रमा उत्तर भारत से मुंबई में नईनई आई थी. वह एक ब्यूटीपार्लर में गई तो वहां उसे एक दूसरी महिला भी अपने नंबर का इंतार करती मिली. रमा की साफ हिंदी सुन कर उस महिला ने बात शुरू की, ‘‘आप भी नौर्थ इडियन हैं?’’
रमा ने कहा, ‘‘जी, आप भी?’’
‘‘हां, मेरा नाम अंजू है, मैं दिल्ली से हूं. आप कहां से हैं?’’
‘‘मेरठ से.’’
दोनों में बातें शुरू हो गईं. अंजू ने बहुत सारी बातें शुरू कीं, बताया कि वह घर में ही सूट बेचने के लिए रखती है. उसे कुछ काम करना पसंद है, ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है, नौकरी तो मिल नहीं सकती, तो इस काम को वह ऐंजौय करती है और उस का काम अच्छा चलता है.
अंजू ने वहीं बैठेबैठे रमा से उस का फोन नंबर और घर का पता लिया जो रमा ने खुशीखुशी दे दिया. वह भी खुश थी कि आते ही अपने एरिया की हिंदी बोलने वाली एक फ्रैंड बन गई. दूसरे दिन ही अंजू को अपने घर आया देख रमा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
रमा ने अपनी फैमिली से भी अंजू को मिलवाया. दोनों ने एकसाथ बैठ कर खाना खाते हुए बहुत सी बातें कीं. इतने कम समय में दोनों एकदूसरे से खूब मिक्स हो गए.
कुछ दिनों बाद अंजू ने रमा के परिवार को भी घर बुलाया. सब एकदूसरे से मिल कर खुश ही हुए. कुछ महीने यों ही एकदूसरे से मिलतेजुलते बीत गए.
स्वार्थ की दोस्ती
रमा ने अपनी सोसाइटी में ही एक किट्टी ग्रुप जौइन कर लिया था. अंजू को पता चला तो कहने लगी, ‘‘जब तुम्हारी किट्टी पार्टी का नंबर आएगा, मैं अपने कुछ सूट, ड्रैसेज बेचने के लिए ले आऊंगी, हो सकता है कोई कुछ खरीद ले.’’