बच्चों को सब से ज्यादा खेलना पसंद होता है और अगर उन्हें कुछ सीखना हो तो जबरन सिखाने की जगह उन्हें खेलों के जरिए सिखाने की कोशिश करनी चाहिए. इस से खेलखेल में उन्हें सीखने को भी मिल जाता है.
पिछले कई सालों से मेटल जो अमेरिका की मल्टीनैशनल खिलौने की कंपनी है, ऐसे खिलौने बना रही है जो बच्चों को नईनई चीजें सिखाने के साथ उन्हें रचनात्मक भी बनाते हैं. खिलौने जैसे टोडलर रौकर, स्मार्ट फोन व टैबलेट, फ्रूट्स व फन लर्निंग मार्केट, पियानो गेम व लर्न कंट्रोलर आदि बच्चों के बीच काफी चर्चित है.
क्यों है खिलौने मददगार
जैसेजैसे बच्चे बड़े होते हैं वे अपने आसपास के लोगों को देख कर नईनई चीजें करने के बारे में सोचते हैं. ऐसे में इस तरह के खेल उन्हें कुछ नया करने व सीखने का मौका देते हैं. जैसे उस की खिलौना गाड़ी में लगी बैल्स जो उस के चलते ही बजने लगती है, की आवाजें उस के कानों व आंखों को आकर्षित करती हैं और वह बारबार उसे करने के बारे में सोचता है. वहीं उस की खिलौना गाड़ी को उस की मां जब आगेपीछे करती है तो वह खिलखिला कर हंसने लगता है और इस के बाद खुद को अपने आप खिसकाने की कोशिश करता है. ये उस का खिलौने से सीखने का तरीका है.
वहीं स्मार्ट फोन व टैबलेट आदि के जरिए वे संख्या की गणना करना, पहेलियां सुलझाना, अक्षरों की पहचान करना और पक्षियों व जानवरों की आवाजों को पहचानना सीखते हैं. इन खिलौनों के जरीए उन की सुनने की जिज्ञासा भी बढ़ती है और वे इन आवाजों को सुन-सुन कर बोलने की भी कोशिश करते हैं. जैसे-जैसे ये खिलौने उन की दिनचर्या में आते हैं वे उसी में कुछ नया खोजने लगते हैं जो उन की कल्पनाशीलता भी बढ़ने लगती है. इन्हीं खेलों से वे बोलना, पढ़ना, डांस करना, अक्षरों व चित्रों की पहचान करना सीखते हैं. यानी बच्चे की पहली शिक्षा उस के घर से ही शुरू हो जाती है. आप को बस ध्यान रखना है कि बढ़ती उम्र के साथ उस का रूझान किस ओर बढ़ रहा है जैसे अगर वह पीले रंग को देख कर आकर्षित हो रहा है तो उसे ऐसे खिलौने दिए जाएं जो उसे रंगों की पहचान कराएं. इस तरह के खेलखिलौने बच्चों के विकास में काफी मददगार होते हैं.