कहते हैं फिल्में समाज का आईना हैं. इन में वही दिखाया जाता है, जो समाज में हो रहा होता है. फिर चाहे वह प्यार हो, तकरार हो, अपराध हो अथवा आज के समय में फिल्मों में दिखाया जाने वाला बदलता हुआ प्यार ही क्यों न हो. एक समय था जब प्यार का मतलब लैलामजनूं, हीररांझा और सोनीमहिवाल की प्रेम कहानी हुआ करती थी, लेकिन उस के बाद समय बदला, सोच बदली, तो ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे,’ ‘कुछकुछ होता है,’ ‘हम आप के हैं कौन,’ ‘मैं ने प्यार किया,’ जैसी फिल्मों का दौर आया, जिस में प्यार के अंदाज अलग थे, शादी के माने भी काफी अलग थे, लेकिन एक बात कौमन थी कि लड़कियां प्यार के मामले में शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, रितिक रोशन जैसे प्रेमी की कल्पना करती थीं. वे अपने पति में भी शाहरुख जैसे प्यार करने वाले प्रेमी को देखती थीं.
फिर जैसेजैसे वक्त बदला, लोगों की सोच बदली वैसेवैसे शादी और प्यार को ले कर भी लोगों का नजरिया बदलने लगा.जैसाकि कहते हैं ‘यह इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए एक आग का दरिया है और डूब के जाना है...’ ऐसा ही कुछ आजकल मुहब्बत का पाठ पढ़ाने वाली फिल्मों में अलग तरीके से देखने को मिल रहा है. आज के प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी प्यार में अंधे नहीं हैं, बल्कि वे अपने प्रेमी और उस के साथ गुजारे जाने वाले जीवन को ले कर पूरी तरह से आजाद खयाल रखते हैं.
आज के प्रेमी झूठ में जीने के बजाय प्यार के साथ सच को कबूलने में विश्वास रखते हैं.मगर इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आज के समय में प्यार मर गया है या लोगों का प्यार पर विश्वास नहीं रहा बल्कि आज भी लोगों में अपने प्रेमी या पति के लिए उतना ही प्यार है जितना कि लैलामजनूं के समय में था. लेकिन फर्क बस इतना है कि आज लोग प्यार और शादी के मामले में प्रैक्टिकल हो गए हैं क्योंकि जिंदगीभर का साथ है इसलिए दिखावा तो बिलकुल मंजूर नहीं है.