जब निशा और रमेश ने शादी के 15 साल बाद एकदूसरे से अलग होने का फैसला किया तब निशा को मालूम नहीं था कि उस के हक क्या हैं, किसकिस चीज पर उसे हक मांगना चाहिए और किस चीज पर नहीं. इसलिए उस ने घर की संपत्ति में से अपना हिस्सा नहीं मांगा, जिस पर दोनों का अधिकार था. चूंकि रमेश ने बच्चे निशा के पास ही रहने दिए तो घर की संपत्ति पर उस का ध्यान ही नहीं गया जबकि निशा भी कामकाजी थी और मुंबई के उपनगर मीरा रोड में दोनों जिस फ्लैट में रहते थे, उसे दोनों के कमाए गए साझे पैसे से खरीदा गया था.

दरअसल, तलाक के समय निशा इतनी टूट गई थी कि भविष्य की किसी सोचसमझ या आ सकने वाली परेशानी पर अपना ध्यान ही नहीं लगा सकी. वास्तव में तलाक इमोशनल लैवल पर ऐसी ही चोट पहुंचाता है. लेकिन इस के आर्थिक परिणाम और भी खतरनाक होते हैं.

तलाक के कुछ महीनों बाद ही निशा को एहसास हो गया कि वह बड़ी गलती कर बैठी है. कुछ ही दिनों की अकेली जिंदगी के बुरे अनुभवों से वह जान गई कि सारी संपत्ति रमेश को दे कर उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. तब उस ने रमेश से अपना हिस्सा मांगा और याद दिलाया कि मकान उन दोनों ने मिल कर खरीदा था.

प्रौपर्टी पर कानूनन हक

कानून के मुताबिक, वैवाहिक जीवन के दौरान खरीदी गई कोई भी प्रौपर्टी पतिपत्नी दोनों की होती है. उस पर दोनों का ही मालिकाना हक होता है. याद रहे यह नियम तब भी लागू होता है, जब संपत्ति खरीदने में पत्नी की कोई भूमिका न हो. हां, मगर विरासत में मिली या कोई दूसरी प्रौपर्टी इस कानून के दायरे में नहीं आती. लेकिन जिन चीजों में पत्नी का हक बनता है उन में अगर सुबूत न भी हों तो भी उन में पत्नी को हक मिलता है.

निशा के मामले में प्रौपर्टी यानी मकान रमेश के नाम था. लेकिन घर के लिए गए लोन में वह सहआवेदक और सहऋ णी थी. साथ ही उस ने अपने अकाउंट से घर के लिए कई ईएमआई भी अदा की थीं. तलाक के बाद अभी तक उस ने होम लोन ईएमआई का ईसीएस मैंडेट भी खत्म नहीं किया था. इस वजह से पति से अलग होने के बाद भी 2 महीने तक होम लोन की 2 ईएमआई उस के खाते से निकल गईं. इसे देख निशा ने अपने बैंक को आगे की ईएमआई रोकने के लिए कहा. इस पर बैंक ने इस के लिए लंबाचौड़ा प्रोसैस बता दिया, जिसे पूरा किए बिना इसे रोक पाना मुमकिन नहीं.

मुआवजे की मांग

तलाक के कुछ ही महीनों बाद सामने आ गई यह अकेली परेशानी नहीं थी. कई और परेशानियों ने उसे अचानक आ घेरा. दरअसल, निशा ने तलाक के वक्त पति से बच्चों की परवरिश के लिए किसी किस्म के मुआवजे की कोई मांग नहीं की थी. उस समय उसे लग रहा था कि वह जो कमाती है, उसी में कैसे भी कर के पूरा कर लेगी. उसे आर्थिक दिक्कत महसूस होने लगी.

निशा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि उस ने अपना हक न मांग कर बड़ी गलती कर दी है.

अगर साथ रहना संभव न रह गया हो और तलाक लेना जरूरी बन गया हो तो किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानते हैं:

अपना हिस्सा जरूर लें:

कानून के मुताबिक अगर शादी के दौरान कोई प्रौपर्टी  खरीदी गई है, तो उस में पतिपत्नी दोनों की बराबर की हिस्सेदारी होती है. भले किसी एक ने ही अपनी कमाई से उसे खरीदा हो. यह हिस्सा तब भी मांगें जब आप आर्थिक रूप से मजबूत हों, क्योंकि तलाक के बाद किसी की भी जिंदगी में बड़ा आर्थिक बदलाव आ सकता है. जब लग रहा हो कि अब तलाक हो ही जाएगा तो उस समय कुछ और आर्थिक सजगता अमल में लाना जरूरी है जैसे साझे बैंक अकाउंट्स और क्रैडिट कार्ड्स जितनी जल्दी हो बंद कर दें.

