पूजा शर्मा
मेरी मां एक आईएएस अधिकारी रही हैं. अपने पद के कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी उन्होंने एक मां की भूमिका को भी बहुत ही अच्छे से निभाया. रोज मुझे तपती हुई धूप में स्कूल लेने आना, मेरे सिलाई के काम करना, मेरी कमजोर ड्राइंग को सुधारना, कभी भी मेरे बीमार होने पर रात-रात भर जागना, पट्टी लगाना, दवाई देना. मुझे तरह तरह की प्रतियोगिता में भाग दिलवाना, खुद भी उन प्रतियोगिता की तैयारी में जुट जाना, मेरी जीत के लिए हर संभव प्रयास करना.
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जब मां को हुआ अहसास...
एक दिन मैं पापा की जीप से अपनी एक सहेली के यहां जा रही थी, मां का राजभवन में कोई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम था, वो उसमे सम्मिलित होने गई थी. इस दौरान मेरे ड्राइवर से अचानक जीप भीड़ गई और मेरे सिर पर चोट आ गई फिर मैं अपनी एक सहेली के घर गई जो पास में रहती थी, तब तक मां को राजभवन में कुछ बेचैनी हुई. उनको कोई सूचना नहीं थी और तब मोबाइल फोन भी नहीं थे. पर मां के दिल ने उन्हें कुछ गलत होने का अहसास करा दिया और वो कार्यक्रम छोड़ मुझे ढूंढने निकल पड़ीं. जल्द ही उन्हें पता लगा की मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गई हूं, मात्र दस मिनट के अंतराल पर उन्होंने मुझे ढूंढ लिया.
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मां से मिलकर दूर हुई तकलीफ...
मां से मिलकर मेरी तकलीफ शांत हो गई और चंद पलों में ही मैं पूरी तरह ठीक महसूस करने लगी. एक मां का ही दिल उसे संतान के बारे में इस तरह अहसास करा सकता है. आज मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हूं, पर मां के अपनत्व, स्नेह और वात्सल्य से आज भी सराबोर हूं और कामना करती हूं वो हर जनम मे मेरी मां बने.