लेखक- नवीन सिंह पटेल

सीमा की ख्वाहिश मैडिकल में कैरियर बनाने की थी. उस के शिक्षक मम्मीपापा भी इकलौती बेटी को डाक्टर बनाना चाहते थे. उन्हें अपनी बेटी की मेहनत पर पूरा भरोसा था. 10वीं कक्षा में उस ने 95 फीसदी अंक हासिल कर के न सिर्फ अपनी क्षमता दिखाई वरन घर वालों के सपनों को पंख भी लगा दिए. मैडिकल के कंपीटिशन से सभी वाकिफ थे. सीमा ने दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कोचिंग सैंटर में दाखिला ले लिया. स्कूल की पढ़ाई के साथ 2 साल तक नियमित मैडिकल की कोचिंग ने रंग दिखाया. आज वह एक मैडिकल कालेज में अपने सपनों की पढ़ाई में जुटी हुई है.

सीमा कहती है, ‘‘मु झे कोचिंग सैंटर में2 सालों में जो सिखायाबताया गया वह मैं और कहीं हासिल नहीं कर सकती थी. पढ़ाई के तौरतरीके और बेसिक्स क्लियर करने में कोचिंग ने बहुत मदद की.’’

शानदार सफलता पाने की हसरत हर किसी की होती है. बात चाहे आला दर्जे की नौकरी पाने की हो या फिर ऊंची कमाई दिलाने वाले कोर्स में दाखिला लेने की, कोचिंग अचूक हथियार साबित हो रही है. तभी तो कोचिंग लेने वालों की भीड़ दिनबदिन बढ़ती जा रही है और कोचिंग सैंटरों की भी. कई स्कूलों ने तो अपने ही कैंपस में कोलैबोरेशन कर के इंजीनियरिंग या मैडिकल की कोचिंग दिलानी शुरू कर दी है.

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कोचिंग बच्चों को सही दिशा और प्रोत्साहन देती है, लक्ष्य पाने का हुनर सिखाती है. कोचिंग सैंटरों की पढ़ाई टौनिक सरीखी होती है.

दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कोचिंग सैंटर में सिविल सेवा की तैयारी में जुटे एक छात्र राजीव कहते हैं, ‘‘आईएएस की परीक्षा के लिए कोई किताब प्रकाशित नहीं हुई है कि उसे पढ़ो और पास हो जाओ. उस का कोर्स बहुत विस्तृत है. इस के लिए सैकड़ों किताबें खरीदनी और पढ़नी पड़ती हैं. इस में पैसा तो खर्च होता ही है, नोट्स बनाने में भी काफी समय बीत जाता है. जबकि कोचिंग सैंटर से हमें पढ़ने का सारा मैटीरियल तैयार किया मिल जाता है. परीक्षा के पैटर्न और सिलेबस में बदलाव होने पर भी कोचिंग में ऐक्सपर्ट फटाफट तैयारी करा देते हैं. यह सब घर बैठे पढ़ाई में कहां संभव है?’’

1. सही दिशा

कैरियर प्लानिंग सैंटर की निदेशक डा. शीला कहती हैं, ‘‘हम यह मान कर चलते हैं कि जो किताबें हमें रूटीन में पढ़नी हैं, प्रतियोगी परीक्षा में भी उन्हीं में से पूछा जाना है. पर ऐसा होता नहीं है. रूटीन और प्रतियोगी पढ़ाई का अंतर तब पता चलता है, जब बच्चा कोचिंग सैंटर जाता है. वहां टाइम मैनेजमैंट तो सिखाया ही जाता है, कंपीटिशन की प्रैक्टिस भी कराई जाती है. इस से एग्जाम क्रैक करना आसान हो जाता है.’’

यह मान लेना भी ठीक नहीं कि कोचिंग सैंटर में दाखिला लेने से ही सबकुछ हासिल हो जाएगा. कोचिंग का काम पौलिशिंग का है. पर कोयले पर पौलिश से क्या मिलेगा? हीरे पर पौलिश होगी तो वह चमक उठेगा. इसीलिए, वही बच्चे कामयाब हो पाते हैं, जिन में खुद कुछ है और आगे करना चाहते हैं.

2. सफलता की कुंजी

प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर बढ़ने के साथ कोचिंग क्लासेज की उपयोगिता भी तेजी से बढ़ी है. आज सीए, सीएस, एमबीए जैसे कोर्सेज के लिए कोचिंग प्रवृत्ति बन गई है. बैंकिंग, रेलवे और एसएससी जैसे कंपीटिशन की तैयारी के लिए भी कोचिंग की संख्या में इजाफा हो रहा है. छात्रों को लगता है कि कोचिंग ही सफलता का मूल मंत्र है.

दरअसल, बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कालेज में न माहौल मिल पाता है, न कोचिंग सैंटर के प्रोफैशनल टीचर सरीखी पढ़ाई ही मिल पाती है. कोचिंग क्लासेज में हर विषय का बढि़या स्टडी मैटीरियल मिल जाता है, जो अच्छे अंक प्राप्त करने में मददगार बनता है.

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3. कोचिंग की जरूरत

कोचिंग की जरूरत और उपयोगिता निरंतर बढ़ रही है और छात्रों की संख्या भी. कमाल की बात है कि यह कारोबार हजारों करोड़ में पहुंच चुका है. राजस्थान में कोटा, उत्तर प्रदेश में कानपुर, इलाहाबाद व लखनऊ, बिहार में पटना, मध्य प्रदेश में इंदौर और महाराष्ट्र में मुंबई जैसे शहर अब अच्छी कोचिंग के लिए जाने जाते हैं. अकेले कोटा में ही हर साल करीब 6 लाख से अधिक छात्र कोचिंग के लिए पहुंचते हैं. आईआईटी हो या अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं, कोटा को कोचिंग का मक्का समझा जाने लगा है.

कोचिंग सैंटरों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते यहां पढ़ाने के तौरतरीकों मैं टैक्नोलौजी का इस्तेमाल भी शुरू हो गया है. आज हर बड़ा कोचिंग इंस्टिट्यूट औनलाइन टैस्ट के जरिए अपने छात्रों की दक्षता आंक रहा है. एयरकंडीशंड क्लासरूमों और लाइबे्ररियों की सुविधा भी कोचिंग सैंटर दे रहे हैं. कई कोचिंग सैंटर गरीब बच्चों को मुफ्त कोचिंग भी दे रहे हैं.

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