टैक्नोलौजी बूम के इस दौर में ग्लोबल विलेज में तबदील होती दुनिया में शादियां भी तेजी से ग्लोबल होती जा रही हैं. अब अंतर्धार्मिक, अंतर्जातीय, अंतर्सांस्कृतिक, अंतर्राष्ट्रीय हर तरह की जोडि़यां बन रही हैं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 5 फरवरी, 2018 को एक मामले के फैसले में साफ कह दिया है कि 2 वयस्कों की शादी में किसी तीसरे का दखल गैरकानूनी है. हालांकि विश्व के अन्य देशों में ऐसे कानून पहले से ही लागू हैं.

यों तो अमेरिका में भारतीय वर्षों से बस रहे हैं पर 1990 के बाद आए टैक्नोलौजी बूम के बाद अमेरिका में काफी संख्या में भारतीय आने लगे हैं. पुराने बसे भारतीयों की पहली पसंद की बहू तो भारतीय लड़की ही होती थी. पर 1990 के बाद अमेरिका आने वालों में से कुछ ने यहीं शादी की है. इन्हें अपनी शादी से संबंधित कुछ समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. विशेषकर जब वे दूसरे धर्म या समुदाय में शादी करना चाहते हैं.

मातापिता की मानसिकता

अमेरिका में बसे भारतीय मूल के मातापिता, जिन की शादियां दशकों पहले हो चुकी थीं, उन में अंतर्जातीय लवमैरिज विरले ही होती थीं. दूसरे धर्म में शादी तो दूर की बात है. उन की अरेंज्ड मैरिज होती थीं और ज्यादातर सफल ही होती थीं. इन में से लाखों ने सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली और कुछ ने डायमंड जुबली भी मनाई होंगी. उन की मानसिकता अभी भी वही है कि जब हम अरेंज्ड मैरिज निभा सकते हैं तो हमारे बच्चे क्यों नहीं.

उन्हें डर है कि समाज क्या कहेगा या यह परिवार पर एक कलंक सा है. उन्हें लगता है कि अगर कोई बेटा या बेटी लवमैरिज करती है तो बाकी और परिवार के छोटे बच्चों की शादी में मुश्किल होगी, वे अपने बच्चों से काफी उम्मीद लगाए रहते हैं. उन्हें यह भी डर रहता है कि इस तरह की शादी से उन की आशाएं धूमिल हो जाएंगी.

उन की समझ में नहीं आ रहा है या वे समझना ही नहीं चाहते कि जमाना काफी बदल गया है. पहले वे पत्नी पर जिस तरह का दबाव रखते थे, आजकल की पढ़ीलिखी, कमाऊ बहू उसे बरदाश्त नहीं करेगी. यहां तक कि खुद उन के बच्चे भी अब ज्यादा स्वतंत्र होना चाहते हैं और अपनी खुशी से ही जीवनसाथी चुनना चाहते हैं.

अगर मातापिता नहीं मानते तो वे बगावत पर उतर आते हैं. चूंकि वे वयस्क हैं, इसलिए वे उन की इच्छा के विरुद्ध लवमैरिज कर लेते हैं और कानून इसे मान्यता देता है. इस से मातापिता और बच्चों सभी को मानसिक क्लेश होता है, इस में दो मत नहीं हैं.

ज्यादातर मामलों में मातापिता भी आगे चल कर इन्हें स्वीकार कर लेते हैं. बच्चों की खुशी के लिए मातापिता शुरू से ही समझदारी दिखाएं तो रिश्तों में खटास की नौबत ही नहीं आएगी.

भावनात्मक लगाव में कमी

आधुनिकता और औद्योगिकीकरण के युग में अभिभावक बच्चों को अपना ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं. इसलिए बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से उन के जुड़े होने में कमी आती है और बच्चे बड़े हो कर अपने साथी में यह आत्मीयता ढूंढ़ते हैं और अमेरिका की तो बात ही कुछ और है.

जो युवा विदेश खासकर अमेरिका में बस गए हैं वे यहां के मुक्त और स्वच्छंद समाज में रहने के आदी हो गए हैं. इन के बच्चे तो बचपन से एलिमैंट्री स्कूल से ले कर कालेज की पढ़ाई और नौकरी तक अमेरिकी कल्चर में करते हैं. इन्हें अपनी पसंद में जाति, धर्म या नस्ल का कोई बंधन स्वीकार नहीं होता है.

देखा गया है कि अमेरिका में लगभग 28 से 30 प्रतिशत एशियन गैरएशियन से शादी करते हैं जिन में काफी भारतीय भी होते हैं.

मिक्स्ड मैरिज

अमेरिकी इंडियंस शिक्षा और कमाई दोनों मामलों में औसत अमेरिकी या किसी भी औसत एशियन (चीनी, जापानी, वियतनामी आबादी) से काफी ऊपर हैं. इसीलिए अगर इन्हें दूसरे धर्मों की लड़कियां पसंद करें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

अमेरिका में भारतीय मिक्स्ड

मैरिज हो रही हैं. इन जोडि़यों को सामाजिक, धार्मिक, भावनात्मक और दार्शनिक वातावरण में सामंजस्य बिठाना होता है. शुरू में एडजस्ट करने की समस्या होती है और फिर उन के होने वाले बच्चे किस धर्म से जुड़ेंगे, इस की समस्या आती है.

