बच्चा कई कारणों से रोता है. उस में इतनी क्षमता नहीं होती कि वह किसी बडे़ को यह समझा सके कि उसे क्या तकलीफ हो रही है. इसलिए रोना ही उस के लिए एकमात्र उपाय दूसरे को आकर्षित करने का होता है. सभी मातापिता को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उन का बच्चा क्यों रो रहा है? उस का कारण क्या है? वह क्या कहना चाहता है? कभीकभी यह समझ पाना बहुत मुश्किल होता है खासकर तब जब वे पहली बार मातापिता बनते हैं. रोना असल में एक नवजात बच्चे के जीवन का हिस्सा होता है. औसतन एक नवजात दिन में 2 घंटे रोता है, जोकि समय के साथसाथ बढ़ता और घटता रहता है. पैदा होने से ले कर 6 महीने की आयु तक शिशु का रोना औसतन 2-3 घंटे प्रतिदिन होता है. फिर चाहे आप उस का कितना भी ध्यान क्यों न रखते हों. 6 महीने के बाद बच्चे का रोना धीरेधीरे कम हो कर दिन में औसतन 1 घंटा रह जाता है. धीरेधीरे जब मां अपने बच्चे को समझने लगती है, उस की जरूरतों को समय से पूरा करने लगती है तब बच्चे का रोना और कम हो जाता है.
कई कारण हैं रोने के
भूख लगना: जब बच्चा रोता है तो यह बात सब से पहले ध्यान में आती है, परंतु धीरेधीरे जब मां अपने बच्चे के लक्षण पहचानने लगती है तब उस की कोशिश होती है कि बच्चे को रोने से पहले ही खिला दिया जाए. जब बच्चा भूखा होता है तो वह रोने लगता है, होंठों को दबाता है, किसी के पास आने पर उस से दूर भागता है, मुंह में हाथ डालता है.
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