माहिरा एक मध्यमवर्गीय परिवार की पढ़ीलिखी और समझदार लड़की थी. पढ़ाई खत्म होते ही उस के मांबाप ने एक संपन्न घराने के इकलौते वारिस से उस की शादी करा दी. मांबाप ने अपनी तरफ से बेटी के लिए अच्छा घरबार और कमाऊ पति की तलाश की थी. वे निश्चिंत थे कि अब उन की बेटी का जीवन सुखमय बीतेगा मगर ऐसा हो न सका. शादी के कुछ समय बाद ही माहिरा को पता चल गया कि उस के पति का संबंध किसी दूसरी औरत से भी है.
माहिरा ने जब सवाल किया तो उस के पति ने दो टूक शब्दों में जवाब दिया," मैं सिर्फ तुम्हारा नहीं हो सकता. मेरे जीवन में कोई और है जो तुम से बहुत ज्यादा अहमियत रखती है. उस के बिना मैं जी ही नहीं सकता."
"तो फिर शादी भी उसी से करते," चिढ़े हुए स्वर में माहिरा ने कहा.
"मेरे मॉमडैड ने करने नहीं दिया. सो टेक इट इजी और जैसा चल रहा है वैसा चलने दो. वरना जो है उस से भी हाथ धो बैठोगी," बेशर्मी से उस के पति ने कहा.
अपने पति का जवाब सुन कर माहिरा के पास कहने को कुछ भी नहीं रह गया. उसे एक शादीशुदा जिंदगी का सुख मिल कर भी नहीं मिला था. कहने को वह एक बहुत बड़े घर की बहू बन कर आई थी मगर उस की जिंदगी से सुख और सुकून हमेशा के लिए जा चुके थे. वह खुद को कितना भी समझाने की कोशिश करती पर पति की अवहेलना उस के दिल को कचोटती रहती. वह छिपछिप कर रोती पर मांबाप से कुछ भी कह नहीं पाती. आखिर उन्हें बुढ़ापे में तकलीफ कैसे दे सकती थी.
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