समर्पण शब्द सुनते ही नजरों के सामने फैल जाता है एक बड़ा सा कैनवस, जिस पर कोई एक विचार या भावना नहीं, बल्कि अनेक चित्र एकसाथ उभरते हैं. जैसे मातापिता और संतानें, व्यक्ति और उस का लक्ष्य, व्यवसाय तथा व्यवसायी और इन सब से अलग और महत्त्वपूर्ण चेहरा होता है पतिपत्नी का. इन सभी चित्रों में एक बात जो मुखर है, वह यह कि किसी संबंध के प्रति स्वयं को पूरी तरह से सौंप देने का ही नाम समर्पण है.
समर्पण का विस्तृत आकाश
मेरी बचपन की सहेली मोहिनी के पिता मुख्य चिकित्साधिकारी थे. मोहिनी की मां उस के जन्म के पूर्व ही अपनी दोनों आंखें गंवा चुकी थीं पर क्या मजाल कि अंकल ने आंटी को एक पल के लिए भी आंखों की कमी खलने दी हो. पार्टी हो या सिनेमाहाल, उत्सव हो या समारोह, वे हर स्थान पर आंटी का हाथ अपने हाथों में लिए रहते तथा सतत कमेंट्री करते रहते. यही नहीं, उन के घर में कोई नई खरीदारी की जाए तो तुरंत बच्चों को आदेश देते कि जाओ, मम्मी को दिखा लाओ. आंटी सामान को छू कर अपनी सहमतिअसहमति जतातीं परंतु अंकल उन के ‘छूने’ को भी देखने का नाम ही देते. यह उन के प्रति एक विलक्षण समर्पण था. दांपत्य जीवन की शुरुआत करते समय पतिपत्नी आजीवन एकदूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहने तथा एकदूसरे से सुखदुख में साथ निभाने के वादे करते हैं. यही समर्पण की पहली सीढ़ी है. पतिपत्नी दोनों ही अलगअलग वातावरण में पलेबढ़े होते हैं. दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि, जीवनशैली, शिक्षादीक्षा तथा शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं में भिन्नता होना स्वाभाविक है.
ऐसी स्थिति में एक सफल और सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना तभी की जा सकती है, जब पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे के गुणदोषों, पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक दायित्वों को सहज रूप से स्वीकारें. आवश्यकतानुसार स्वयं को बदलने और तालमेल बैठाने की कोशिश करें. यह प्रयास ‘मैं’ और ‘तुम’ से अलग ‘हम’ का एक संसार बसाने का होना चाहिए.
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पति की पत्नी से अपेक्षाएं
दिल्ली के वरिष्ठ मैरिज काउंसलर अमृत कपूर का मानना है कि अधिकांश मामलों में आपसी मनमुटाव की शुरुआत सैक्स संबंधों से ही होती है. पतियों की यह शिकायत होती है कि उन की पत्नी सैक्स के मामले में असक्रिय है तथा थके होने और मूड न होने का बहाना बना कर उन्हें टालतीटरकाती रहती है, जिस के कारण वे तनावग्रस्त हो जाते हैं. शारीरिक समर्पण वैवाहिक जीवन की एक अनिवार्य अभिव्यक्ति अवश्य है पर इकलौता मानदंड नहीं. सैक्स को विषय बना कर पत्नी को दुख देना पतियों के एकतरफा स्वार्थीपन को उजागर करता है न कि पत्नी के प्रति प्रेम को. पति भूल जाता है कि पत्नी भी एक व्यक्तित्व है. पत्नी रातोरात पति तथा उस के परिवार को अपना सर्वस्व मान कर उन के अनुरूप ढल जाए, ऐसा सोचना गलत होगा. अत: पतियों को चाहिए कि वे धैर्य तथा समझदारी से काम लें. वे जीवनसाथी के निजी सुखदुख का भागीदार बनने का कार्य भी उतने ही प्यार, सहानुभूति, अपनत्व तथा उत्साह से करें जैसा कि वे पत्नी से चाहते हैं.
पारिवारिक शांति का आधार
स्त्री को पिता का घर छोड़ कर पति के नए तथा अजनबी परिवार में स्वयं को बसाने से ले कर पति, परिवार तथा संतान के प्रति कर्तव्यों को निभाने के अनेक कठिन पड़ावों पर अपने समर्पण की परीक्षा देनी पड़ती है. पत्नी का यह समर्पण कहनेसुनने में तो बड़ा सरल प्रतीत होता है मगर इसे करना आसान नहीं होता. यदि स्त्री अपने उत्तरदायित्वों को भलीभांति समझ कर एकएक कदम बढ़े तो यह कार्य सुगम हो जाएगा. स्त्री में वह शक्ति और समायोजन क्षमता होती है, जिस के सहारे वह सरलता से स्वयं को किसी भी परिस्थिति में ढाल लेती है. बंगाल की वयोवृद्ध समाजसेविका सुनंदा बनर्जी अपने युवावस्था के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ‘‘उन दिनों समर्पण प्राय: एकतरफा ही होता था. पुरुषों तथा परिवार की आशाओं पर खरा उतरने की जंग में स्त्री का सारा जीवन होम हो जाता था. परंतु आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं. आज यदि घर की सुखशांति के लिए पत्नी एक कदम आगे बढ़ाती है, तो पति एवं परिवार की ओर से उसे दोगुना प्रेम, सम्मान तथा उत्साह मिलता है.’’