एक ऐसा उदाहरण देखने को मिला  जिस में एक हिंदू लड़की मुसलिम लड़के से प्यार करती थी. दोनों काफी दिनों तक एकदूसरे से मिलतेजुलते रहे थे और दोनों में प्यार भी था. पर जब शादी की बात आई तो लड़की पर लड़के के मातापिता द्वारा कई शर्तें थोपी गई थीं कि उसे मुस्लिम धर्म अपनाना होगा. होने वाले बच्चों के मुस्लिम नाम होंगे और उसे बुरका पहनना होगा, नौकरी छोड़ कर लड़के के साथ विदेश जाना होगा. बेचारी लड़की पर क्या गुजरी होगी, आप समझ सकते हैं. वह पूरी तरह टूट गई थी और काफी दिनों तक उसे डिप्रैशन में रहना पड़ा था. अंतधार्मिक प्रेम और शादी करने से पहले एक बार युवावर्ग को भी ठीक से सोचना चाहिए.

एक दूसरे मामले में एक हिंदू लड़के ने एक अफ्रीकी अमेरिकी से शादी की थी. लड़के के मातापिता को शुरू में काफी आपत्ति थी कि उन की अगली पीढ़ी भी अमेरिका में ब्लैक अमेरिकी कहलाएगी और समाज उसे निम्न स्तर का मानेगा.

एक ऐसा भी उदाहरण है जहां एक दक्षिण भारतीय कट्टर हिंदू लड़के ने अपने मातापिता की अनुमति से ईसाई धर्म की अमेरिकी लड़की से शादी की. जब लोगों ने पूछा कि ऐसा क्यों किया तो लड़के के मातापिता ने कहा, ‘‘हमारे बच्चे का जन्म ही अमेरिका में हुआ था. शुरू से वह इसी संस्कृति में पला, तो हम उस से पुराने रीतिरिवाज की उम्मीद नहीं रखते हैं.

इतना ही नहीं, वे अपनी बहू से बहुत खुश हैं. उन के दोनों पोतों में एक का नाम हिंदू और एक का क्रिश्चियन है. परिवार में दोनों धर्मों के त्योहार मनाए जाते हैं.

अमेरिका में एक तरफ  कुछ आप्रवासी भारतीय हिंदू भारतीय पत्नी को बेहतर चौइस मानते हैं. उन का कहना है कि भारतीय नारी कितनी भी पढ़ीलिखी और कमाऊ क्यों न हो,

वह पति के प्रति वफादार होती है और नौकरी करते हुए भी पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी निभाती है. वहीं दूसरी तरफ, अमेरिका में जन्मी और पलीबढ़ी भारतीय मूल की लड़कियां अमेरिकी बौयफ्रैंड को बेहतर मानती हैं. उन का मानना है कि ज्यादातर भारतीय अभी भी पुरानी सोच वाले हैं जो पत्नी और बहू को दासी  समझते हैं.

एक और अमेरिकी भारतीय हिंदू लड़की, जिस का पति अमेरिकी क्रिश्चियन है, भी अपने पति से बहुत खुश है. उस ने हिंदू और क्रिश्चियन दोनों रीतियों से शादी है. उस के बच्चों के हिंदू नाम हैं. उस का पति भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म का बहुत आदर करता है. वह भी अमेरिकन सोसाइटी की उतनी ही इज्जत करती है.

नई पीढ़ी के कुछ भारतीय बच्चों से जब पूछा कि आप के मातापिता को जब गैरभारतीय बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड पसंद नहीं हैं तो आप क्यों नहीं कोई भारतीय साथी चुनते हो? तो उन का निर्भीक उत्तर था, ‘‘उन्होंने अपनी खुशी और कैरियर के लिए देश क्यों छोड़ दिया था. भारतीय संस्कृति की इतनी चिंता थी, तो हमें भी वहीं पैदा किया होता. अब जब हमारी खुशी का मौका आया तब वे दखल दे रहे हैं. आप उन्हें समझाएं, हमें नहीं.’’

समानता की सोच

अमेरिका में रहने वाली मैरी कोल्स बताती है कि उस का हैंडसम, ब्राइट और दिलफेंक भाई स्टीव एक बंगाली युवती शेफाली से शादी कर रहा है जो कालेज में उस की जूनियर थी.

दोनों की एक फोटो दिखाते हुए मैरी ने बताया कि कैसे पुराना परिचय दोस्ती में बदला, फिर डेटिंग शुरू हुई और सालभर के भीतर ही मंगनी के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

मैरी ने बताया, स्टूडैंट वीजा के बाद 2 वर्षों के वर्क वीजा पर नौकरी करते हुए अमेरिकी नागरिक से शादी कर के ओ ग्रीनकार्ड मिल जाएगा तो वापस भारत नहीं लौटना पड़ेगा. उच्चशिक्षा के लिए अमेरिका आने वाले बहुत से युवा ऐसा करने के बाद कालांतर में अमेरिकी नागरिक बन जाते हैं.

