‘‘कैसी हो निधि? तुम्हारी तबीयत कैसी है? जल्दी से ठीक हो जाओ...मैं तुम्हारी पसंद की सब्जी बना कर लाई हूं. तुम्हें परवल पसंद हैं न?’’ निधि की पड़ोसिन चित्रा ने घर में घुसते हुए कहा.
‘‘यार, तुम कब तक मेरी पसंद की चीजें बना कर लाती रहोगी. अब मैं ठीक हूं, खाना बना लूंगी. तुम अब मेरे लिए और परेशान मत हो,’’ निधि ने बिस्तर से उठते हुए मुसकरा कर कहा.
‘‘नहीं चित्राजी, मैं तो तुम्हारी सहेली के हाथ का बेस्वाद खाना खाखा कर बोर हो गया हूं. कृपया 2 दिन निधि को और आराम करने दो ताकि मैं आप के हाथों का बना स्वादिष्ठ खाना और खा सकूं,’’ निधि के पति निर्मल ने चित्रा को बैठने के लिए इशारा करते हुए कहा.
‘‘कैसी बात करते हैं निर्मलजी, सुबह से कोई मिला नहीं क्या? जैसे मैं ने निधि के हाथों का बना खाना कभी खाया नहीं.. इस के हाथों का खाना खा कर किट्टी पार्टी में सब अपनी उंगलियां चाटती रह जाती हैं.’’
इतना सुनते ही निर्मल खिलखिला कर हंस पड़ा. चित्रा ने निधि के चेहरे के कठोर भाव पढ़ लिए थे. जब भी निर्मल चित्रा के साथ इस तरह की चुहल करता तो निधि के चेहरे के भाव ऐसे ही हो जाते थे, यह वह पिछले 10 दिनों में भांप चुकी थी और यह देख कर उसे महसूस हुआ कि वह निर्मल के इस व्यवहार से अपनेआप को असुरक्षित महसूस करती है.
थोड़ी देर इधरउधर की बातें होती रहीं, उस के बाद चित्रा अपने घर लौट आई. आज उस का मन निधि के चेहरे के तने हुए भाव को देख कर कुछ कसैला सा हो गया था. उस ने सोचा कि अब तो निधि काफी ठीक हो गई है और थोड़ाबहुत खाना बना सकती है. फिर निधि भी तो यही चाहती थी, इसलिए उस ने उस के लिए खाना न देने में ही भलाई समझी.