंदगी जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार है.
नई पीढ़ी का दृष्टिकोण
गोद लिए बच्चों से सारे तथ्य खुल कर कहने की आवश्यकता पर अर्चकुलम, केरल के एक ओपन फोरम में चर्चा की गई. इस चर्चा में इस विषय पर नई पीढ़ी का बेहद सकारात्मक दृष्टिकोण देखने को मिला. अनेक तरह के इलाज करवाने व धन और समय को व्यय कर बायोलौजिकल बच्चे को पाने से बेहतर एक अनाथ बच्चे का सहारा बनने की ललक नई पीढ़ी में देखने को मिली. लाइफस्टाइल, दृष्टिकोण, विचारों में बदलाव, साक्षरता, स्त्री की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता व पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव आदि से अडौप्शन द्वारा पेरैंट्स कहलाने को प्रोत्साहन मिला है. अविवाहित महिलाएं भी अपने जीवन में सिंगल पेरैंट बनना चाहती हैं. इस के लिए वे बच्चे को गोद लेना पसंद करती हैं.
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