शेफाली के निर्णय के पीछे उस के जो भी निजी कारण रहे हों, अमेरिका में भारतीय मूल के अधिकांश परिवारों की बेटियां भी अमेरिकी वर चुनती हैं अपवाद की बात अलग. लेकिन पुरुषप्रधान आम भारतीय परिवारों  की गृहिणी को ही गृहस्थी का अधिक बोझ उठाते देख कर शिक्षित और प्रोफैशनल रूप से महत्त्वाकांक्षी बेटी को अमेरिकी या अमेरिकी मानसिकता वाले युवक में वांछित जीवनसाथी दिखता है. ऐसा जीवनसाथी जो घर के हर छोटेबड़े काम में स्वेच्छा से बराबर का साझेदार होगा.

स्थायित्व की संभावना

विदेशों में बसने वाले भारतीय युवाओं को लगता है कि विदेशी पत्नी होने से वहां के समाज में उन्हें और उन की संतान को प्रतिष्ठा मिलेगी.

फूड साइंटिस्ट डा. त्रिवेणी शुक्ला और उन की पत्नी गिरिजा अमेरिका में अपने दशकों पुराने प्रवास के दौरान पूर्वी और पश्चिमी संस्कारों में सुंदर सामंजस्य स्थापित करते  रहे.

अन्य भारतीय परिवारों की तरह शुक्ला दंपती की अपने बच्चों से भी यही उम्मीद थी. उन की दोनों बेटियों और पुत्र ने अमेरिकी जीवनसाथी चुने तो मित्रों और स्वजनों में भारी आलोचना स्वाभाविक थी.

कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद बड़ी बेटी रेखा ने सोच रखा था कि वह अपनी शैक्षिक और प्रोफैशनल महत्त्वाकांक्षा को विवाह जैसे अहम निर्णय पर हावी नहीं होने देगी.

आज 2 दशकों बाद शुक्ला परिवार के शुभचिंतक इस विवाह को आदर्श मानते हैं.

पौलिसी राइटर रेणु शुक्ला और फाइनैंस डायरैक्टर एरिक जरेट््स्की अमेरिकी मुख्यधारा की 2 उच्छवल तरंगें मिल कर सशक्त प्रवाह बनीं.

उत्तर प्रदेशीय ब्राह्मण परिवार में जन्मी और पलीबढ़ी सुकन्या के संस्कार परंपराबद्ध से अधिक बौद्धिक हैं. वर्षों पहले हिंदू परिवार में जन्मे एक नवयुवक से परिचय भी हुआ था किंतु वैचारिक परिपक्वता के स्थान पर केवल धर्म और संस्कारों की समानता मेलजोल बढ़ाने का कारण न बन सकी.

पीस कोर के लिए वौलंटियर करने के दौरान एरिक जरेट्स्टकी की भी दोस्ती एक भारतीय युवती से हुई थी लेकिन वैचारिक अनुकूलता का अभाव था. यहूदी परिवार के पुत्र एरिक और ब्राह्मण पुत्री रेणु में समान बौद्धिक स्तर प्रथम आकर्षण का कारण बना और दोस्ती प्यार में बदली, प्यार विवाह में. यहूदी धर्मगुरु और ब्राह्मण पिता ने मिल कर विवाह संपन्न करवाया. दोनों के परिवार व बच्चे एकदूसरे के कल्चर को ले कर सम्मान का भाव रखते हैं.

कुछ ऐसी ही कहानी राजन शुक्ला और विक्टोरिया की है. राजन शुक्ला ने बताया कि विक्टोरिया से अधिक उन्हें उस के पिता ने प्रभावित किया था. राजन के सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण और जिंदादिली ने विक्टोरिया का दिल जीत लिया था. विवाह के निर्णय से पहले दोनों के ही मन में असंख्य सवाल थे जिन्हें दोनों ने ताक पर रख दिया.

त्रिवेणी शुक्ला हंस कर कहती हैं कि विवाह बेटेबेटियों का ही नहीं, शुक्ला विक्टर और जरेट्स्की परिवारों का भी हुआ है. जब भी सब जुटते हैं, यूनाइटेड नैशंस बन जाता है.

आंचलिक विस्कौन्सिन के प्रबुद्ध मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी जेसिका एक नामी बुकस्टोर में पार्टटाइम काम कर रही थी. भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रणेता परिवार के पुस्तकप्रेमी प्रपौत्र विष्णु की पोस्ंिटग निकटवर्ती उपनगर में थी और वह नियम से बुक्स्टोर में आता था. जेसिका से उस का परिचय हुआ और परवान चढ़ी. परिचयसूत्र में बंधने के बाद नौकरी के सिलसिले में दोनों जापान, फिनलैंड और फिर अमेरिका में कुछ वर्ष रहे.

जेसिका को आभास हुआ कि सास के हृदय में अपनी जगह बनाने के  लिए उसे पहल करनी पड़ेगी. उस की सास महिला अधिकारों की प्रबल समर्थक रहीं और भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर हुईं. जेसिका ने हर वर्ष अकेले भारत जा कर कुछ समय ससुराल में बिताने का निश्चय किया.

