क्या कभी आपने सोचा है कि जो लोग हर मुश्किल घड़ी में हमारा साथ देते हैं हम उन्हें कितना समय दे पाते हैं. क्या अपने जीवन में हम उनकी अहमियत को समझते हैं अगर हां तो कितना...हमें शायद ये लगता है कि ये तो हमारे अपने हैं कहां जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे वो कब और कैसे हमसे दूर होते जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता. हमें ऐसा लगता है कि हम इनके लिए ही तो दिन रात मेहनत करते हैं काम करते हैं. शायद इसी बहाने के साथ हम एक ऐसी दुनिया की तरफ भागने लगते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं.

हम क्यों भाग रहे हैं किसके लिए भाग रहे हैं कभी गौर से सोचते भी नहीं. रोज सुबह के बाद दिन, महीने और फिर साल...बस यूं ही गुजरते रहते हैं. जबकि असल में जिंदगी का मतलब भीड़ में भागना नहीं है. हां ये सच है कि हमारे लिए काम और सक्सेस दोनों जरूरी. इसके लिए हेल्दी कंपटीशन की भावना हमारे अंदर होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम हमेशा काम को प्राथमिकता दें और परिवार को भूल जाएं. भई, जीवन में सब कुछ जरूरी है इसलिए काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. आखिर, काम के नाम पर हमेशा आपके अपनों को ही कंप्रमाइज क्यों करना पड़े.

लॉकडाउन ने दी सबक

लॉकडाउन ने सबको परिवार की अहमियत हो सिखा ही दी. साथ ही हम सभी को यह सबक भी दिया कि जिंदगी में भले एक दोस्त हो लेकिन वह सच्चा हो. सिर्फ दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ बढ़ाने वाले रिश्तों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि रियल लाइफ में कितने लोग आपका साथ देते हैं इससे फर्क पड़ता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...