चाहें या न चाहें अक्सर हमें गुस्सा आ ही जाता है और अक्सर इसे हम अपने बच्चों पर निकालते हैं. गुस्सा भले ही उन पर आ रहा हो या नहीं पर हाथ उठाने में देर नहीं लगती. कभी बच्चे पर अंकुश लगाने के लिहाज से तो कभी कम नंबर लाने पर, कभी उस की किसी मांग को पूरी कर पाने में असमर्थ होने पर तो कभी घरबाहर के तनावों की वजह से हम अपने बच्चे की पिटाई शुरू कर देते हैं. पर क्या आप जानते हैं कि इस का असर क्या होता है.

बच्चे के कौन्फिडेंस पर पड़ता है असर

कई शोध बताते हैं कि अभिभावकों का मारनापीटना बच्चों के आत्मविश्वास पर असर डालता है, उन में हिंसा की भावना को जन्म देता है और डिप्रेशन पैदा करता है.चाइल्ड साइकोलौजिस्ट्स के मुताबिक ऐसे बच्चे जो घर में शारीरिक,मानसिक प्रताड़ना के शिकार होते हैं वे आगे चल कर आत्मविश्वास की कमी और कमजोर निर्णय क्षमता के साथ बड़े होते हैं. परिवार के साथ उन की दूरी इतनी बढ़ जाती है कि वे समाज में नए अपराधी की शक्ल में सामने आने लगते हैं.

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14 साल के सोनू को जब गुस्सा आता है तो वह अपना आपा खो देता है. कभी दीवार पर हाथ मारता है तो कभी सिर. कभी सामने वाले पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगता है तो कभी हाथ में जो भी चीज़ है जमीन पर दे मारता है. स्कूल और पासपड़ोस से सोनू की शिकायतें आने लगीं तो घरवाले चिंतित हो उठे. घरवाले यह नहीं समझ पा रहे थे कि सोनू के ऐसे बर्ताव के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. घरवालों ने उस के साथ बचपन में जैसा व्यवहार किया वही बर्ताव अधिक उग्र रूप में सोनू का स्वभाव बन गया था. घरवालों ने शुरू में कभी भी उस के गुस्से को सीरियसली नहीं लिया. उस की सीमाएं और गुस्से के खतरे से आगाह नहीं किया.  न ही उन्होंने अपने बर्ताव में बदलाव लाये. नतीजा अब सोनू का स्वभाव समाज में स्वीकार नहीं किया जा रहा.

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