जेसिका के दूसरे बेटे का जन्म विष्णु की  भारत में पोस्ंिटग के दौरान हुआ जहां वे मातापिता के निकट घर ले कर रहे. छोटे पौत्र के जन्म के बाद सास ने हफ्तेभर नवप्रसूता को अपने पास रख कर देखभाल की. जेसिका को गर्व है कि उन की सास अपने साथ एक अलग तरह का संबंध जोड़ने के  लिए पूरा श्रेय उसे देती हैं. विष्णु की तरह बहुत कम पति मां और पत्नी के बीच बंटने की दुविधा से मुक्त रह पाते हैं विशेषकर तब, जब विवाह अंतर्जातीय ही नहीं, अंतर्सांस्कृतिक भी हो.

दादी में अल्जाइमर्स के लक्षण दिखने लगे तो पतिपत्नी से साहस जुटा कर बड़े बेटे को पिछले साल क्रिसमस की छुट्टियों में दादी के पास रहने के लिए अकेले भारत भेजा, इस विचार से कि बालक पीढ़ी बुजुर्गों की सुखद स्मृतियां भरसक संजो सके.

क्याक्या समस्याएं

वैसे तो अपने देश में अरेंज्ड मैरिज में शुरू में एडजस्टमैंट में कुछ दिक्कतें आती हैं, पर मिक्स्ड मैरिज में कुछ ज्यादा एडजस्टमैंट की आवश्यकता है. मातापिता को डर रहता है कि अब परिवार का संस्कार, रीतिरिवाज खतरे में पड़ जाएंगे. हर परिवार की एक अलग परंपरा, लाइफस्टाइल, संस्कार होते हैं जिन का सम्मान दोनों को करना है.

मिक्स्ड मैरिज के बाद अकसर दोस्त, परिवार और समाज से दूरी या बहिष्कार का भय रहता है. कभीकभी एकदूसरे के त्योहारों व बच्चों की परवरिश को ले कर झगड़े होने लगते हैं जो तलाक तक पहुंच जाते हैं और इन का खमियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ता है. इस के लिए एक पक्ष अगर आक्रामक है तो दूसरे पक्ष को संयम बरतना चाहिए और यथासंभव रिश्तों को टूटने से बचाना चाहिए.

मातापिता को ऐसी मिक्स्ड मैरिज को सहर्ष स्वीकार करना सीखना होगा. विश्व ग्लोबल विलेज बन रहा है तो इस के वासियों की मानसिकता भी वैश्विक होनी चाहिए. वैचारिक परिपक्वता और पारिवारिक मूल्य ही दीर्घ व सुखी दांपत्य के स्रोत हैं.

कितने निभते हैं अंतर्राष्ट्रीय विवाह

पिं्रसटन के रहने वाले जौर्ज दंपती ने 30 वर्षों से वहां रहने वाले परमविंदर भाटिया की बेटी शिवांगी से अपने बेटे सैम की शादी बड़ी धूमधाम से की. एमबीए शिवांगी ने अपनी सहूलियत से ऊपर उठ कर उन से निभाना चाहा पर वे हमेशा उस के खानपान व क्रिकेट प्रेम की आलोचना बड़ी कटुता से करते हुए उस की निजता पर प्रहार करते रहे. आखिर शिवांगी ने अलग होने का फैसला ले लिया. ऐसी भी शादी क्या, जहां उस के कल्चर का मजाक उड़ाया जाए.

न्यू जर्सी के फ्रैंकलिन स्ट्रीट में रहने वाले केरलवासी गिरीश दंपती के बड़े बेटे ने अमेरिकी लड़की से शादी तो कर ली पर कटु आलोचनाओं से बचने के लिए वह घर से थोड़ी दूर पर ही दूसरे फ्लैट में रहने लगा. लेकिन छोटा बेटा जिस ने एफ्रोअमेरिकी लड़की से शादी की थी, उन्हीं लोगों के साथ रह रहा था. एक दिन मिसेज गिरीश की अपने बहूबेटे के साथ बहुत कहासुनी हुई. बहू ने पुलिस को खबर कर दी. दोनों मांबेटे को पुलिस पकड़ कर ले गई. रातभर लौकअप में रखा. बात इतनी सी थी कि बेटेबहू ने अपने कुछ दोस्तों को बुला कर घर में पार्टी रखी थी. होहल्ला को वे बरदाश्त नहीं कर पाए और तूतूमैंमैं कर बैठे.

प्रताड़ना का पेंच

40 वर्षों से एडीसन में रहते पटेल दंपती की बेटी डा. प्रिया ने जौन से प्रेमविवाह किया था. दोनों न्यू जर्सी के प्रख्यात अस्पताल रौबर्ट वुड में साथसाथ काम करते थे. जौन का व्यवहार दूसरी महिला कर्मचारियों के साथ बड़ा ही उन्मुक्त था. जब भी प्रिया जौन को महिलाओं से दोस्ती की सीमाएं बताती, वह नाराज हो कर भारतीय संस्कृति, परंपराओं, रहनसहन, खानपान का मखौल उड़ाने पर उतर आता था. मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के बाद जब जौन शारीरिक हिंसा पर उतर आया तो प्रिया अपनी सोच पर प्रहार नहीं झेल पाई और उस से अलग हो गई. उन का 3 साल का बेटा शेरील प्रिया के पास रहता है क्योंकि वहां, भारत के विपरीत, बच्चों की गार्जियन मां ही होती है.

