यौन संबंधों की आजादी की वकालत करना तो अच्छा लगता है पर यह आजादी भारी भी पड़ती है. जैसे नारायणदत्त तिवारी को अपने आखिरी दिनों में अपने जैविक बालिग बेटे को अपनाना पड़ा तो उस की मां को अपने जीवन में अपनी निजी इच्छा के खिलाफ फिर प्रवेश की इजाजत देनी पड़ी.

कांगे्रसी नेता दिग्विजय सिंह की खूब फजीहत उड़ी जब उन के एक पत्रकार के साथ संबंधों के राज ही नहीं, अंतरंग क्षणों के फोटो भी जगजाहिर हो गए.

दिल्ली में एक पुत्र ने 18 साल पहले हुई अपने पिता की मौत के लिए एक पुलिस वाले और अपनी मां के संबंधों को ले कर अदालत का दरवाजा खटखटाया है. इस मामले में 18 साल पहले उस के पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हुई बताया गया और उस के बाद एक पुलिस वाले का घर आनाजाना बढ़ गया. अब जब बेटा 25 साल का हो गया तब भी उस पुलिस वाले का घर आना बरकरार रहा. बेटे ने सामाजिक आपत्ति की दुहाई देते हुए उस व्यक्ति को घर आने से रोका तो उसे धमकी दी गई कि जिस तरह उस के बाप को रास्ते से हटा दिया गया था, उसी तरह उसे भी हटा दिया जाएगा. बेटे ने अब मां और उस के मित्र के खिलाफ पिता की हत्या की जांच के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

विवाह या बच्चे दिल पर ताला नहीं लगा सकते. अगर स्त्रीपुरुष में लगाव पैदा होने लगे तो लोग अपने पूरे कैरियर, कामकाज, वर्षों के धंधे और राजपाट तक को दांव पर लगा देते हैं. बालिगों के बीच बनते संबंधों पर आसानी से रोक भी नहीं लगाई जा सकती. विवाहित साथी की तलाक की मांग से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उस के बाद विवाहित साथी को न सिर्फ आर्थिक कष्ट झेलने पड़ सकते हैं, अकेलापन व सामाजिक अवहेलना भी सहनी पड़ सकती है.

बच्चे भी अकसर बंट कर रह जाते हैं. उन का ध्यान अपने कैरियर से हट कर दूसरी ओर चला जाता है. यदि तलाक की लंबी उबाऊ प्रक्रिया चालू हो जाए तो बच्चों के पालनपोषण के अधिकार को ले कर वे चक्की के 2 पाटों में पिसने लगते हैं.

विवाह बाद के संबंधों में कानूनी रोक असंभव है, क्योंकि इस का अपराधीकरण करना एक नई मुसीबत को सामने लाना होगा. हमारे कानून में पति अपनी पत्नी के दूसरे से संबंधों पर आपराधिक कानूनी कार्यवाही तो कर सकता है पर उसे साबित करना पड़ेगा कि दोनों में यौन संबंध हैं. इस दौरान उस की फजीहत ज्यादा होगी इसलिए यह हक भी कम इस्तेमाल होता है.

विवाह एक सामाजिक समझौता है और दोनों पक्षों को इसे खुशीखुशी मानना चाहिए. यही सुख का आधार है. बाहर सुख ढूंढ़ना चाहोगे तो कंकड़ और कांटे ज्यादा मिलेंगे कहकहे कम. जहां यह होने लगे वहां पतिपत्नी दोनों को इस पर परदा डाल कर रखना चाहिए और बातबेबात हल्ला नहीं मचाना चाहिए. यह सोचना कि मरनेमारने की घुड़की से साथी को हराया जा सकता है, गलत है. परेशान साथी फिर बाहर शांति और सुकून ढूंढ़ता है.

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