आइंस्टीन की बिग बैंग थ्योरी को लेकर भले संदेह हो कि ब्रह्मांड निरंतर फ़ैल रहा है या नहीं.लेकिन इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि दुनिया हर पल बदल रही है.कारण कुछ भी हो.ऐसे में भले किसी की पहचान हमेशा एक सी कैसे रह सकती है.पिता नाम का,समाज का सबसे महत्वपूर्ण शख्स भी इस बदलाव से अछूता नहीं है तो इसमें किसी आश्चर्य की बात नहीं है.आज जब पिछली सदी के जैसा कुछ नहीं रहा,न खानपान,न पहनावा,शिक्षा,न रोजगार,न संपर्क के साधन तो भला पिता कैसे वैसे के वैसे ही बने रहते,जैसे बीसवीं सदी के मध्यार्ध या उत्तरार्ध में थे.पिता भी बदल गए हैं.क्योंकि अब वो घर में अकेले कमाने वाले शख्स नहीं हैं.क्योंकि अब वो अपने बच्चों से ज्यादा नहीं जानते,ज्यादा स्मार्ट भी नहीं हैं.

यही वजह है कि आज पिता घर की अकेली और निर्णायक आवाज भी नहीं हैं. आज के पिता परिवार की कई आवाजों में से एक हैं और यह भी जरूरी नहीं कि घर में उनकी  आवाज सबसे वजनदार आवाज हो.इसमें कुछ बुरा भी नहीं है और न ही इसके लिए पिताओं के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति होनी चाहिए.क्योंकि अकेली निर्णायक आवाज न घर के लिए और न ही समाज के लिए,किसी भी के लिए बहुत अच्छी नहीं होती.अकेली आवाज के हमेशा तानाशाह आवाज में बदल जाने की आशंका रहती है.

बहरहाल पहले के पिता ख़ास होने के भाव से अकड़ में रहते थे, इस कारण वह अपने बच्चों के प्रति अपने प्यार और फिक्रमंदी की भावनाएं भी सार्वजनिक तौरपर प्रदर्शित नहीं कर पाते थे.यहां तक कि पहले पिता सबके सामने अपने बच्चों को अपनी जुबान से प्यार भी नहीं कर पाते थे.वही सामाजिक दबाव, क्या कहेंगे लोग.ढाई-तीन दशक पहले जिनका बचपन गुजरा है,उन्हें मालूम है कि कैसे बचपन में ज्यादातर समय उन्हें अपने पिताओं से नकारात्मक व्यवहार ही मिलता रहा है, लेकिन आज ऐसा नहीं है.आज के पिता बच्चों के साथ किसी हद तक दोस्ताना भाव रखते हैं. आज के पिता में वह दंबगई नहीं है, जो पहले हुआ करती थी? आज के बच्चे अपने पापा  से डरते नहीं है?

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