समाज बदल रहा है. धीरेधीरे लड़का-लड़की के बीच का अंतर खत्म हो रहा है. कार्यस्थलों से ले कर समाज में हर जगह लड़कालड़की एकसाथ काम कर रहे हैं. परेशानी की बात यह है कि इतने बदलावों के बावजूद अभी तक पुरुषों की भाषा और सोच में बदलाव नहीं आया है. ऐसे में लड़कियों को कई बार असहजता का अनुभव होता है, जो विवाद का कारण भी बन जाता है. लड़कियों की सुरक्षा के लिए बने कानून इस तरह की कई घटनाओं को अपराध मानते हैं. लड़कालड़की के बीच दूरी कम हो और ऐसे विवाद न हों, इस के लिए लड़कों को अपनी सोच व बातचीत का सलीका बदलने की जरूरत है. उन्हें लड़की को एक दोस्त और सहयोगी की नजर से देखना होगा, तभी आपस में अच्छा व स्वस्थ रिश्ता पनपेगा. इस सेघरपरिवार और समाज का भला होगा. लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार करना उन को बराबरी का दर्जा देने की बड़ी पहल है.
नेहा रवि के औफिस में काम करती है. दोनों एक ही रास्ते से अपने घर को जाते हैं. पहले दोनों अलगअलग साधनों से घर से औफिस जाते थे लेकिन अब रवि ने कार खरीद ली है. सो, दोनों एकसाथ कार से ही औफिस आनेजाने लगे हैं. एकसाथ आनेजाने के बाद दोनों पैट्रोल का खर्च आपस में बराबरबराबर बांटते हैं. ऐसे में उन के बीच कभी इस बात का एहसास ही नहीं रहा कि कौन लड़का है और कौन लड़की. रवि और नेहा ने अपनी सोच बदली तो उन के बीच संबंध भी प्रगाढ़ होते गए. केवल रवि और नेहा ही ऐसे नहीं हैं. प्रकाश और कविता भी एकसाथ काम करते थे, जब कभी लंच में या सुबह की चाय का समय आता तो दोनों अपना खर्च खुद उठाते थे. इस का सब से अच्छा रास्ता यह था कि एक दिन का बिल प्रकाश देता तो दूसरे दिन का बिल कविता देती थी.
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