कालेज के दिनों में सुभाष नेहा को नोट्स आदि दे कर उस की काफी मदद करता था. बाद में जब नेहा की शादी तय हो गई सुभाष तब भी बेरोकटोक उस के घर आता-जाता, जबतब फोन करता, यहां तक कि होने वाले पति और ससुराल वालों के सामने भी. मगर जब सुभाष सब की नजरों में खटकने लगा तो नेहा ने स्थिति साफ करनी चाही. इस पर सुभाष रूठ गया और नेहा पर बेवजह इमोशनल दबाव बनाने लगा.
उधर नेहा के होने वाले पति ने भी अब नेहा को सुभाष से रिश्ता समेटने की बात कह दी. नेहा दोनों तरफ से घिरी थी. अंतत: उसे सुभाष को अलविदा कहना पड़ा. सुभाष समझ नहीं सका कि सामान्य सी दोस्ती निभ क्यों न सकी.
श्वेता और आकाश तब एक स्कूल में थे. दोनों में अच्छी दोस्ती थी. शादी के बाद भी आकाश का श्वेता के घर आनाजाना चलता रहा. सोशल मीडिया में प्राइवेसी साझा करने से आकाश की हिम्मत बढ़ गई थी.
श्वेता का पति वैसे तो उदार था पर उसे लगा कि अपने घर में सेंध लग रही है. अंतत: उस ने आकाश के साथ श्वेता की दोस्ती पर प्रतिबंध लगा दिया.
इन दोनों ही स्थितियों में मददगार और अच्छे दोस्तों से इसलिए हाथ धोने पड़े क्योंकि उन्हें अपनी सीमाओं का खयाल रखना नहीं आया.
आज की शिक्षा प्रणाली, भागदौड़ भरी जिंदगी और विचारों को मिलती आजादी की वजह से स्त्रीपुरुषों की दोस्ती बहुत ही आम है. मगर इस आम सी दोस्ती को निभाने में खास बातों का ध्यान न रखा जाए तो यह दोस्ती दुख या अपमान का कारण भी बन सकती है.
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