कभी-कभी डिजिटल रिश्तों के जाल में कुछ लोग इस तरह फंस जाते है कि उनका रिश्तों से विश्वास उठ जाता या जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाता है. तीन साल पहले एक मैचमेकिंग साईट पर मुंबई की रहने वाली कोमल वैभव नाम के एक लड़के से मिली. दोनों के बात विचार एक दुसरे से मिले तो बात आगे बढ़ी. दो-तीन बार मिलने के बाद, वैभव व्यस्त और लाइफ इशू बताकर बहाने बनाने शुरू कर दिया. मीटिंग में हूँ, शहर से बाहर हूँ, जल्दी मिलेंगे का झांसा देता रहा और कोमल भी उसकी बातों में विश्वास करती रही. लेकिन एक दिन कोमल ने उसे किसी और साईट पर देखा और छानबीन की तो पता चला कि वैभव ना कहीं व्यस्त था ना ही कोई लाइफ इशू थे, बल्कि वह 7 साल का शादीशुदा और खुशहाल जीवन जी रहा था. उसकी बीवी का कहना था कि वह डेटिंग और मत्रिमोनिअल साईटो पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर कई लड़कियों के साथ रिलेशन में था जिसका मकसद केवल सेक्सुअल फैंटेसी पूरी करना था.
आज के समय में मत्रिमोनिअल और डेटिंग साइटें वैभव जैसा इरादा रखने वाले बहुरूपियों के लिए एक आसान विकल्प बन गई है. एक अंतर्राष्ट्रीय डेटिंग एप्लीकेशन हिन्ज के मुताबिक, डेटिंग की दुनिया दिन-प्रतिदिन क्रूर होती जा रही है. ऐसे में ऑनलाइन रिलेशन में घोस्टिंग, मूनिंग और ब्रेडक्रम्बिंग इत्यादि धोखेबाजी के तरीके के बाद किटेनफिशिंग एक नया टर्म आया है जिससे आपको सतर्क रहने की जरूरत है.
क्या है किटेनफिशिंग?
यदि आप सोच रहे हैं, किटेनफिशिंग का सम्बन्ध डेट पर पालतू जानवर ले जाने या मछली पकड़ने से है तो आप गलत हैं. किटेनफिशिंग, “ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया में अपनाया जाना वाला एक हथकंडा है जहाँ एक व्यक्ति वैसा बनने या दिखाने का नाटक करना है जो वास्तव में नहीं है”. यहाँ किटेनफिशर्स पुरानी और भ्रामक फोटो के जरिये स्वयं को अवास्तविक रूप में पेश कर सामने वाले को लुभाने का हरसंभव प्रयास करते है. जैसे उम्र, लम्बाई, पसंद इत्यादि के बारे में गलत जानकारी देकर आकर्षित करना.
असल जिन्दगी में भी होती है किटेनफिशिंग
किटेनफिशिंग कोई नया ट्रेंड नहीं है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि किटेनफिशिंग केवल उनके साथ होती है जो ऑनलाइन रिश्ते बनाते है. हमारे आसपास अक्सर ऐसे लोग और किस्से कहानियां देखने-सुनने को मिल जाएंगी. एक कंपनी में कार्यरत प्रतिभा दुबे बताती है कि वो एक लड़के को डेट करती थी, जिसने बताया था कि उसके पास घर है और वो कंस्ट्रक्शन का काम करता है. लेकिन कुछ महीनों बाद पता चला, जिस घर में लड़का रहता है वो उसके कजिन का है जो दुबई रहता है. जिसके बाद उसने रिश्ता ख़त्म कर लिया. कई बार देखा गया है कि शादी से पहले जो फोटो या जानकारी दी गई रहती है सच्चाई उससे विपरीत होती है. फर्क यह है कि आज की डिजिटल मीडिया इस ट्रेंड को खूब हवा दे रही है, जहाँ एक पक्ष दुसरे की भावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज़ करके अपना उद्देश्य पूरा करता है.
मानसिक तौर पर हानिकारक
पहली नजर में देखे तो यह हानिकारक नहीं लगता है. लेकिन जब कोई जान बुझकर, एक योजना के तहत करे, तो सामने वाले पर मानसिक रूप से बुरा असर हो सकता है. भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते है कि हर व्यक्ति के मन में खुद को लेकर असुरक्षा की भावना होती है और यह एक मानवीय प्रवृत्ति है. जब कोई अपनी असुरक्षा से बाहर नहीं निकल पाता है तो नकली मुखौटे का सहारा लेता है जिसे “एंटी सोशल मल्टीपर्सनालिटी डिसऑर्डर” कहते है. ये लोग काफी शार्प माइंड के होते है. विशेष बात यह है कि इन लोगों को दुसरे की भावनाओं या तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्यों फंस जाते है लोग
डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, ऑनलाइन डेटिंग के जाल में ज्यादातर वे लोग फंस जाते है जो डिजिटल वर्ल्ड में पहली बार कदम रखते है और इमोशनल होते हैं. और ऐसे लोग सामने वाले की बातों में आसानी से आ जाते है. इसके अलावा ऐसे लोग भी फंस जाते हैं जो बाहरी दुनिया से कम लगाव रखते है और अकेलेपन से छुटकारा पाना चाहते है. ऐसे में ऑनलाइन डेटिंग एप्लीकेशन और साईटो पर दोस्ती करना या साथी ढूँढना एक आसान विकल्प के रूप में उनके सामने उपलब्ध होता है.