जमशेदपुर, झारखंड की रहने वाली वीणा पाठक की अमेरिकन बहू एलिस को 3 बच्चे, 2 लड़के और 1 लड़की एकसाथ हुए तो वह उखड़ गई. हैरिसन स्ट्रीट में रहते भारतीय परिवारों से वे जब भी, जहां भी मिलती, यह कहने से नहीं चूकती, ‘‘पता नहीं ये अमेरिकन लड़कियां खाती क्या हैं कि राक्षस की तरह 3-4 बच्चे एकसाथ पैदा कर लेती हैं. अंडा, मछली, गाय, भेड़, बकरी, सूअर सब के कलेजे खाती हैं. मुझे तो यहां पानी पीने से भी वितृष्णा होती है. पता नहीं, मेरे बेटे को यह कैसे भा गई. मैं तो जाने के दिन गिन रही हूं.’’

अमेरिका में रहने वालों के लिए यह कोई नई बात नहीं है. वहां फैशन के कपड़ों की तरह अपनी सहूलियत के अनुसार जीवनसाथी बदले जाते हैं. अलग होने की कानूनी प्रक्रिया भारत की तरह जटिल व उबाऊ नहीं है.

अगर अमेरिकन अंगरेजी में ताना मारते हैं तो भारतीय भी मुंह से हिंदीअंगरेजी दोनों में उस से बढ़ कर आग उगलने से नहीं चूकते हैं. इन की सोच के तरकश में घृणा से बुझे शब्दों के ऐसे तीर होते हैं कि मन छलनी हो जाता है. चूंकि उस देश में कानून दूसरे देशवासियों के लिए भी समान है, सो, उस का लाभ भारतीय भी कम नहीं उठाते.

सुखी वैवाहिक जीवन

इस के विपरीत कितने ही अमेरिकन परिवारों की भारतीय बहुओं के साथ अच्छी निभ रही है. पेनसिल्वेनिया के डा. शिशिर प्रसाद की बेटी मेघा थौमसन परिवार की बहू है. प्रजनन संबंधी जटिलताओं के कारण जब वह मां नहीं बन सकी तो उस ने भारत आ कर पुणे के एक अनाथालय से जुड़वां बच्चियों को गोद लिया. कानूनी कार्यवाही के लिए उसे न जाने कितनी बार भारत आना पड़ा. पति अलबर्ट, जो वहां साइंटिस्ट हैं, का पूरा साथ था कि यहां की जटिल कानूनी प्रक्रियाओं का सामना कर के यहां से बच्चियों को वह अमेरिका ले जा सकी. आज दोनों बच्चियां 18 साल की हो गई हैं और मां से ज्यादा अपने डैडी से घुलीमिली हुई हैं. इसी को नियति कहते हैं.

मिलबर्न स्ट्रीट में रहने वाले फिजिक्स के साइंटिस्ट डा. सतीश प्रसाद, जो मेघा के चाचा हैं, ने अपनी तीनों बेटियों की शादियां अमेरिकन परिवारों में की हैं. तीनों लड़कियों का वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखी है. 2 वर्षों पहले सभी भारत आए थे. वहां पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं और अपनी सुविधानुसार ही रहते हैं, लेकिन अवसरों पर वे एकदूसरे के फैमिली मैंबर से प्रेमपूर्वक अवश्य मिलते हैं.

सालों से न्यूयौर्क में रहते डा. सुधांशु की बेटी रिया ने पीटर से प्रेमविवाह किया और आज उन के 2 बच्चे हैं. हर साल क्रिसमस में पीटर का पूरा परिवार नए साल के आगमन तक न्यूयौर्क में ही अपनी बहू के यहां रह कर वहां के सैलिब्रेशंस का आनंद उठाते हैं. डाक्टर के बेटेबहू निसंतान हैं. वे रिया के दोनों बच्चों को बहुत प्यार करते हैं.

होबोकन में  रहते डा. रीता प्रसाद और डा. सुधीर प्रसाद की बहू और दामाद दोनों अमेरिकन हैं. उन से मिल कर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि 2 विपरीत सभ्यताओं और संस्कृतियों का मिलन है. सभी पेशे से डाक्टर हैं और मिलजुल कर रहते हैं. अमेरिकन और इंडियन परिवारों, जहां ऐसे रिश्ते बने हैं, से मिलने पर यही निष्कर्ष निकला कि ऐसे रिश्तों को निभाने में अमेरिकियों से ज्यादा इंडियन असहनशील हैं. अमेरिकियों को भारतीय सभ्यतासंस्कृति से जुड़े सारे रिवाज बहुत भाते हैं. वे हर त्योहार, पहनावे, खानपान का लुत्फ उठाते हुए उत्सुकता के साथ खुशी से मनाते हैं.

