60 वर्षीय वर्माजी आजकल बड़े खुश नजर आने लगे हैं. इसी वर्ष सरकारी डाक्टर के पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने अपना एक क्लीनिक खोल लिया है जिस में एक महिला डाक्टर के साथ बैठते हैं. मेरे पति के अच्छे मित्र हैं. एक दिन जब वे घर आए तो मेरे पति ने मजाकिया अंदाज में पूछा, ‘‘क्या बात है गुरु आजकल तो बड़े खिलेखिले नजर आते हो, कैसी कट रही है रिटायर्ड जिंदगी?’’
‘‘अरे बहुत बढि़या कट रही है. अपना क्लीनिक खोल लिया है जिस में मैं और लेडी डाक्टर मिसेज गुप्ता साथसाथ बैठते हैं. क्या सुलझी हुई महिला है यार. मैं ने आज तक अपने जीवन में ऐसी महिला नहीं देखी, एकदम फिट और कुशल. अधिकांश मरीज तो उस की मीठी वाणी सुन कर ही ठीक हो जाते हैं.’’ वर्माजी अपनी डाक्टर मित्र की तारीफ के कसीदे पढ़े जा रहे थे और मैं व मेरे पति मंदमंद मुसकरा रहे थे, क्योंकि हमें पता था कि उन की पत्नी यानी मिसेज वर्मा को उन का क्लीनिक पर बैठना जरा भी पसंद नहीं था. न तुम्हें फुरसत न हमें
इसी बात को ले कर दोनों में तनातनी होती रहती थी. बच्चे बाहर होने के कारण दोनों पतिपत्नी अकेले ही हैं. वर्माजी जहां स्वयं को क्लीनिक में व्यस्त कर के बाहर ही सुख और प्रेम तलाशते हैं वहीं उन की पत्नी की अपनी भजन मंडली हैं जिस में वे सदा व्यस्त रहती हैं. दोनों की व्यस्तता का आलम यह है कि कई दिनों तक आपस में संवाद तक नहीं होता. एक बार जब उन की बेटियां विदेश से आईं तो मातापिता का परस्पर व्यवहार देख कर दंग रह गईं. दोनों ही अपनेअपने में मस्त. बेटियों को कुछ ठीक नहीं लगा सो मां से कहा, ‘‘मां यह ठीक नहीं, हम लोग इतनी दूर विदेश में रहते हैं. ऐसे में आप दोनों को एकदूसरे का खयाल रखना होगा. यदि आप कहें तो मैं पिता से बात करूं. आप दोनों ने तो अपनी अलगअलग दुनिया बसा रखी है, यहां तक कि आप लोगों की तो कई दिनों तक आपस में बात ही नहीं होती.’’