मायके में परिवार की चहेती और अपने तरीके से जीवन जीने वाली लड़की विवाहोपरांत जब ससुराल आती है तो नए घरपरिवार की जिम्मेदारी तो उस के कंधों पर आती ही है, साथ ही उस के नएनवेले गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं सासससुर, ननददेवर जैसे अनेक नए रिश्ते. इन सभी रिश्तों को निभाना और इन की गरिमा बनाए रखना नवविवाहिता के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है.
ननद चाहे वह उम्र में बड़ी हो या छोटी सब की चहेती तो होती ही है, साथ ही परिवार में अपना अलग और महत्त्वपूर्ण स्थान भी रखती है. जिस भाई पर अभी तक केवल बहन का ही अधिकार था, भाभी के आ जाने से वह अधिकार उसे अपने हाथों से फिसलता नजर आने लगता है, क्योंकि अब भाई की जिंदगी में भाभी का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है.
परिवार में एक नवीन सदस्य के रूप में प्रवेश करने वाली भाभी ननद की आंखों में खटकने लगती है. कई बार ननद भाभी को अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगती है और फिर अपने कटु व्यवहार से भाईभाभी की जिंदगी को नर्क बना देती है.
अनावश्यक हस्तक्षेप
एक स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकीं लीला गुप्ता कहती हैं, ‘‘मेरी इकलौती ननद परिवार की बड़ी लाडली थीं. विवाह हो जाने के बाद भी अपनी ससुराल से ही मायके को संचालित करती थीं. जब भी मायके आती थीं तो मेरे सासससुर उन्हीं की भाषा बोलने लगते थे. मैं भले कितने ही मन से कोई वस्तु या कपड़ा अपने या घर के लिए लाई हूं अगर वह ननद ने पसंद कर लिया तो वह उन्हीं का हो जाता था. यहां तक कि मेरे जन्मदिन पर मेरे लिए पति द्वारा लाया गया उपहार भी यदि उन्हें पसंद है तो उन का हो जाता था.
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