इस मामले में विकास मिश्र का अनुभव आप को बहुत कुछ बता सकता है. विकास का जब शादी के 3 साल बाद सुनीता से तलाक हो गया तो उस के कुछ दिनों बाद उसे कूरियर से मिला पत्नी के एड औन क्रैडिंट कार्ड का भारीभरकम बिल बहुत नागवार गुजरा. वह गुस्से में भड़क उठा.

उस ने एक पल को तो सोचा कि क्रैडिट कार्ड बिल फाड़ कर फेंक दे. पैसा वह किसी भी कीमत पर नहीं चुकाना चाहता था. लेकिन उस के फाइनैंस ऐडवाइजर ने बताया कि पेमैंट डिफाल्ट से उस के क्रैडिट स्कोर पर भारी असर पड़ेगा. इसलिए विकास ने वह बिल चुका कर अपने बैंक को फोन कर के उस क्रैडिट कार्ड को ब्लौक करने को कहा.

बकाया लोन चुकाएं:

जब राजेश और सुमन तलाक ले रहे थे, तो कार सुमन ने अपने पास रखी, जिस के लिए दोनों ने मिल कर लोन लिया था. कार की 11 ईएमआई बची हुई थीं. तलाक के बाद जब राजेश ने किस्तें देना बंद कर दीं तो लोन चुकाने के लिए बैंक की ओर से उन से संपर्क किया गया.

राजेश ने पैसा सुमन से वसूलने के लिए कहा. सुमन ने कर्ज की बाकी रकम चुका भी दी. फिर भी बैंक ने राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया. ऐसा क्यों किया गया. इस पर क्रैडिट इन्फौरमेशन ब्यूरो (सिबिल) में सीनियर अधिकारी कहते हैं कि अगर किसी कपल ने ज्वौइंट लोन लिया है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी दोनों की है. तलाक के बाद भी वे इस फाइनैंशियल लायबिलिटी से मुक्त नहीं हो सकते.

क्रैडिट स्कोर पर रखें नजर:

अलग होने वाले कपल को अपने क्रैडिट स्कोर के बारे में खास सावधानी बरतनी चाहिए. अगर कोई ज्वौइंट लोन बकाया है, तो उस की पेमैंट को ले कर कभी भी विवाद हो सकता है. इस का असर दोनों के ही क्रैडिट स्कोर पर पड़ सकता है. यह तब भी हो सकता है जब बैंक अपना कर्ज वसूल ले.

राजेश और सुमन के मामले में राजेश ने सुमन के लिए ही कार का लोन लिया था और अंतत: चुकाया भी उसी ने. लेकिन इस के बाद भी राजेश डिफाल्टर हो गया, क्योंकि बुनियादी तौर पर किस्त वही भरता था. उसी की अकाउंट से जाती थी. मगर तलाक के बारे में उस ने बैंक को अपनी तरफ से सूचित नहीं किया और न ही ऐसे समय में पूरा किया जाने वाला प्रोसैस पूरा किया, इसलिए बैंक ने अपना कर्ज वापस पाने के बाद भी राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया.

दरअसल, डिवौर्स सैटलमैंट में किसी एक को लोन चुकाने के लिए भी अगर कहा जाता है, तो भी बैंक के साथ औरिजनल ऐग्रीमैंट नहीं बदलेगा. जिस में दोनों पार्टनर की लोन चुकाने की जवाबदेही है.

परिसंपत्तियों का बंटवारा:

अगर तलाक आपसी सहमति से होता है तो संपत्तियों के बंटवारे जैसी तमाम परेशानियों से बचा जा सकता है. हालांकि यह तभी हो पाता है, जब अलग होने वाले पार्टनर सही डिमांड करें. अलग होते वक्त दोनों को एसैट्स और लायबिलिटी की लिस्ट बना लेनी चाहिए. उन की मार्केट वैल्यू का ठीकठीक पता लगा लेना चाहिए.

कपल आपसी सहमति से इन सभी चीजों का बंटवारा कर सकते हैं और बकाया लोन के लिए जवाबदेही भी आपस में बांट सकते हैं. हालांकि यह काम करना इतना आसान नहीं है, जितना लगता है. फिर भी कोशिश की जाए तो दोनों को ही फायदा है. दोनों मिल कर तय कर सकते हैं कि पत्नी को घर मिले और दूसरे एसैट्स पति को.

ऐसा इसलिए क्योंकि पत्नी घर मिलने से खुद को आर्थिक तौर पर सुरक्षित महसूस करेगी. यह अलग बात है कि इस के बाद भी उसे फिक्स्ड इनकम की जरूरत होगी जो घर से नहीं मिल सकती. इसलिए पत्नी को ऐसे एसैंट्स की मांग करनी चाहिए. जिन से उसे नियमित इनकम हो सके.

वैसे समझदारी तो इसी में है कि रिश्ता बिगड़ने की तरफ बढ़े उस से पहले ही चौकन्ना हो घर को टूटने से बचा लें. अगर यह कतई मुमकिन न हो तो इन तमाम बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि तलाक के बाद बिलकुल बरबाद होने से बचा जा सके.

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