राहुल ने घेरे में से गेंद उठाने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहा और फिर हताशा में रोने लगा. उसे रोते देख मां भाग कर आईं और उसे उठा कर गले से लगा लिया. फिर कहा कि लगातार कोशिश करते रहो. जरूर गेंद उठाने में कामयाब होगे. उन्होंने राहुल को उन दिनों की भी याद दिलाई जब वह अपना नाम तक नहीं लिख पाता था. यह उस के ही प्रयासों का नतीजा था कि वह अपना नाम लिखने में कामयाब रहा.

इस तरह का प्रोत्साहन और सकारात्मकता एक बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए अहम है. बच्चे की अपने और दुनिया के प्रति धारणा कम उम्र में ही विकसित होती है. एक बच्चा कैसे सोचता है, वह क्या देखता है, वह क्या सुनता है, वह अपने आसपास के हालात पर कैसे प्रतिक्रिया देता है आदि बातें उस की पूरी छवि का निर्माण करती हैं. यदि एक बच्चे में चिंता, तनाव, असंतोष और भय की भावना आने लगती है, तो वह चिड़चिड़ा रहने लगता है. उस का आत्मविश्वास भी कमजोर हो जाता है.

कई शोध अध्ययनों से पता चला है कि बड़ी संख्या में बच्चे कम उम्र में ही तनाव और चिंता का शिकार हो जाते हैं. बचपन के नकारात्मक अनुभवों के चलते उन की सेहत पर जीवन भर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है.

बच्चे के तनाव और चिंता ग्रस्त होने की कई वजहें हो सकती हैं, जिन में किसी मुश्किल कार्य को करने के दौरान विपरीत स्थितियों का सामना करना भी शामिल है. बच्चा जब अपने स्कूल और ट्यूशन का काम समझने या पूरा करने में नाकाम रहता है तब भी उस में तनाव पैदा होने लगता है. वह प्रदर्शन करने व बेहतर बनने में खुद को असफल पाता है, क्योंकि उस की तुलना में उस के साथियों के लिए ऐसा करना आसान होता है. इस से वह आत्मविश्वास खोने लगता है.

बच्चे के कमजोर आत्मविश्वास को उस की शर्म या चुप्पी से समझा जा सकता है. ऐसे में मातापिता को ऐसे संकेतों को पहचानने की जरूरत होती है. ऐसी रणनीतियां अपनानी होती हैं, जिन से बच्चे को अपनी समस्याओं का सामना करने में मदद मिले और उस का आत्मविश्वास बढ़े. मातापिता की भूमिका यह सुनिश्चित करने के लिहाज से भी अहम है कि घर का माहौल दोस्ताना रहे ताकि बच्चा सुरक्षित महसूस करे और उसे बिना डांट के डर के अपनी बात को खुल कर रखने का मौका मिले.

1. संवाद कायम करें:

बच्चे में अपने परिवार के सदस्यों के साथ जुड़ाव और संवाद के साथ बचपन से ही सामाजिक कौशल विकसित होने लगते हैं. इसलिए बच्चे के साथ प्रभावी संवाद स्थापित करें. सहयोगी, सहज और स्नेहशील बनें. इस से संबंध विकसित करने में मदद मिलेगी और बच्चे में खुल कर बोलने का आत्मविश्वास बढ़ेगा.

2. अपनी पसंद चुनने का मौका दें:

अपनी पसंद चुनने, विकल्प और हालात पेश करने में बच्चे की मदद करने में अभिभावकों की भूमिका खासी अहम है, लेकिन अपनी पसंद उसे खुद चुनने दें. यह आत्मविश्वास विकसित करने का सब से अच्छा तरीका है, क्योंकि इस से फैसले लेने और ऐसी पसंद के बारे में समझने में वह ज्यादा सक्षम होता है, जिस से उसे खुशी मिल सकती है.

3. तारीफ और पुरस्कार:

अपने बच्चे को बताएं कि आप उसे प्यार करते हैं. मातापिता को बच्चे को बताना चाहिए कि हर कोई अपनेआप में खास है और हरेक की अपनी विशेष क्षमता और प्रतिभा होती है. बच्चे के लिए सकारात्मक यादों का निर्माण करें और छोटेछोटे संकेतों के माध्यम से उस की सफलता की तारीफ करें. प्रोत्साहित करने के लिए स्टिकर, कुकी या छोटी वस्तुओं के माध्यम से उन्हें पुरस्कृत करें. उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में डांटने से परहेज करें. बच्चे को अगली बार अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करें.