देसी बनाम विदेशी शादियां

जहां एक ओर भारतीय युवतियां विदेशी युवाओं से शादी कर खुश नजर आती हैं वहीं भारतीय युवाओं की शादियां विदेशी युवतियों के साथ असफल नजर आईं. अपना नाम और पता गुप्त रखने की शर्त पर गुरुग्राम के भरत (बदला हुआ नाम और स्थान) ने लिथुआनियन लड़की से विदेश में बस जाने की चाह में अपने मातापिता की मरजी से उन की उपस्थिति में शादी की, लेकिन एक साल के भीतर ही उस का तलाक हो गया जबकि उस की एक नन्ही बच्ची भी है.

दिल्ली के पश्चिमपुरी के विजय (बदला हुआ नाम और स्थान) की भी ऐसी ही कहानी है. इन्होंने भी लिथुआनियन लड़की से विदेश में बस जाने की चाह में 10 साल पहले शादी की थी. इन के 7 और 9 साल के 2 बेटे हैं, लेकिन अब वे तलाक लेना चाहते हैं.

इन दोनों भारतीयों की शादी असफल होने के कारण एकजैसे ही हैं. इन्होंने बताया कि विदेशी लड़कियां शादी के बाद न तो परिवार के लोगों को अपनाना चाहती हैं और न ही भारत आना चाहती हैं. इस के अतिरिक्त अपना पैसा, अपना खर्च, अपना काम जैसा विभाजन कर घर चलाने और उन की जीवन जीने की स्वछंद शैली से आएदिन घर में कलह का माहौल बनता है, जिस से आखिरकार तलाक की नौबत आ जाती है.

श्रुति के पिता कमलजीत सिंह चौहान से बातचीत :


आप की बेटी श्रुति चौहान कहां रहती है, उस की शिक्षा कहां से हुई थी?

हमारी बेटी इटली में रहती है. उस ने दिल्ली के गार्गी कालेज से बीए औनर्स वर्ष 2003 में किया था.

वह विदेश कैसे गई थी?

उस ने वर्ष 2003 में मिस इंडिया कौन्टैस्ट में भाग लिया था और वह कौन्टैस्ट के अंतिम चरण के 5वें नंबर पर चुनी गई थी. इन्हीं दिनों उसे फ्रांस दूतावास ने कल्चरर्स ऐक्सचेंज के तहत फ्रांस आने का निमंत्रण दिया और वह फ्रांस चली गई. उस का झुकाव शुरू से  मौडलिंग की ओर था. उसे इटली की एक कंपनी से वहां मौडलिंग का औफर मिला और वह वहां से इटली चली गई. इटली में उस ने मैनेजमैंट औफ लग्जरी गुड्स में पोस्टग्रेजुएट की शिक्षा प्राप्त की.

श्रुति की शादी किस से और कहां हुई, क्या यह शादी परिवार की सहमति से हुई है?

श्रुति की शादी इटली के मिस्टर जिवोनी कोसोलीटो से हुई है. इटली के मिलान शहर में उन दोनों की दोस्ती हुई. पहले हम उस के साथ कल्चरल डिफरैंस के चलते शादी के खिलाफ थे.

आप लोग हिंदू हैं, क्या धर्म से संबंधित कोई परेशानी श्रुति को शादी के बाद झेलनी पड़ी?

श्रुति की शादी एक रोमन कैथोलिक ईसाई परिवार में हुई है, लेकिन न तो कभी लड़के ने और न ही कभी उस के परिवार वालों ने उसे धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला. श्रुति तो दोनों धर्मों के त्योहार अपनी ससुराल वालों के साथ मनाती है. उस का एक बेटा भी है और वह इस विदेशी परिवार के बीच बेहद खुश है. मैं और मेरी पत्नी उस के पास कभी 6 महीने, कभी सालभर रह कर आते हैं.

मोयना की मां लीना से बातचीत :


आप की बेटी कहां रहती है, वह विदेश कैसे गई थी?

मेरी बेटी आजकल लंदन में है. वह उच्चशिक्षा के लिए ब्रिटेन गई थी. उस ने पहले एडनबरा से एमए (इंग्लिश) किया, फिर लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स से मीडिया ऐंड कम्युनिकेशंस की शिक्षा प्राप्त की.

मोयना की शादी किस से और कहां हुई, क्या यह शादी परिवार की सहमति से हुई है?

मोयना की शादी ईसाई परिवार के ब्रिटिशमूल के नागरिक से हुई है. शादी से पहले लंदन में एक ही कंपनी में कार्य करने के दौरान इन की दोस्ती हुई थी. फिर दोनों परिवारों की सहमति से इन की शादी हुई है.

आप लोग हिंदू हैं, क्या धर्म से संबंधित कोई परेशानी मोयना को शादी के बाद झेलनी पड़ी?

मोयना को कभी भी किसी ने धर्म बदलने के लिए दबाव नहीं डाला और न ही उस ने अपना धर्म बदला है. परिवार के सभी सदस्य छुट्टियों के दौरान आपस में मिलतेजुलते हैं. हम भी लंदन उन के परिवार से मिलने अकसर जाते हैं और उन के परिवार के लोग भी भारत हमारे पास आते रहते हैं. मोयना इस परिवार में शादी कर बेहद खुश है.

