एक औफिस में दो लोग वैभव और दिव्या काम करते थे. काम तो कई लोग करते थे लेकिन मैं उन दो लोगों की बात कर रहीं हूं जो ऑफिस में साथ काम करते-करते अच्छे दोस्त बन गए, लेकिन दिव्या को पता ही नहीं चला कि वैभव उसे पसंद करने लगा था. वैभव उसे रोज़ फोन करता था…उससे प्यार-प्यारी बातें करता था लेकिन उसकी कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई कि वो दिव्या को पसंद करता है. वो कहते हैं न कि कुछ खामोशियां…अगर खामोशियां ही बनकर रहें तो रिश्ता बना रहता है…शायद वैभव भी ऐसा ही सोचता था.

वैभव को दिव्या से बात करना बहुत पसंद था.उसे अच्छा लगता था खुशी होती थी जब वो दिव्या से बात करता था हर बार वो कुछ कहने की कोशिश करता था लेकिन वही खामोशी सामाने आ जाती थी. औफिस में मिलना –जुलना तो लगा ही रहता था लेकिन फोन किए बिना भी रह नहीं पाता था.एक दिन की बात है वैभव ने दिव्या को फोन किया और बोला कि मैं तुम्हें याद कर रहा हूं…बहुत मिस कर रहा हूं तब दिव्या को थोड़ा अटपटा सा लगा और उसने सवाल कर लिया कि आप मुझे क्यों याद कर रहें हैं? वैभव ने तुरन्त पलटकर जवाब दिया कि काश तुम ये कह देती कि अरे वैभव आज ही तो मिले थे हम औफिस में फिर क्यों याद आ रही है तो ज्यादा अच्छा लगता. दिव्या थोड़ा घबराई उसके हांथ-पांव ठंडे हो रहे थें. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं.उसे ये तो समझ आ चुका था कि कुछ तो है वैभव के दिल में… वो अबतक ये समझ चुकी थी कि वैभव क्या चाहता है और उसके दिल में उसके लिए क्या है, लेकिन फिर वही बात आड़े आती है कि कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दें.

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वैभव ने एक दिन दिव्या को फोन करके कहा कि तुम सफेद शर्ट और ट्राउज़र पहन कर आना दिव्या चाहती तो मना कर सकती थी लेकिन शायद वो खुद भी उसकी तरफ अट्रैक्ट हो रही थी और उसने वैभव का कहना मान लिया. वो वही कपड़ा पहन कर गई जिसमें वैभव ने उसे बुलाया था. उसी दिन की बात है…रात के करीब साढ़े बारह बज रहे थे… दोनों की बात हो रही थी और बात ही बात में वैभव ने कुछ कहा जिसपर दिव्या ने पूछा की आप इनता मेरे बारे में क्यों सोचते हो? वैभव ने कहा कि क्यूं तूम मुझे सफेद कपड़ों में अच्छी लगती हो? क्यूं मैं तुमसे आधी रात को भी मिलने के लिए तैयार रहता हूं? तुम जो भी सोचती हो मैं उसे पूरा करना चाहता हूं क्यूं ? क्यूं तुमसे मिलना मुझे अच्छा लगता है? और क्यूं तुम्हारी याद आती है?शायद इसका जवाब मैं तुम्हें दे सकता हूं लेकिन मैं खामोश रहना चाहता हूं……

दिव्या अबतक सब कुछ समझ चुकी थी और उसने धीमी सी आवाज में बस इतना ही कहा कि कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दों…..वो खामोशियां अच्छी होती हैं…. वैभव आज भी बात करता है, दिव्या भी उसे शायद चाहने लगी थी लेकिन इन सबके बीच एक मोड़ ऐसा था जिसपर दिव्या दोराह में खड़ी थी और जिंदगी में उसके कश्मकश थी..जानते हैं क्यूं? क्योंकि वो पहले से ही एक रिलेशनशिप में थी शायद इसलिए ही उसने कहा था कि कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दों…..अब ये रिश्ता गुमनाम ही रहेगा या आगे कुछ होगा ये तो वक्त ही बताएगा….

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