बदलते सामाजिक मानदंडों के साथ ही आज वैवाहिक जीवन के पवित्र मूल्यों में भी कमी आई है. यही कारण है कि पिछले एक दशक में तलाकों की संख्या में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हुई है.

कुछ दशकों पहले तलाक लेने की पहल व हिम्मत सिर्फ पुरुष वर्ग ही रखता था, परंतु आज के इस नारी क्रांति कहे जाने वाले युग में महिलाएं भी तलाक के लिए पहल करने की हिम्मत रखने लगी हैं. आज की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर, स्वतंत्र विचारों वाली, जागरूक नारी, पति की जायजनाजायज मांगों के आगे ?ाकने को कतई तैयार नहीं.

यही कारण है कि सड़ती हुई शादी और गलते हुए रिश्तों की बदबूदार घुटन से बाहर निकल कर खुले आसमान में सांस लेने की हिम्मत कर वह खुद ही अलग रहने का फैसला कर लेती है. आज की नारी अपने व्यक्तित्व को निखार कर अपना वजूद कायम करना चाहती है.

जिस तरह शादी के बंधन में बंध कर 2 शरीर, 2 जिंदगियों का मिलन हो जाता है और उन के सुख, दुख आपस में बंट जाते हैं, उसी प्रकार तलाकरूपी इस त्रासदी का कुप्रभाव भी दोनों पर बराबर ही पड़ता है.

आमतौर पर तलाकशुदा महिला के आंसुओं के चर्चे काफी दिनों तक लोगों की जबान पर रहते हैं, पर पुरुषों को भीतर ही भीतर सिसकते हुए शायद ही किसी ने देखा हो. महिला जहां चाहेगी वहां अपने ऊपर हुए अत्याचारों का जिक्र कर सहानभुति हासिल करने में कामयाब रहेगी, जबकि पुरुष इन आंसुओं को पीने की कोशिश में खुद को और अधिक समेट लेता है. उस के लिए यह स्वीकार करना आसान नहीं होता कि उस की पत्नी ने उसे नकार दिया है, न सिर्फ नकारा है बल्कि अपनी जिंदगी से बेदखल भी कर दिया है.

तलाक के बाद पहले 6 महीने

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार, ‘‘यदि पत्नी तलाक ले, ऐसे में पति के अंह को ठेस लगती है. चाहे पुरुष कितना ही दंभी तथा जिद्दी क्यों न हो, यदि वह जरा सा भी संवेदनशील है तो उस के लिए तलाक के बाद के पहले 6 महीने अत्यधिक कष्टकारी हो जाते हैं.’’

भारतीय परिवेश में पुरुष का पालन ही इस प्रकार होता है कि उसे बचपन से ही कमान अपने हाथ में रखने की आदत सी पड़ जाती है और इसी प्रकार उस के पौरुष को यह मानना बहुत मुश्किल हो जाता है कि जिस महिला को वे अधिकार अपने जीवन में लाया था, वह उस के स्वामित्व को ठोकर मार कर चली गई.

शारीरिक बनावट में पुरुष चाहे स्त्री से अधिक बलशाली होगा पर भावनात्मक रूप से वह बेहद कमजोर और एकाकी होता है. यही कारण है कि तलाक जैसा फैसला नारी को जहां अपने परिवार के करीब लाता है वहीं पुरुष अपने तलाक के बाद पारिवारिक रिश्तों से और दूर हो जाता है. रिश्तों पर से उस का विश्वास उठ जाता है.

टूट जाता है मनोबल

हर व्यक्ति के अंदर एक बच्चा होता है. यह बच्चा तलाकशुदा पुरुष को यह मानने नहीं देता कि उस की पत्नी ने उसे छोड़ दिया है. इस सच को नकारने के लिए वह बच्चों की ही तरह रूठोमनाना, गुस्सा, खुद पर जानलेवा हमला जैसे नखरे कर सभी को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है. समय के साथ जैसे ही उस का मन यह मानने लगता है कि उस की पत्नी ने उसे छोड़ दिया है तो उस का आक्रोश बढ़ता जाता है. यह आक्रोश कई बार उसे खुद को हानि पहुंचाने जैसे निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है.

ऐसा पुरुष भविष्य के प्रति आशाहीन हो जाता है. सचाई का सामना करने से डरता है और खुद को ड्रग्स या शराब में डुबो देता है. घंटों कमरे में बंद रह कर आत्मग्लानि में डूबता है, दुनिया से भागना चाहता है. उन का मनोबल टूट जाता है और उस की कार्यक्षमता लगभग शून्य हो जाती है.

