त्योहारों का सीजन था. नेहा ने पसंदीदा काली साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज पहनने के लिए निकाला. ब्लाउज बैकलैस तो था ही, आगे से डीपनैक का भी था. उस की क्लीवेज दिख रही थी. वह तैयार हो कर अपनी सास के पास गई और बोली, ‘मांजी, मैं कैसी दिख रही हूं?’ नेहा की सास काफी सुलझे स्वभाव की थी. कभी किसी भी तरह की ड्रैस पहनने को ले कर टीकाटिप्पणी नहीं करती थी. यही वजह थी कि नेहा हमेशा अपनी सास से कपड़ों के बारे में राय ले लेती थी. सास खुले विचारों की थी, इसलिए कभी कोई परेशानी नहीं आती थी. डांडिया डांस करने के लिए तैयार हो कर नेहा सब से पहले सास के पास गई और उन से यह पूछ लिया.
‘नेहा, डांडिया में काले रंग की साड़ी अच्छी नहीं लगेगी. वहां आए लोग नाकमुंह सिकोड़ेंगे. बाकी लोग डांडिया के हिसाब से कपड़े पहन कर आएंगे. तुम इस को बदल कर दूसरी ड्रैस पहन लो.’ नेहा ने अपनी सास की बात को मान लिया. अपनी पोशाक बदल ली. इस के बाद वे दोनों डांडिया के लिए गईं. डांडिया डांस में जिन लोगों को हिस्सा लेना था उन में रीना भी थी. उस ने भी बहुत फैशनेबल ड्रैस पहन रखी थी. कई लोगों की नजरें उस की ड्रैस पर थीं. डांडिया में फैशन की जंग शामिल जरूर होने लगी है पर वहां भी इस बात का ध्यान रखा जाता है कि धार्मिक सोच के अनुसार ही ड्रैस में बदलाव हों.
रीना ने गाउन स्टाइल का सूट पहना था. वह जब डांडिया के लिए जाने लगी तो आयोजकों ने रोक लिया. इन लोगों का कहना था कि डांडिया में पारंपरिक ड्रैस पहननी चाहिए. अगर इस ड्रैस में जाना है तो दुपट्टा से ड्रैस को कवर करना होगा. रीना के पास कोई दुपट्टा नहीं था. उस ने पहले वहां एक दूसरी महिला से दुपट्टा मांगा, फिर उस से अपनी ड्रैस को ढक लिया. इस के बाद वह डांडिया में शामिल हुई. डांडिया को एक तरह से धार्मिक आयोजन बना दिया गया. इस से इस में परंपरागत ड्रैस पहननी जरूरी होती है. त्योहारों में केवल महिलाओं के लिए ही नहीं, पुरुषों तक के लिए अलग ड्रैस कोड होते हैं. धार्मिक आयोजनों के समय पुरुषों को भी सिर पर रूमाल रखने या टोपी पहनने का चलन है. यह केवल हिंदू धर्म में ही नहीं है, मुसलिम और ईसाई धर्मों में भी इस तरह के रिवाज हैं. कपड़ों के केवल डिजाइन ही नहीं, उन के रंग भी देखे जाते हैं.