24 वर्षीय नेहा जो कुछ वर्षों पहले हंसतीखेलती नजर आती थी आज ऐसे दौर से गुजर रही है कि उसे निराशा के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता. अपनी खुशहाल जिंदगी को उस ने खुद ही अपने हाथों से बरबाद किया क्योंकि उस ने अपने बौयफ्रैंड से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा रख ली थी. उसे लगता था कि वह उस की भावनाओं को समझेगा और आज नहीं तो कल जरूर समझेगा. पर वह समझा ही नहीं कि वह क्या चाहती है. दरअसल, प्यार तो मन की भावना है जिस में अपेक्षा के लिए कोई स्थान नहीं है. मगर बदलते परिवेश ने शायद हर चीज के माने बदल दिए हैं. यहां तक कि भावनाओं का चलन भी एक हाथ दे और एक हाथ ले हो गया है. इस बारे में मनोचिकित्सक प्रांजलि मल्होत्रा का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी रिश्ते में अपेक्षा उतनी ही रखनी चाहिए जितनी पूरी हो सके. अपेक्षा कभी भी ड्रीम सिचुएशन वाली नहीं होनी चाहिए. हम अगर वास्तविकता को ध्यान में रख कर किसी बात को सोचें तो कभी भी निराशा नहीं होगी. अपेक्षा में कोई वास्तविकता नहीं होती.

अपेक्षाएं अनंत

अपेक्षाएं अलगअलग व्यक्ति में अलगअलग देखने को मिलती हैं. जैसे मातापिता की बच्चों से, बच्चों की मातापिता से, दोस्तों की दोस्तों से रिश्तेदारों की रिश्तेदारों से और सहकर्मियों की सहकर्मियों से. यानी अपेक्षाएं अनंत हैं. इस बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि समाज में हर व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से अपेक्षा रहती है, लेकिन इस में यह भी होता है कि वह आमतौर पर सामने वाले व्यक्ति से अपनी सोच के अनुसार व्यवहार की अपेक्षा रखता है. लेकिन सामने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति की सोच के अनुसार व्यवहार करे, ऐसा अकसर होता नहीं. इसलिए हर व्यक्ति की अपेक्षा पूरी हो यह संभव नहीं. हर व्यक्ति के मन में रोज एक नई अपेक्षा जन्म लेती है. पर उस का वास्तविकता से कितना संबंध होता है यह कहा नहीं जा सकता. फिर भी अपेक्षा किसी भी रिश्ते की पहली सीढ़ी है. अपेक्षाओं को बोलना नहीं आता. सभी अपेक्षाएं मौन स्पर्श चाहती हैं. जैसे पति की पत्नी से केयरिंग होने की अपेक्षा, तो पेरैंट्स की बच्चों से यह अपेक्षा कि वे बुढ़ापे में उन की देखभाल करेंगे. जबकि बच्चे यह अपेक्षा करते हैं कि वे अपनी सोच और मनमरजी के अनुसार जिंदगी जिएंगे, जिस में पेरैंट्स की टोकाटोकी न हो. लेकिन व्यावहारिक जीवन में ऐसा नहीं होता कि सामने वाला आप की अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार करे या आप की सोच से इत्तफाक रखे.

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