4. तुलना कभी न करें:

अपने बच्चे की क्षमताओं की तुलना दूसरे बच्चों के साथ कभी नहीं करनी चाहिए. सभी बच्चों के मन के भाव अलगअलग होते हैं. बच्चे की उस के साथियों से तुलना से उस में हीनभावना पैदा होती है. तुलना से बच्चे में प्रतिद्वंद्विता की भावना पैदा होती है, जिस के चलते उस में ईर्ष्या हो सकती है और यह बच्चे की सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

5. काम करने के प्रति दृढ़ होना:

बच्चा जब किसी दिए गए काम को पूरा करता है तो उसे अपने भीतर आत्मविश्वास महसूस होता है. उसे प्रोत्साहन मिलता है. उदाहरण के लिए जब विवेक ने अपने जूतों के फीते बांधने की कोशिश तो वह लगातार नाकाम हो रहा था. वह निराश होने लगा. ऐसे में उस के मातापिता

ने उसे कोशिश जारी रखने और हार न मानने का सुझाव दिया कि वह जरूर कामयाब होगा और वह सच में कामयाब रहा. बच्चे को इस तरह के उदाहरण देने की जरूरत होती है, जिन से उसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिले.

6. शिक्षकों से बात करें:

मातापिता के लिए अपने बच्चे का अपने साथियों और शिक्षकों के प्रति व्यवहार को समझना काफी अहम है, जिस से उन्हें बच्चे के सामाजिक जीवन को समझने में मदद मिले. यह जानना भी जरूरी है कि उन का बच्चा बाहरी वातावरण में कैसा व्यवहार कर रहा है, जैसे यदि वह घर पर अश्वस्त है, तो क्या वह ऐसा स्कूल में भी करने में सक्षम है?

इस से मातापिता को यह समझने में मदद मिलती है कि क्या बच्चे को कुछ सीखने में समस्या आ रही है या उस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. बच्चे के शिक्षकों और दोस्तों से बात करें ताकि उस की दिलचस्पी जानने में मदद मिले.

7. काल्पनिक खेल का इस्तेमाल करें:

काल्पनिक खेलों के माध्यम से बच्चे आसपास के लोगों और वस्तुओं से काल्पनिक हालात तैयार करते हैं और उस में अपनी भूमिका निभाते हैं. ऐसे खेलों से उन्हें बड़ा सोचने में मदद मिलती है और वे जैसा बनना चाहते हैं, जैसी दुनिया चाहते हैं, उस के बारे में पता चलता है. ऐसे खेलों में भाग लेने से मातापिता को बच्चे की कल्पनाओं में झांकने और उन्हें आत्मविश्वासपूर्वक प्रेरित करने का मौका मिलता है.

सब से अहम बात यह है कि बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए संबंधों में भरोसा होना चाहिए. अपने बच्चे से प्यार करें, एक मजबूत संबंध का निर्माण करें और उसे विकसित करें. बच्चे को मालूम होना चाहिए कि जब भी उस का आत्मविश्वास कम होगा, आप उस की मदद करने के लिए मौजूद हैं.

बच्चे के साथ भरोसेमंद और सहज संबंध विकसित करें ताकि जब भी उसे कोई समस्या हो तो वह आप के पास आए. इस से बच्चा आप की बात को सुनेगा और आप की सलाह का सम्मान करेगा. प्रमाण दे कर उसे अपनी राय विकसित करने में मदद करें. उस का आत्मविश्वास और समझ का दायरा बढ़ेगा. इस से उसे अपने साथियों के सामने अपनी बात रखने, उन की बातों को सुनने और दूसरों की राय को सम्मान देने में मदद मिलेगी. उस के लिए विभिन्न लोगों के बीच एक पहचान और आवाज हासिल करने के लिहाज से यह अहम है.

– ऋचा शुक्ला, सीसेम वर्कशौप इंडिया

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