लेखिका- गीतांजलि चे

सानिया की सुबह का आलम अक्सर बाकी के पहर से अलहदा जुदा होता है. जहां घड़ी की सुईयों और सानिया के काम की रफ़्तार में एक रेस लगी होती है. समय की पाबंद सानिया ने जैसा तालमेल घड़ी की सुईयों के साथ कर रखा है वैसा इस संसार में उसका और किसी के साथ नहीं है. आज भी अपना सारा काम निपटा कर वो अपनी फेवरेट लाल साड़ी पहन कर कालेज के लिए तैयार हो गयी थी कि अचानक बड़े जोरों की बरसात होने लगी.

अजीब इत्तेफाक था जब भी वो अपनी फेवरेट लाल साड़ी पहनती तो बिना मौसम बारिश होने लगती. अचानक आयी इस बारिश ने आज उसे बिना किसी छुट्टी के छुट्टी मनाने को बेबस कर दिया था क्योंकि बारिश कम होने के बजाय और प्रचंड होती जा रही थी.  कुछ ही मिनटों पहले से शुरू हुयी बारिश से सारा कैम्पस तालाब के मानिंद भर गया था. बिजली और बादल में भी मानो होड़ लगी थी कि कौन कितना विकराल स्वरूप दर्शा सकता है. जब कालेज जाने का कोई उपाय सानिया को नज़र नहीं आया तो वो अपने लिए काफी का मग लेकर झूले पर बैठ गयी. घर में उसके सिवा कोई नहीं था. राहुल आफिस के काम के सिलसिले में शहर से बाहर गया था और बच्चे स्कूल. अत: सानिया अकेले-अकेले ही प्रकृति के इस सबसे खूबसूरत अवतार का आनंद ले रही थी.

जैसे जैसे बारिश की बूंदें धरा के पेड़ पौधों से गंदगी की परत को धुलकर माटी की सौंधी-सौंधी खुशबू को बिखेर रही थी. वैसे वैसे वो सानिया के यादों की सिलवटें को भी साफ कर रही थी.

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