राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक नामी विद्यालय में विज्ञान की परीक्षा चल रही थी. विद्यार्थियों के निरीक्षण करने के कार्य पर तैनात वरिष्ठ अध्यापिका ने देखा कि एक छात्रा पांव की तरफ पड़े अपने कुरते का सिरा बारबार उठाती है और फिर ठीक कर देती है. पीछे से उस के करीब जा कर अनुभवी अध्यापिका ने तिरछी नजर से देखा, तो पाया कि सफेद कुरते के उस सिरे के पीछे कुछ फार्मूले लिखे थे.
अध्यापिका ने चपरासी से कैंची मंगवाई और कुरते के उस सिरे को काट कर अपने पास रख लिया और छात्रा से कहा कि कल अपने अभिभावक को ले कर स्कूल आना, तभी परीक्षा में बैठने दिया जाएगा.
हालांकि अध्यापिका चाहती तो परीक्षा में नकल करते हुए उस लड़की को रंगेहाथों पकड़ कर रस्टीकेट करने यानी परीक्षा कक्ष से निकालने की प्रक्रिया अपना सकती थी, लेकिन छात्रा के भविष्य और उस की कोमल भावनाओं को देखते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया.
परीक्षा क्यों
परीक्षा प्रणाली का अर्थ है कि छात्र अपने अध्ययन के प्रति संजीदा हों. वर्षभर जो पाठ्यक्रम उन्हें पढ़ाया गया है, उस से उन्होंने कितना सीखा है, परीक्षा से इस का आकलन हो जाता है. छात्र कठिन परिश्रम व अपनी कुक्षाग्रता के आधार पर परीक्षा में अंक प्राप्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्घ करें, न कि नकल कर के.
‘योर स्कूल एज चाइल्ड’ के लेखक लारेंस कुटनर अमेरिका में एक सर्वेक्षण का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि तकरीबन 70 प्रतिशत छात्रों ने माना है कि उन्होंने अपने हाईस्कूल तक के स्कूली सफर में कभी न कभी नकल की है.
नकल क्यों करते हैं बच्चे