ऐसे कई केस होते हैं. जहां पुरुषों का इस मानसिक यातना के चलते नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता है. वे आत्मघाती हो जीवन से निराश होने लगते हैं. अत: शुरू का कुछ समय उन्हें अकेलेपन से बच कर परिवार और रिश्तेदारों के बीच ही अपना अधिक समय बिताना चाहिए.

साल गुजरते

सम?ादार और आत्मस्वाभिमानी पुरुष अपने को इस मानसिक यातना से उबारने की कोशिश करते हैं. ऐसे में कई बार वे मनोवैज्ञानिकों के पास भी जाते हैं. अपने काम पर ध्यान लगा कर जीवन को सुचारु रूप से चलाने का भरपूर प्रयास करते हैं. परंतु जीवन के प्रति निराशाओं और आत्मविश्वास में कमी अभी भी बरकरार रहती है. ये हर रिश्ते को शक की निगाह से देखते हैं और महिलाओं के प्रति इन का आदरभाव कम हो जाता है.

तलाक के पलों को कड़वा स्वाद और शादी के दिनों के कुछ सुनहरे पल अभी मन के किसी कोने में जिंदा होते हैं जो कभीकभी एक टीस सी उठा जाते हैं. अभी भी वे किसी भी प्रकार के भावनात्मक लगाव से बचते हैं और इस अनचाहे तलाक से उन के मन में भविष्य में होने वाले रिश्तों के प्रति भी एक अजीब सा डर बैठ जाता है.

नए जीवन की शुरुआत

तलाकशुदा महिला को जितने प्रेम, सम्मान और देखभाल की आवश्यकता अपने मित्रों और रिश्तेदारों से होती है, पुरुषों को उस से कम नहीं होती. ऐसे नाजुक समय में यदि कोई मित्र या करीबी रिश्तेदार सच्चे मन से उस की मदद करें तो उसे इस मानसिक तनाव से उबरने में मदद मिल सकती है और वह पूरे आत्मविश्वास के साथ जीवन को एक नई दिशा दे सकेगा.

डिप्रैशन से पूरी तरह निकलने में करीब 11/2-2 साल लग ही जाते हैं. कई बार जागरूक पुरुष ट्रीटमैंट के लिए भी आते हैं. जैसेजैसे पुरुष का आत्मविश्वास वापस आता है, उस की कार्यक्षमता भी बढ़ने लगती है और जिंदगी के प्रति आशाएं फिर सिर उठाने लगती हैं.

ऐसे में सामाजिक और पारिवारिक मांगों के चलते पुरुष पुन: विवाह में बंधने को तैयार हो जाते हैं. परंतु एक तलाकशुदा पुरुष के लिए दोबारा घर बसाना बहुत कठिन होता है, चूंकि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षाकृत अधिक शक्की होती हैं. वे बिना पूरी छानबीन के तलाकशुदा पुरुष का दामन नहीं थामना चाहती.

जिंदगी खत्म भी नहीं हो जाती पुरुषों को चाहिए कि वे बीती ताही बिसार कर आगे की सुध लें कहावत पर अमल करें. परिवर्तन जीवन का प्राथमिक सत्य है. अत: अपनी कमियों को सुधार कर दोबारा इस संबंध में कदम रखें और दूसरा विवाह न भी करना चाहें तो अपने सत्कर्मों से जिंदगी को नए आयाम दें. आखिर और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा.

घरेलू हिंसा कानून जैसे कानून पतियों को और ज्यादा भयभीत रखते हैं और वे साधारण जीवन ही नहीं जी पाते. तलाकशुदा पुरुषों को तो पारिवारिक व मित्रों की पार्टियों में भी रस्मी निमंत्रण देते हैं. कोई 2 बार उन से आने को नहीं कहता. पुरुष की मांबहनें उसे दोष देने लगती हैं और पिता, भाई सारी समस्याओं से अपने को दूर कर लेते हैं.

ऐसे पुरुष कई बार दूसरी औरत ढूंढ़ने के चक्कर में औनलाइन सर्च करने लगते हैं और ?ां?ाटों में फंस सकते हैं. उन में से निकलना आसान नहीं होता.

तलाकशुदा पुरुष का विवाह हो भी जाए तो पत्नी बड़े ठसके से रहती है कि कितना बड़ा एहसान किया है. वह देती कम है, मांगती ज्यादा है. अभी भी समाज में तलाकशुदा औरतें इतनी नहीं कि कोई मनचाही आसानी से मिल जाए.

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