आप्रवासी भारतीय शादियों में धर्म का धंधा

आप्रवासी भारतीयों के विवाह में धर्म ने पीछा नहीं छोड़ा है. विदेशों में बसे भारतीय परिवार बड़ी संख्या में दूसरे समाजों में शादी रचा रहे हैं. भारतीय हिंदू युवकयुवतियां विदेशी ईसाई, यहूदी, मुसलिम धर्म में विवाह तो कर लेते हैं पर दोनों अपनेअपने धर्म,  आस्था को छोड़ नहीं पाते. आप्रवासी शादियों में अलगअलग सामाजिक, धार्मिक वातावरण के बावजूद धर्म की मौजूदगी देखी जा सकती है. ये परिवार धार्मिक अंधविश्वासों को नहीं छोड़ पाते.

भारतीय ही नहीं, हर देश की विवाह संस्था में धर्म एक जरूरी हिस्सा है. अकेले अमेरिका में लगभग 20 लाख प्रवासी भारतीय हिंदू आश्रमों, मंदिरों, गुरुद्वारों की जीवनशैली अपनाए हुए हैं. प्रवासी भारतीय दूसरे धर्म, संस्कृति में विवाह तो कर लेते हैं पर उन की विचारधारा, विश्वास, रीतिरिवाज, सामाजिक पद्धति के भेद दृढ़ता के साथ अपनी जगह मौजूद रहते हैं. वे इन्हें छोड़ नहीं पाते.

विदेशों में इस तरह के अंतर्धार्मिक विवाह अकसर चर्चों या धर्मस्थलों में संपन्न होते हैं और इन शादियों में पादरी, मुल्लामौलवी, पंडित की उपस्थिति जरूर रहती है. अमेरिका, यूरोप में अधिकांश विवाहों में पादरी, भारतीय पंडे, मौलवी विवाह के लिए विधिवत रूप से नियुक्त होते हैं. कुछ अन्य कानूनी अधिकारी भी होते हैं पर धर्म के इन बिचौलियों के कहने से ही विवाह की रस्में निभाई जाती हैं.

विवाह 2 व्यक्तियों के कानूनी रूप से एकसाथ रहने केलिए सामाजिक मान्यता है पर धार्मिक रीतिरिवाज से किए गए विवाह को अधिक सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है, कानूनी विवाहों को इतनी नहीं होती. प्राचीन यूनान, रोम, भारत आदि सभी सभ्य देशों में विवाह को धार्मिक कर्तव्य बताया गया है. विवाह का धार्मिक महत्त्व प्रचारित करने से ही अधिकांश समाजों में विवाह विधि धार्मिक संस्कार मानी जाती रही है.

इस तरह से आप्रवासी धर्म का धंधा चला रहे हैं. भारत से गए कुछ लोगों ने लिखा भी है कि भारत से आने वाले परिवार कुछ सामान, जरूरी चीजों के साथ रामायण, गीता साथ लाए थे यानी विदेशों में बसे भारतीय धर्म की पूरी गठरी ले गए थे और अपनी अलग धार्मिक पहचान बनाने में जुटे रहे.

हालांकि अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में विवाह के लिए कानून बहुत उदार हैं और मैरिज अफसर के पास जा कर सीधे शादी कर सकते हैं, लेकिन फिर भी विवाह करने वाले दंपती और उन के परिवार धर्म की शरण में जाना अनिवार्य समझते हैं. रोमन कैथोलिक चर्च अब तक विवाह को धार्मिक बंधन समझता है. यहूदियों की धर्मसंहिता के अनुसार, विवाह से बचने वाला व्यक्ति उन के धर्मग्रंथ के आदेशों का उल्लंघन करने के कारण हत्यारे जैसा अपराधी माना जाता है. रोमनों का भी यह विश्वास था कि परलोक में मृत पूर्वजों का सुखी रहना इस बात पर निर्भर करता है कि उन का विवाह संस्कार धार्मिक विधि से हो तथा उन की आत्मा की शांति के लिए उन्हें अपने वंशजों की प्रार्थनाएं, भोज और भेंटें यथासमय मिलती रहें. इस तरह मिश्रित विवाहों में धर्र्म का धंधा खूब कामयाब है.

धर्म का भेद बुनियादी है और इसी से समस्याएं पैदा होती हैं. जोडि़यां अलगअलग धार्मिक, सामाजिक वातावरण से आती हैं. यूथ अपनी अलग संस्कृति में रगेपगे होते हैं. विवाह के लिए वे धर्म के रिवाजों का दामन थामे रखते हैं.

शिक्षा, सूचना, प्रौद्योगिकी, विज्ञान व उद्योग के क्षेत्र में बड़ी प्रगति के बावजूद प्रवासी समाज अभी भी दकियानूस बना हुआ है. दकियानूसी आप्रवासियों के बल पर विदेश में धर्म का धंधा चलता रहता है.

