विनय एक डाक्टर है. उस की प्रैक्टिस अच्छी चलती है. लेकिन इन दिनों वह एक अजीब समस्या से परेशान है. कुछ वर्षों पहले उस ने एक सरकारी कालोनी में घर बनाने के लिए भूखंड खरीदा था. उस समय वहां अधिक बसावट नहीं थी, इसलिए वह अपने पिता के साथ अपने पैतृक घर में ही रह रहा है. अब चूंकि नई कालोनी में बसावट होने लगी है तो उस ने भी वहां घर बनाने का निश्चय किया.

नक्शा बनवाने के लिए जब विनय सिविल इंजीनियर के साथ साइट पर गया तो सड़क के दूसरी तरफ बने घरों को देख कर उस का माथा ठनक गया. वे मकान बेहद छोटे आयवर्ग के थे. विनय मन ही मन उन के और अपने रहनसहन की तुलना करने लगा. हालांकि उसे यह तुलना करना बहुत ही ओछा काम लग रहा था लेकिन मन था कि सहज हो ही नहीं पा रहा था.

“आजकल किसे फुरसत है आसपड़ोस में बैठने की. वे अपना कमाएखाएंगे, हम अपना. आप नाहक परेशान हो रहे हैं,” पत्नी ने समझाया.

“इसे बेच कर दूसरा प्लौट खरीदना आसान काम नहीं है. फिर तुम्हें इतनी फुरसत भी कहां है. बेकार ही दलालों के चक्कर में उलझ जाओगे. बहू ठीक कहती है. इसी जमीन पर बनवा लो,” पिता ने भी राय दी तो विनय बुझेमन से घर बनवाने के लिए तैयार हुआ.

अभी मकान का काम चलते कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन सड़क के दूसरी तरफ वाले किसी घर से एक व्यक्ति आया.

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“अच्छा है. पड़ोस में कोई डाक्टर होगा तो रातबेरात काम आएगा,” उस ने विनय को नमस्कार करते हुए कहा. सुनते ही विनय का मूड फिर से उखड़ गया.

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