‘‘जब फोन पर पिज्जा, बर्गर और्डर करना होता है तब आप के मुंह से न नहीं निकलता, गेम्स और मूवीज की डीवीडी खरीदते वक्त मना नहीं करते, दिनरात टीवी से चिपके रहते हो, मौल में पापा के 2-3 हजार फालतू चीजों पर खर्च करवा देते हो, दोस्तों के साथ खेलने जाने में कभी लेट नहीं होते, लेकिन पढ़ाई के वक्त यह फुरती कहां गायब हो जाती है? जरा सा काम करने को कहा नहीं कि मुंह फूल जाता है. आप जाओ मेरे सामने से वरना थप्पड़ जड़ दूंगा,’’ ऐसे संवाद हर उस घर में सुने जा सकते हैं, जिस में 10 या उस से ज्यादा की उम्र का बच्चा हो. डांट के इस संशोधित संस्करण का मूल स्वरूप शायद बड़ेबूढ़ों को याद हो, लेकिन अभी जो पीढ़ी यह जिम्मेदारी उठा रही है, उस ने बहुत ज्यादा बदलाव डांट की भाषा में नहीं किए हैं. तूतड़ाक की शैली खत्म हो गई है. बच्चों को अब सम्मानजनक तरीके से झाड़ लगाई जाती है. यह जरूर यथासंभव ध्यान रखा जाता है कि गुस्से को काबू रखते हुए बच्चों को मारा न जाए, क्योंकि परवरिश का यह वाकई असभ्य तरीका है.

सभ्य और आधुनिक तरीका यह है कि बच्चा इस बात को समझे और जाने कि अभिभावक उस के दुश्मन नहीं, बल्कि हितैषी हैं. यह दीगर बात है कि 40-50 साल पहले के अभिभावक भी यही चाहते थे बस फर्क इतना सा था कि डांट खाने वाले बच्चों की तादाद 3-4 या फिर इस से भी ज्यादा होती थी. जब गुस्सा बरदाश्त नहीं होता था तो बच्चों की पिटाई भी कर दी जाती थी  देखा जाए तो भावनात्मक तौर पर बदला कुछ खास नहीं है. अभिभावकों का बच्चों को कुछ बनाने का जज्बा और ख्वाहिश ज्यों की त्यों है और दूसरी तरफ बच्चों की जिद भी बरकरार है. बदलाव घरों में आए हैं. वे अब आलीशान हो गए हैं. उन में कूलर, फ्रिज, एसी लगे हैं, ज्यादातर घरों के बाहर छोटी या बड़ी कार खड़ी होती है. आज के बच्चे पहले के बच्चों की तरह स्कूल पैदल दोस्तों के साथ कूदतेफांदते मस्ती करते नहीं जाते, बल्कि बस या वैन में जाते हैं. आज के बच्चे सुबह उठ कर मम्मीपापा को गुडमौर्निंग कहते हैं. पहले के बच्चों की तरह उन के पांव नहीं छूते. आज जो मातापिता खड़ेखड़े 3-4 हजार बच्चों की जरूरत पर खर्च कर देते हैं उन्हें कभीकभार याद आता है कि उन्हें चवन्नी की जलेबियां या चाट खाने के लिए भी कितनी चापलूसी और घर के काम करने पड़ते थे. लेकिन उन का सोचना है कि उन्होंने जो सहा वह अपने बच्चों को नहीं सहने देंगे, उन्हें तकलीफें नहीं उठाने देंगे. यह मानसिकता हर दशक में बलवती होती रही है और यही वह वजह है जिस ने परवरिश को लगातार सुधारा है. दूसरे शब्दों में कहें तो पेरैंटिंग को स्मार्ट और गुणवत्ता वाला बनाया है.

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