दुनियाभर के प्रवासियों में भारतीय नंबर वन

करीब 3 करोड़ से भी अधिक प्रवासी भारतीय दुनिया के कोनेकोने में सफलतापूर्वक व्यवसाय व नौकरी कर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. अपनी मेहनत, अनुशासन, कानून अनुसरणता और शांत स्वभाव के चलते विदेशों में रह रहे भारतीयों को अन्य आप्रवासी समुदायों के लिए रोल मौडल की तरह पेश किया जाता है.

यह संख्या अन्य देशों के प्रवासियों के मुकाबले सब से ज्यादा है.  सब से अधिक संख्या में पंजाबी, गुजराती, बिहारी, तमिल, तेलुगू समुदायों और उत्तर प्रदेश के लोगों ने विदेशों में पलायन किया है.

आज भारतीय लोग मुख्यरूप से यूके, यूएसए, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशो में जा कर बसना पसंद कर रहे हैं. यूएसए, यूके, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, यूएई, कतर, सिंगापुर, फिजी, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, केन्या, मौरीशस, सेशल्स, मलयेशिया में फैले भारतीय प्रवासी अन्य प्रवासियों से आंकड़ों के लिहाज से सब से ऊपर हैं. सिर्फ बड़े देशों में ही नहीं, बल्कि कुक आइलैंड, किरिबाली, समोआ, पोलिनेसिया व माइक्रोनेसिप जैसे अपेक्षाकृत कम चर्चित देशों में भी भारतीय प्रवासियों की तादाद खासी है.

दुनिया के करीब 208 देश ऐसे हैं जहां भारतीय आबादी है. विदेश मंत्रालय, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, 3 करोड़ 8 लाख 40 हजार भारतीय 208 देशों के या तो स्थायी निवासी हैं या वहां रह रहे हैं. यह संख्या भारत में कई बड़े राज्यों की कुल आबादी से भी अधिक है. दिलचस्प बात तो यह है कि भारत समेत 45 देश ही ऐसे हैं जिन की कुल जनसंख्या विदेशों में बसे भारतीयों से ज्यादा है.

आकर्षक रोजगार और बेहतर भविष्य की संभावनाएं जहां ज्यादा दिखती हैं, भारतीय वहां बस जाते हैं. शायद इसीलिए सर्वाधिक यानी 86 लाख 40 हजार भारतीय पश्चिम एशियाई देशों और 60 लाख 30 हजार लोग दक्षिणपूर्व एशिया में हैं. दक्षिण एशिया के देशों में भी भारतीयों की संख्या 23 लाख 20 हजार है. दक्षिण एशिया के देशों में रहने वाले ज्यादातर भारतीय लेबर क्लास के हैं, जबकि उत्तरी अमेरिका में टैक्निकल लोगों की खासी मांग है और इस मांग को पूरा करने में 54 लाख 80 हजार भारतीय हिस्सेदारी निभा रहे हैं.

यूरोपीय देशों की बात करें तो रिपोर्ट बताती है कि उत्तरी यूरोप के देशों में करीब 19 लाख 10 हजार भारतीय हैं तो पश्चिमी यूरोप में उन की संख्या 5 लाख 40 हजार और दक्षिण यूरोप में 3 लाख 40 हजार है. पूर्वी यूरोप के देशों तक में 50 हजार भारतीय प्रवास कर रहे हैं, जबकि अफ्रीकी देशों में भी भारतीयों की संख्या 31 लाख से ज्यादा है. लैटिन अमेरिका व कैरेबियाई देशों में 12 लाख 10 हजार भारतीय हैं.

अपना देश छोड़ कर दूसरे देशों में रहने वालों में सब से ज्यादा भारतीय हैं. इस के बाद मेक्सिको, रूस, चीन, बंगलादेश, पाकिस्तान, फिलीपींस, अफगानिस्तान, यूके्रन तथा ब्रिटेन शीर्ष 10 में हैं.

एक और दिलचस्प रिपोर्ट आई है जिस के मुताबिक दुनिया के देशों में इंडियन सिर्फ आबादी में ही सब से आगे नहीं हैं बल्कि प्रवास के दौरान अपने देश में पैसा भेजने में भी अव्वल हैं. विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी भारतीयों ने वर्ष 2017 में करीब 72 अरब डौलर भारत भेजे. 64 अरब डौलर के साथ चीन के प्रवासी दूसरे स्थान और फिलीपींस (30 अरब डौलर) के साथ तीसरे?स्थान पर हैं.

यह अलग बात है कि आज भी प्रवासी भारतीयों के साथ नस्लभेद ,की घटनाएं सुनने को मिलती रहती हैं. आस्ट्रेलिया में जहां भारतीय स्टूडैंट्स को पीटा जाता है वहीं अमेरिका में रैड डौट रेसिस्ट गु्रप का काला इतिहास है.

और तो और, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारतीय आईटी पेशेवरों की राह में एच-1 वीजा की आड़ में मुश्किलें पैदा कर रहे हैं. रंग और नस्लभेद की तमाम रुकावटों को पार करते हुए भारतीय आज दुनियाभर में अगर सीना तान कर जीवनयापन कर रहे हैं, तो वह उन की अपनी मेहनत है.

  • शकुंतला सिन्हा के साथ इंदिरा मितल, सुरेश चौहान, जगदीश पंवार, राजेश कुमार और रेणु श्रीवास्तव.

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