लेखिका- प्रीता जैन
ध्यान से आना, ट्रेन में खाने-पीने का सामान अच्छे से रख लेना 1-2 बॉटल पानी की रखना कहीं भी स्टेशन पर मत उतरना, दिल्ली तो हम मिल ही जाएं गे कोई चिंता ना करना आराम से बिना टेंशन आ ही जाना मिलना हो जाएगा.
यह हिदायतें किसी बच्चे के लिए ना होकर 45 साल की विनीता के लिए थी जो अपने मायके अके ली जा रही थी. बड़े भैया अपनी तरफ से तो उसके भले के लिए ही कह रहे थे पर विनीता को अब तो सुन-सुन कभी हसी आती कि कै से बच्चों की तरह हमेशा समझाते रहते हैं तो कभी खीज भी आने लगती, जब बच्चे तक उसकी तरफ देख-देख मुस्कु राने लगते या फिर पितदेव उसे बेचारी समझ खुद भी समझाने लगते. यह सिफर् एक ही दिन की बात ना होकर रोज़ ही की है, जब भी भैया या भाभी का फ़ोन आता इधर-उधर की बातें ना कर विनीता को समझाते ही रहते ऐसा किया कर वैसा किया कर ये करना वो मत करना, यहां जाना वहां मत जाना यह सामान लेना वो ना खरीदना वगैरा-वगैरा. कहने का तात्पयर् है छोटी से छोटी बात को हर वक्त समझाकर ही कहना कुछ भी समझाते ही रहना.
इसी तरह दीपा की जेठानी रीना जो उससे 1-2 साल ही बड़ी है वह भी आज उसे बच्चों की परविरश के बारे में बता रही थी. सफर उसी दिन नहीं बल्कि जब भी उसका फ़ोन आता किसी न किसी बात पर समझाना शुरू कर देती सुबह जल्दी उठा कर नाश्ते में या खाने में यह बनाया कर,
घर को ऐसे सजाया कर यह काम ऐसे किया जाता है वह काम वैसे किया जाता है, सबके साथ ऐसा व्यवहार रख वैसा ना रख वगैरा वगैरा . शुरू-शुरू में तो विनीता सुनती रहती पर अब उसे भी
लगता कि हमउम्र ही तो है यिद और भी इधर-उधर की पढ़ाई या मनोरंजन की बातें हो तो ज़्यादा अच्छा है किन्तु ऐसा होता कहाँ है? वह सुनाती रहती विनीता सुनती रहती, कभी ना बता पाती या उसकी बातों से आभास नहीं होता कि वह भी एक सुघड़ गृहणी या मिहला है जो अपने फ़र्ज़-जिम्मेदारी निभाना बखूबी जानती है शायद आपसे भी ज़्यादा.