माया जब 5 वर्ष बाद अपनी बड़ी बहन सिया से मिली तो उसे वह बड़ी उदास सी दिखाई दी. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘दीदी, क्या बात है, आप के चेहरे की तो रौनक जैसे खो ही गई, कोई परेशानी है क्या?’’
‘‘परेशानी तो नहीं है माया बस ढलती उम्र है, हड्डियां जवाब देने लगी हैं और ऊपर से बाल झड़ना और चेहरे की झुर्रियां. यों कहो उम्र अपना असर दिखा रही है. चेहरा तो उदास दिखेगा ही,’’ सिया बोली.
‘‘आप ऐसा क्यों सोचती हैं दीदी. उम्र से क्या फर्क पड़ता है. थोड़ा बनठन कर और चुस्तदुरुस्त रहा करो.’’
‘‘किस के लिए माया. अब इस उम्र में कौन देखने वाला है? बच्चे भी होस्टल में हैं. फिर मैं एक विधवा हूं. बनठन कर रहूंगी तो लोग क्या कहेंगे? लोग मुझे शक की नजरों से देखने लगेंगे,’’ सिया ने कहा.
‘‘अरे, इस में क्या बुरा है? क्यों शक करेंगे लोग? कोई देखने वाला नहीं और विधवा होना आप का दोष तो नहीं. अपने जीवन व शरीर के प्रति उदासीन हो जाना ठीक नहीं. जब बच्चे अपनेअपने परिवार में व्यस्त हो जाएंगे तो कौन संभालने वाला है आप को. यदि आज जीजू होते तो वे आप का ध्यान रखते. लेकिन अब उन के न होने से आप को ही अपनेआप का ध्यान रखना चाहिए वरना 40 के बाद बढ़ती उम्र के साथसाथ शरीर में बीमारियां भी घर करने लगती हैं.’’
‘‘कहती तो तुम ठीक ही हो माया, लेकिन अकेलापन खाए जाता है. पहले तो बच्चों में व्यस्त रहती थी, पर अब सारा दिन अकेली घर बैठे रहती हूं. वक्त काटे नहीं कटता,’’ सिया ने कहा.