किटेनफिशर्स को कैसे पहचाने
हमारे आसपास ऐसी मानसिकता के कई लोग मिल जाएंगे है, जो अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर आपको प्रभावित करने की कोशिश करते है, जिन्हें आप नजरअंदाज़ कर देते है या समझ नहीं पाते है. डॉ. त्रिवेदी कहते हैं, ये लोग आसानी से पहचान में नहीं आते. यदि थोड़ी सी सतर्कता बरती जाए तो बहुत जल्दी इस तरह की मानसिकता को समझ सकते है.
-यदि आप किसी से ऑनलाइन मिले हो, और उसके फोटो एक दुसरे से भिन्न हो. जैसे फोटो पुरानी या एडिटेड हो.
-यदि कहे, मीटिंग में है, ऑफिस के काम से बाहर है इत्यादि, लेकिन ऑफिस के बारे में कोई जानकारी ना दे.
-बात करते वक़्त यदि अपने परिवार या दोस्तों की बात ना करें. उनसे मिलाने के नाम पर बहाने करे.
-किसी सार्वजानिक जगह पर मिलने के बजाय अकेले में मिलने की बात करे.
-ऑनलाइन बात करते वक्त विदेश घुमने, जिम जाने, किताबे पढने की बात करें, लेकिन मिलने पर उससे सम्बंधित जानकारी या लक्षण ना दिखाई दे.
कैसे बचें
ऐसे लोगों से बचने के लिए हमें स्वयं सतर्क रहने की जरूरत है जिसके लिए आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे- यदि आप ऑनलाइन रिश्ता देख रहे है तो एकदम से सामने वाले पर विश्वास ना करें. उनकी बात सुनकर उत्साहित ना हो, ना ही मिलने की जल्दीबाजी करे. मिलने से पहले फ़ोन पर बात करें, विडिओ कालिंग करे. मिलने के बाद भी उसे जांचना परखना ना छोड़े. उसके घर-परिवार और दोस्तों के बारे में जाने और उनसे मिलने की बात करें. साथ ही उसे भी अपने परिवार और दोस्तों से मिलाये.
यदि आप इन बातों का ध्यान रखते हुए सतर्कता बरतते हैं तो सही साथी के तलाश में ऑनलाइन डेटिंग या मत्रिमोनिअल साईटें भी काफी उपयोगी साबित हो सकती है. ऐसे ना जाने कितने लोग हैं जिन्हें ऑफ़लाइन से बेहतर जीवनसाथी ऑनलाइन मिल जाते है. ऐसे में कहना गलत ना होगा, इरादा साफ रखे तो कोई भी जरिया गलत नहीं होता है, बस हमें सतर्कता और जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.
ऑनलाइन या ऑफलाइन हो, वे मॉडर्न डेटिंग टर्म जिसको हममे से कई लोगों ने अनुभव किया होगा–
–घोस्टिंग यानी जब कोई फ्रेंड और प्रेमी आपके जिन्दगी से अचानक से बिना कुछ कहे गायब हो जाए और कांटेक्ट के सारे रास्ते बंद कर ले.
–स्लोफेड यानी जब कोई किसी उभरते हुए रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो, तो धीरे-धीरे बातचीत और संपर्क कम करके रिश्ता तोड़ता हो.
-ब्रेडक्रम्बिंग एक ऐसा डेटिंग टर्म है जहाँ एक व्यक्ति रिश्ता बनाने के बिना किसी इरादे के प्यार भरे संदेश भेजकर भावनाओं के साथ खेलता हो.
–शिपिंग यानी एक रिश्ते में रहते हुए कई लोगों के साथ रोमांटिक रिलेशन रखना.
–कैच और रिलीज टर्म में एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति का तब तक पीछा या प्रभावित करने का प्रयास करता है जब तक वो उसे मिल नहीं जाता है और मिलते ही छोड़ देता है.
–बेंचिंग एक ऐसा टर्म है जहाँ एक व्यक्ति अपने संभावित प्रेमी के इंतज़ार में हो, साथ ही विकल्प भी खुले रखे हों.
-कुशनिंग यानी एक साथी के रहते हुए डेटिंग के सभी विकल्प खुले रखना. सिर्फ इसलिए कि मुख्य रिश्ता ठीक से ना चल रहा हो.