‘‘समीर, कितनी देर कर दी लौटने में? तुम्हारा इंतजार मुझे बेचैन कर देता है.’’
‘‘ओह सीमा, क्या सचमुच मुझ से इतना प्यार करती हो?’’ समीर भावुक हो उठे.
‘‘देखो, कितने मैसेज भेजे हैं तुम्हें?’’
‘‘क्या करूं, डार्लिंग. दफ्तर में काम बहुत ज्यादा है,’’ समीर ने सीमा को कस कर अपनी बांहों में भींच लिया. फिर जेब से फिल्म के 2 टिकट निकाल कर बोले, ‘‘आज की शाम तुम्हारे नाम. पहले एक कप गरम कौफी हो जाए, फिर फिल्म. डिनर किसी अच्छे रेस्तरां में करेंगे.’’ समीर ने प्यार से पत्नी की आंखों में झांका तो उस ने अपना सिर समीर की चौड़ी छाती पर टिका दिया. करीब 4 साल बाद.
‘‘समीर, आज एटीएम से कुछ पैसे निकाल लेना.’’
‘‘हद करती हो. पिछले हफ्ते ही तो 2 हजार रुपए निकाल कर दिए थे.’’
‘‘2 हजार में कोई इलास्टिक तो लगी नहीं थी कि पूरा महीना चल जाते.’’
‘‘फिर भी, थोड़ा कायदे से खर्चा किया करो. बैंक में नोटों का पेड़ तो लगा नहीं है कि जब चाहा तोड़ लिए.’’ रोजमर्रा की जिंदगी में अपने इर्दगिर्द हम ऐसे कई उदाहरण देखते हैं. अपनी निजी जिंदगी में भी ऐसा ही कुछ महसूस करते हैं. दरअसल, विवाह के शुरुआती दिनों में, पतिपत्नी एकदूसरे के गुणों और आकर्षण से इस कदर प्रभावित होते हैं कि अवगुणों की तरफ उन का ध्यान जाता ही नहीं. जाता भी है तो उसे नजरअंदाज कर देते हैं. धीरेधीरे जब घर बसाने और घर चलाने की जिम्मेदारी आ पड़ती है तो तकरार, बहस और समझौते की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और दोनों एकदूसरे पर दोष मढ़ना शुरू कर देते हैं, जबकि सचाई यह है कि शादी के शुरू के बरसों में सैक्स का आकर्षण तीव्र होने के कारण ये नजदीकियां बनी रहती हैं और धीरेधीरे जब सैक्स में संतुष्टि होने लगती है तो उत्तेजना कम होने लगती है और पहले वाला आकर्षण नहीं रह पाता. फलत: उन के संबंध उबाऊ होने लगते हैं.