खुद को प्रेरणा देना, खुद को सलाह देना बहुत सुंदर परिकल्पना है. कैसी भी स्थिति आ जाए खुद को राय देना और अपनेआप से मशविरा करना बहुत सकारात्मक रिजल्ट दिलवा देता है. आप को बता दें कि हवा जब दीपक की लौ से टकराती है तब वह लौ चाहे छोटी सी भी क्यों न हो, हवा से संवाद करती है. हवा को आगे जाने को कहती है. फिर और अधिक प्रकाश के साथ जगमगाने लगती है. कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति मनुष्य रूप देती ही इसलिए है ताकि इंसान हजारों बाधाओं को पार कर जीवन में अपने लिए एक मुकाम हासिल कर सके.

एक दार्शनिक का यह मत है कि जीवन में कभी भी, कहीं भी प्रेरणा की कमी नहीं होती. बात तो तब अनूठी होगी जब इंसान अपने ऊपर फेंके गए पत्थरों से एक खूबसूरत इमारत बना ले और उस को भी प्रेरक रूप दे दे.

एक कवि ने कल्पना की है,

‘ढूंढ़ सकते हैं रत्न समंदर की अथाह गहराई से,

खोज सकते हैं नए सितारे इस अबूझे अंतरिक्ष में,

आखिर मुश्किल क्या है उस के लिए जो,

हर बात में अपने लिए प्रेरणा का दर्शन करता है.’

 यह घटना सुप्रसिद्ध विचारक लुईस पाश्चर ने लिखी है कि एक बार एक गरीब किसान महात्मा गांधी के पास आया और उस ने उन्हें बताया कि वह बिहार के चंपारण गांव से आया है जहां काश्तकारों को अंगरेज जमींदारों ने बहुत दुखी कर रखा है. गांधीजी बड़े अचंभे में पड़ गए कि यह निर्धन किसान अपना कामधंधा, खेतीबाड़ी छोड़ कर चंपारण से यहां इतनी दूर आश्रम में उन के पास आया.

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