किसी छायादार पेड़ की तरह मां की ममता बच्चे को शीतल छाया देने के साथसाथ उसे जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की ताकत भी देती है. बच्चे की पहली शिक्षक और पहली दोस्त मां ही होती है. मां के हाथ के खाने की बात ही कुछ और होती है. मां से भावनात्मक लगाव बच्चे को नया सीखने व व्यक्तित्व निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. सफल व्यक्ति से उस की सफलता का राज पूछिए, कहेंगे, मां की सीख और उन की परवरिश के नतीजे में वे सफल हो सके.वहीं बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए ममता के साथ पैसों की भी जरूरत होती है. ऐसे में जब बात कैरियर की हो तो मां के लिए क्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण होना चाहिए? आज की कामकाजी, कैरियर ओरिएंटेड महिला को अपने कैरियर और बच्चे के शुरुआती दौर की देखभाल में किसे प्राथमिकता देनी चाहिए? आइए, इस पर चर्चा करते हैं.

बदलते समय के साथ समाज की मान्यताएं भी बदल रही हैं. लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, उच्च पदों पर आसीन हैं. विवाह की जो उम्र कुछ समय पहले 22 से 26 वर्ष मानी जाती थी वह कैरियर में सफलता की चाह में बदल कर 30 से 33 वर्ष पहुंच गई है. समाजशास्त्री इस बदलाव की वजह महिला का अपनी व्यावसायिक व पारिवारिक जिंदगी में बैलेंस न बना पाने की अक्षमता को मान रहे हैं. साथ ही, वे सचेत भी कर रहे हैं कि कैरियर जहां भी विवाह व परिवार पर हावी हुआ वहां समाज के लिए खतरा होगा. इस से बच्चों की प्रजनन दर में गिरावट आएगी, दो पीढि़यों के बीच अंतर बढ़ेगा, जो पूरी सामाजिक संरचना के लिए अहितकर होगा.

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