इन्हें नकचढ़ी कहूं या मगरूर, लड़ाकू कहूं या मैंटल, समझ में नहीं आता. कुछ दिनों से इन्हीं के बारे में सोच रही हूं. ये साल भर पहले ही हमारे पड़ोस में शिफ्ट हुई हैं. इन की उम्र 40-45 के बीच होगी. खातापीता परिवार है. पति अच्छी जौब करते हैं. दोनों लड़के 10वीं व 11वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं. इन का नाम है दामिनी. यथा नाम तथा गुण. सारा दिन पति व बच्चों पर रोब झाड़ती रहती हैं. जो सामने आ जाए उसी पर बरस पड़ती हैं. न कोई इन के घर आता है न ये किसी के घर जाती हैं. इन से साल भर में 3-4 बार ही मुलाकातें हुई हैं. अजीब करैक्टर हैं.

कहती हैं, ‘‘मेरे लिए तो सिर्फ 3 लोग हैं जिंदगी में जिन के लिए जीती हूं. पति व दोनों बच्चे.’’ ससुराल में कोई  और नहीं है. ससुर कब के गुजर चुके हैं, सास को इन्होंने देखा ही नहीं. मायके में भरापूरा परिवार है. लोकल होने के बावजूद साल में एकाध बार ही जाती हैं.

कहती हैं, ‘‘रह ली बहुत आप लोगों के साथ. अब तो पति के साथ रहने दो.’’ पति भी सुदर्शन व गठीले शरीर के मालिक हैं. पति पर बड़ा नाज है. जब भी नजर आती हैं इठलातीबलखाती नजर आती हैं.

एक बार मैं डरतेडरते किसी काम से इन के घर गई. 10-15 मिनट में सब की धुलाई कर दी-भाइयों, भाभियों, पड़ोसियों की. भाइयोंभाभियों से इन की बनती नहीं है. कहती हैं, ‘‘मांबाप भी बेटों के ही होते हैं. पड़ोसियों की तरफ देखो तो नजर घुमा लेते हैं. घमंडी कहीं के.’’ न जाने कब तक इन का निंदा पुराण चलता अगर मैं वहां से चली न आती. यदाकदा इन की बच्चों पर चिल्लाने की आवाजें आती रहती हैं. एक दिन तो हद हो गई. उन की चीखनेचिल्लाने की इतनी भयंकर आवाज सुन कर हम भी सहम गए.

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