जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं जब हमें दूसरों के सहयोग व सहभागिता की जरूरत पड़ती है. मकान बनवा रहे हैं तो आर्किटैक्ट से ले कर प्लंबर, इलैक्ट्रीशियन, दफ्तर में काम कर रहे हैं तो अपने सहकर्मियों और कोई सामाजिक कार्य हो तो परिवार के सदस्यों से ले कर कैटरर, टैंट हाउस वाले व घर के सेवकों के सहयोग की जरूरत पड़ती ही है. इंसानियत का तकाजा यह है कि मदद का हाथ थामने में हिचकिचाएं नहीं. हां, मदद करने वाले का शुक्रिया अदा करते हुए उसे एहसास कराएं कि सचमुच यदि उन का साथ न मिलता तो आप कामयाब न हो पाते. हो सके तो उन्हें कोई गिफ्ट भी दें.
दफ्तर की टीम का आभार : दफ्तर का काम टीमवर्क पर आधारित होता है. क्लास वन से ले कर क्लास फोर तक हर कर्मचारी कोई भी काम एकदूसरे के सहयोग के बिना पूरा नहीं कर सकता. मान लीजिए, आप को एक प्रैजेंटेशन अपने सीनियर अधिकारियों के सामने पेश करना है. आप की प्रमोशन और वेतनवृद्धि सबकुछ इसी प्रैंजेंटेशन पर निर्भर है. निश्चितरूप से आप को कुछ आंकड़ों और कुछ मैटीरियल की जरूरत होगी. हालांकि यह युग कंप्यूटर का है, फिर भी आप को संबंधित विभाग के कर्मचारियों से मदद लेनी ही पड़ेगी. यदि ऐनवक्त पर कंप्यूटर खराब हो गया तो आप को हैल्प डैस्क और सर्विस डैस्क से भी संपर्क करना पड़ सकता है. ऐसे में जब भी काम पूरा हो जाए, आप अपनी पूरी टीम को धन्यवाद देना न भूलें. बच्चों की टीम को धन्यवाद : दिल्ली की मशहूर बाल मनोवैज्ञानिक शैलजा सिंह कहती हैं कि बच्चों की जरा सी गलती पर हम उन्हें डांटना या भाषण देना शुरू कर देते हैं. उन्हें सुधारने के बहाने उन की आलोचनाएं शुरू कर देते हैं. यह नहीं सोचते कि वे हर काम हमारी तरह कैसे कर सकते हैं. इस से कुछ फायदा तो होता है नहीं, बल्कि बच्चों का मनोबल गिर जाता है. काम से उन का मन हट जाता है. यहां तक कि कुछ बच्चे डिप्रैशन का शिकार भी हो जाते हैं.