बलिदान नहीं सामंजस्य
वैवाहिक जीवन के तनावों तथा अवसादों से ग्रस्त, जो विवाहित जोड़े मनोरोगचिकित्सकों का द्वार खटखटाने पहुंच जाते हैं, उन में एक साझा पहलू यह पाया जाता है कि वे अहं के टकराव का शिकार होते हैं. उन में एकदूसरे के ऊपर प्रभुत्व जमाने की तीव्र इच्छा होती है. उन की शिकायत अकसर यही होती है कि उन का जीवनसाथी उन्हें उंगलियों पर नचाना चाहता है, बलि का बकरा बना रखा है, मेरा तो सब कुछ होम हो गया आदि. ऐसी स्थिति में मनोरोगचिकित्सक उन्हें यही समझाते हैं कि वैवाहिक जीवन कोई बलिवेदी नहीं है जिस पर एक के लिए दूसरा कुरबान हो जाता है. गृहस्थ जीवन एक ऐसा कर्मक्षेत्र है जिस में सुखदुख, उतारचढ़ाव तथा ऊंचनीच आते ही रहते हैं. पतिपत्नी दोनों को इन्हें सहज रूप से स्वीकार कर आपसी प्रेम, तालमेल तथा सूझबूझ के साथ जीवन चलाना चाहिए. आपस में सुंदर सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास दोनों ओर से हो, एकतरफा नहीं. एकदूसरे पर रोब जमा कर समर्पण की मांग करना सरासर अशिष्टाचार तथा असभ्यता ही है.
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समर्पण के मार्ग की रुकावट
दिल्ली के वरिष्ठ ऐडवोकेट राकेश दीवान के अनुसार, वर्तमान समय में अधिकतर नवविवाहित जोड़े अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं. विवाह के पूर्व जिन सपनों की दुनिया में ये जीते हैं, उस से बाहर आ कर व्यावहारिक जगत के रिश्ते निभाना उन के लिए कठिन हो जाता है और विवाह के कुछ ही समय उपरांत इन में तूतू, मैंमैं शुरू हो जाती है. ये जोड़े एकदूसरे के अधिकार और कर्तव्यों को मुद्दा बना कर परस्पर आरोपप्रत्यारोप करते हैं, जिस से इन का दांपत्य बिखर जाता है. विवाह चाहे अरेंज्ड मैरिज हो या लव मैरिज, दोनों ही स्थितियों में 2 भिन्नभिन्न व्यक्तियों को एकसाथ रहने का अभ्यास करना पड़ता है. पतिपत्नी के रिश्ते में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. दोनों ही का योगदान बराबर का होता है, अलबत्ता दोनों की क्रियाप्रतिक्रिया का रूप और तरीका अलगअलग हो सकता है. गृहस्थ जीवन कोई कोर्टकचहरी नहीं, जहां समयअसमय अधिकार बनाम कर्तव्य का मुकदमा चलाया जाए. इस जंग में हासिल कुछ भी नहीं होता है. हाथ आती है तो केवल जगहंसाई, दांपत्य में दरार और पारिवारिक विघटन.
सफल दांपत्य के 10 गुर
विवाह के पूर्व होने वाले जीवनसाथी की पसंदनापसंद तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि की विशेष जानकारी कर लें.
विवाह के पश्चात आजीवन एकदूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहें.
पतिपत्नी एकदूसरे के परिवार, रिश्तेदारों तथा रीतिरिवाजों का सम्मान करें.
पतिपत्नी एकदूसरे के गुणदोषों को स्वीकारने तथा संपूर्ण सामंजस्य का नियमित अभ्यास करें.
एकदूसरे से अनावश्यक तथा सीमा के बाहर की अपेक्षाएं न रखें.
परस्पर स्नेह और सम्मान का प्रदर्शन करें. भूल कर भी ‘अहंकार’ को बीच में न आने दें.
पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे के क्रोध, चिड़चिड़ाहट और झल्लाहट आदि को सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया समझ कर स्वीकार करें.
घर, बाहर, परिवार एवं बच्चों की जिम्मेदारियों को यथासंभव मिलबांट कर निभाएं. जो कर सकें उसे अवश्य करें और जो न कर पाएं उस के लिए विनम्रतापूर्वक ‘न’ कह दें.
जीवनसाथी के प्रति समर्पण का प्रदर्शन करने के लिए समयसमय पर उस की प्रशंसा अवश्य करें तथा उसे खुश करने के छोटेछोटे उपाय भी करें.
अपने गृहस्थ जीवन को सुखी रखने के लिए मार्गदर्शन अवश्य लें, मगर हस्तक्षेप कदापि स्वीकार नहीं करें.