टीवी पर आप ने एक विज्ञापन देखा होगा, जिस में 2 सहेलियां बहुत दिनों बाद मिलती हैं. पहली दूसरी से पूछती है, ‘‘क्या कर रही है तू?’’
दूसरी गर्व से कहती हैं, ‘‘बैंक में नौकरी कर रही हूं और तू?’’
पहली कुछ झेंपते हुए कहती है, ‘‘मैं... मैं तो बस हाउसवाइफ हूं.’’
यह विज्ञापन दिखाता है कि हमारे समाज में हाउसवाइफ को किस तरह कमतर आंका जाता है या यों कहें कि वह स्वयं भी खुद को कमतर समझती है, जबकि उस का योगदान वर्किंग वुमन के मुकाबले कम नहीं होता है. एक हाउसवाइफ की नौकरी ऐसी नौकरी है जहां उसे पूरा दिन काम करना पड़ता है, जहां उसे कोई छुट्टी नहीं मिलती, कोई प्रमोशन नहीं मिलती, कोई सैलरी नहीं मिलती.
हजारों रुपए ले कर भी यह काम कोई उतने लगाव से नहीं कर पाता
आज महानगरों में ही नहीं, छोटेछोटे शहरों में भी घरेलू कार्यों के लिए हजारों का भुगतान करना पड़ता है. साफसफाई करने वाली नौकरानी इस मामूली से काम के भुगतान के रूप में क्व500 से क्व1000 तक लेती है. खाना बनाने के लिए और ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं. ऐसे ही बच्चों के लिए ट्यूशन की बात हो या फिर घर में बीमार मांबाप की सेवा की, कपड़े धोने की बात हो या फिर 24 घंटे परिवार के सदस्यों की सेवा के लिए खड़े होने की, हाउसवाइफ द्वारा किए जाने वाले कामों की लिस्ट लंबी है.
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पत्नी को अर्द्धांगिनी कहा जाता है, पर वह उस से बढ़ कर है. तमाम मामलों में पति के लिए पत्नी की वही भूमिका होती है, जो बच्चे के लिए मां की. प्रतिदिन सुबह उठें तो चाय चाहिए, नहाने के लिए गरम पानी चाहिए या फिर नहाने के बाद तौलिया, जिम जाते समय स्पोर्ट्स शूज की जरूरत या फिर औफिस जाते समय रूमाल की, हर कदम पर पत्नी की दरकरार.
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