लेखिका- प्रीता जैन
प्रणव तेरी लखनऊ वाली ज़मीन कितने की बिकी, किसने ली कहाँ का रहने वाला है, कब तक पैसे मिलेंगे क्या सौदा हुआ वगैरा-वगैरा. एक के बाद एक कई सवाल और उससे अधिक सभी कुछ जानने की इच्छा, प्रणव के बड़े भाई फ़ोन पर पूछताछ कर रहे थे वैसे तो प्रणव उनसे कुछ नहीं छिपाता था पर आज ज़्यादा बताने का उसका मन नहीं हो रहा था वजह एक-एक बात पूछ लेना और अपने बारे में कुछ ना बताना, बस! इतना कह देना सब ठीक है.
इसी तरह अंजू और उसकी बहन की बातचीत हो रही थी बातों-बातों में अंजू की दीदी ने पूछा, “तेरी कुछ बचत भी है या नहीं कुछ ज्वैलरी भी लेकर रखी थी ना तूने-- हाँ! दीदी अविनाश ने हर महीने की बचत के साथ कुछ पैसे की मेरे नाम एफडी करा दी है इसके अलावा कुछ दिन पहले हमने ज्वैलरी (सोने का एक सेट) भी खरीदी है सब सहेज कर रख दिया है तुम चिंता ना करो.” तुम बताओ दीदी क्या सेविंग्स हो रही है क्या-क्या खरीदा? “अरे! अंजू तुझे तो पता ही है मैं सब खर्च देती हूँ, बस! यूँ समझ ले अभी तो मेरे पास कुछ भी नहीं है. दीदी तुम पिछले महीने तो ज्वैलर्स के यहां गई थी और सुना था कुछ प्रॉपर्टी भी ली है अरे! वो तो सब थोड़ा-बहुत ऐसे ही है, चल छोड़ तू फ़िक्र ना कर और अपनी कुछ बता”…..
ऐसा सिर्फ प्रणव या अंजू के साथ ही ना होकर हममें से कई लोग ऐसे ही अनुभव अहसास से गुज़रते हैं. कुछ ऐसे परिचितों से बातचीत होती है जो आमने-सामने या फिर फ़ोन पर ही निजी बातें मालुम करने में माहिर होते हैं, वे इतनी जानकारी लेते हैं कि दूसरा व्यक्ति वास्तव में परेशान हो जाता है और ये विशेषता होती है कि अपने बारे में ज़रा नहीं बताना चाहते, टालमटोल ही करते रहते हैं. कई दफ़ा तो रोज़मर्रा तक की बातें अक्सर ही मालुम करते रहते हैं मसलन-- आज खाने में क्या बनाया, सारा दिन क्या-क्या किया कौन आया कौन गया, कहां-कहां फ़ोन पर बातचीत की वगैरा-वगैरा. और हाँ! पूछते-पूछते यदि उन्हें कोई बात सही नहीं लगती तो अपनी सलाह भी देने लगते हैं ऐसा करना चाहिए वैसा करना चाहिए, यह सही वो गलत…...