दोस्ती का जीवन में बड़ा महत्त्व है. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अकेले के बजाय मित्र रखने वालों का दृष्टिकोण खुशी से भरा होता है. वे जल्दी स्वास्थ्य लाभ करते हैं. अकेला व्यक्ति खुद को सीमित रखता है, उसे अपनी बीमारी को सहेजने की आदत पड़ जाती है.
नीरजा को मित्रता की आदत है. वह जहां भी जाती है अपने खुले स्वभाव के कारण जल्दी दोस्त बना लेती है, जीवन के प्रति उस का नजरिया काफी उदार है. उस का मानना है कि मधुर बोलने से सुनने वाले को अच्छा लगेगा. अच्छा बोल कर उसे भी शांति मिलती है. ऐसे में फिर अच्छी बातें करने में क्यों कंजूसी की जाए. यही वजह है कि नीरजा के मित्रतापूर्ण व्यवहार से उसे हर छोटेबड़े काम के लिए औफिस या फिर घर में परेशान नहीं होना पड़ता. नीरजा के अधिकतर काम फोन पर ही हो जाते हैं.
इस के ठीक उलट सुधा की स्थिति है. सुधा का व्यवहार बहुत सीमित है और अकसर उसे हर किसी से शिकायत रहती है, जैसे आज मौसम खराब है, जिन के पास काम करवाने जाना है वे लोग बेकार हैं, बिजली नहीं है, कोई पानी तक नहीं पूछता आदि. ऐसी स्थिति में छोटे से छोटा काम भी सजा बन जाता है. सुधा की मानसिक स्थिति हमेशा थकी और दुखी रहती है. ऐसी स्थिति में दोस्त बनाना बहुत कठिन है. व्यक्ति का व्यवहार ही दोस्त और दुश्मन बनाता है.
मित्रता की भावना किशोरवय में बहुत प्रबल होती है. अकसर इस आयु में बनाए गए दोस्त काफी प्रभावशाली होते हैं. वे जीवन को एक नई दिशा देते हैं. ऐसा भी नहीं है कि प्रौढ़ अवस्था में मित्र नहीं बनते हैं. आप का स्वभाव, बात करने का तरीका, बोलचाल, व्यवहार आदि व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं.