लखनऊ के फैमिली कोर्ट के अंदर वकीलों और मुकदमा करने वालों की भीड़ लगी थी. जज साहब के कोर्ट के बाहर एक कोने में लड़का अपने पेरैंट्स और लड़की अपने पेरैंटस के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. कुछ समय में ही चपरासी ने दोनों के नाम की आवाज दी. लड़कालड़की अंदर गए.जज साहब ने पहले फाइल को उलटापलटा फिर लड़की से सवाल किया, ‘‘तुम इन के साथ क्यों नहीं रहना चाहती?’’लड़की बोली, ‘‘सर मैं भी नौकरी करती हूं. औफिस जाती हूं. वहां से वापस आ कर सारा काम करना होता है.
मैं नौकरानी लगाना चाहती हूं तो सासससुर नौकरानी के हाथ का खाना खाने से मना करते हैं. मैं ने बहुत प्रयास किया कि बात बनी रहे. मैं यह भी नहीं चाहती कि ये अपने मातापिता को हमारी वजह से छोड़े. ऐसे में अलग हो जाना ही एक रास्ता बचता है.’’जज साहब ने लड़के के पेरैंट्स को बुलवाया. उन को सम?ाया कि वे कुछ दिन बेटाबहू को अलग रहने दें. इस बीच अपनी सेवा के लिए नौकर रख लें. यह सोच लीजिए कि बेटाबहू किसी दूसरे शहर में ट्रांसफर हो गए हैं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.जज साहब की बात सुन कर पेरैंट्स राजी हो गए. धीरेधीरे सबकुछ सामान्य हो गया. इस तरह से एक घर टूटने से बच गया.ऐसे बहुत सारे मामले हैं. फैमिली कोर्ट की वकील मोनिका सिंह कहती है, ‘‘तलाक के लिए आने वाले मुकदमों में सब से बड़ी संख्या ऐसे मामलों की होती है जिन में लड़की सासससुर के साथ नहीं रहना चाहती है.’’
जरूरी है प्राइवेसी
लड़कालड़की की शादी की उम्र कानूनी रूप से भले ही 21 और 18 साल हो पर औसतन शादी की उम्र 25-30 साल हो गई है. ज्यादातर लड़कालड़की नौकरी या बिजनैस करने के बाद ही शादी करते हैं. ऐसे में उन को परिवार के साथ रहने में दिक्कत होने लगती है. कई मसलों में विवाद का कारण पति का परिवार के साथ रहना हो जाता है, जिस का खमियाजा लड़के के मातापिता को भी भुगतना पड़ता है.घरेलू हिंसा के कई मामलों में लड़के के मातापिता को जबरन घसीटा जाता है. ऐसे में बुढ़ापे में उन्हें भी कचहरी और थाने के चक्कर काटने पड़ते हैं. दूसरी बात यह भी है कि मातापिता के साथ रहते हुए बच्चे अपनी जिंदगी खुल कर नहीं जी पाते हैं.
एकदूसरे की जरूरत
इन परेशानियों से निबटने के लिए जरूरी है कि युवा कपल खुद अपनी जिम्मेदारी उठाएं. शादी के बाद वे मातापिता के साथ रहने की जगह अलगअलग रहें. जब उन्हें मातापिता की और मातापिता को उन की जरूरत हो तो एकदूसरे की मदद के लिए आ जाएं. इस से दोनों के बीच कोई बिगाड़ भी नहीं होगा और एकदूसरे की जरूरत पर खडे़ भी रहेंगे.
मातापिता को इस में बड़ा मन दिखाते हुए फैसला लेना पडे़गा और बच्चों को यह समझना होगा कि वे अलग नहीं रह रहे केवल दूर रह रहे जैसे दूसरे शहर में नौकरी करते समय अलग रहते हैं.इस में समाज को भी अपना नजरिया बदलना होगा. अलग रहने वाले लड़के और बहू को गलत नजरों से नहीं देखना चाहिए. हमारा समाज मातापिता से अलग रहने वाले बेटाबहू का सब से बड़ा आलोचक होता है. इस तरह की आलोचना से बचना चाहिए. शादी के बाद हर बेटाबहू अपनी प्राइवेसी चाहते हैं. पेरैंट्स को इस का खयाल रखते हुए इस की आजादी देनी चाहिए. इस से उन के आपसी संबंध अच्छे बने रहेंगे.
बुरे नहीं हैं दूर रहने वाले बेटेबहू
हमारे समाज में मुख्य रूप से परिवार के 2 प्रकार होते हैं, जिन में एकल परिवार और संयुक्त परिवार. एकल परिवार यानी सिंगल फैमिली का अर्थ ऐसे परिवार से होता है, जिस में सदस्यों की संख्या संयुक्त परिवार के मुकाबले कम हो. सिंगल फैमिली को पारिवारिक संरचना का सब से छोटा रूप माना जाता है. इस में सिर्फ पतिपत्नी और उन के बच्चे ही शामिल होते हैं.हमारे समाज में एकल परिवार को अच्छा नहीं माना जाता है, जबकि यह परिवार अब समय की जरूरत है. सिंगल फैमिली के लाभ और हानि दोनों ही हैं. अगर प्राइवेसी के हिसाब से देखें तो सिंगल फैमिली सब से अच्छी होती है. इस के कई लाभ हैं:
आज के इस महंगाई भरे दौर में अपनी निजी जरूरतों को पूरा कर पाना भी एक कठिन काम हो गया है. ऐसे हालात में सिंगल फैमिली ही एक बढि़या विकल्प है. सिंगल फैमिली में निजी जरूरतों को पूरा कर पाना थोड़ा सरल हो जाता है. परिवार को चलाने के लिए मातापिता दोनों ही कार्य करते हैं.परिवार में सीमित सदस्य होने के कारण कार्य का ज्यादा बो?ा भी नहीं रहता है.परिवार की सीमित जरूरतों को सरलता से पूरा कर लिया जाता है, जिस से जीवन में उल्लास बना रहता है. सिंगल फैमिली में मातापिता बच्चों को अच्छी शिक्षा के पूरे प्रयास करते हैं.
नई और आशावादी जीवनशैली
सिंगल परिवार में किसी भी महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करने के बाद शीघ्रता से निर्णय लिया जाता है. निश्चित सदस्यों के बीच आपस में बातचीत के बाद सरलता से किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है. सभी के साथ चर्चा के बाद आपस में पारिवारिक कलह होने की संभावना भी कम हो जाती है और सदस्यों में मतभेद भी कम होता है. संयुक्त परिवार में बड़ेबुजुर्ग तथा अन्य लोगों की विचारधारा काफी रूढि़वादी होती है.
संयुक्त परिवार के सदस्य किसी नई विचारधारा को अपनाने के लिए तैयार नहीं रहते हैं. लेकिन एकल परिवार में सभी लोग एक नई और आशावादी जीवनशैली को अपनाने के लिए कभी पीछे नहीं हटते हैं. एकल परिवार के सदस्यों को अपनेअपने ढंग से कार्य और विचार करने की पूरी आजादी होती है.सिंगल फैमिली सभी रूढि़वादी विचारधाराओं को पीछे छोड़ कर समाज में एक नए तरीके से अपना जीवन व्यतीत करती है. अपने जीवन में नए और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए नईनई चीजों को सीखती है. आज के समय में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें अपने कार्य के अलावा कुछ और करने का समय ही नहीं बच पाता है.
पारिवारिक कलह
ऐसे में एकल परिवार के सदस्य अपने परिवार के लोगों को भी समय नहीं दे पाते हैं. व्यस्त जीवनशैली के कारण जब प्रत्येक सदस्य अपनेअपने कार्य में बिजी रहेगा तो उसे किसी मुद्दे पर वादविवाद करने का समय ही नहीं मिलेगा.
इसी कारण मतभेद और पारिवारिक कलह की संभावनाएं एकल परिवार में बहुत हद तक घट जाती हैं. संयुक्त परिवार में परिवार के सभी सदस्यों का बो?ा केवल 1 अथवा 2 लोगों पर पड़ जाता है.ऐसी स्थिति में घर के मुखिया पर काम का दबाव तो बढ़ता ही है, साथ ही घर के अन्य सदस्य परिवार के मुखिया पर ही निर्भर रहते हैं. सिंगल फैमिली में प्रत्येक सदस्य घर चलाने के लिए अपना योगदान देता रहता है. जब माता पिता को उन के बच्चे परिश्रम करते देखते हैं, तो उन के मन में भी बड़ा हो कर आर्थिक स्वावलंबी बनने की भावना विकसित होती है.
दूर रहने वाले बेटेबहू नजदीकी बनाए रखें
अब हालात पहले जैसे नहीं रह गए हैं. बदलती लाइफस्टाइल में बुढ़ापा कम हो गया है. 70 साल तक आदमी हैल्दी जीवन जीते हैं. ऐसे में वे अपना ध्यान रखें तो स्वस्थ रह सकते हैं. इस तरह से उन्हें परिवार की बहुत जरूरत नहीं पड़ती है. अगर बेटाबहू दूर भी रहें तो बहुत दिक्कत वाली बात नहीं होती है. दूरदूर रहने से बेटे और बहू के साथ आपसी संबंध अच्छे रहने के चांस ज्यादा होते हैं.
संबंध ऐसे रखने चाहिए कि जब किसी भी तरह से परिवार की जरूरत किसी को महसूस हो तो सब साथ खडे़ हो जाएं. तब परिवार की कमी महसूस नहीं होगी.बाजारवाद के इस दौर में बहुत कुछ पैसे की बदौलत मिलने लगा है. किसी भी तरह की खरीदारी करने के लिए किसी के साथ या बाजार जाने की जरूरत नहीं होती है. कई बेटाबहू ऐसे हैं जो बाहर शहर में रहते हैं. कई तो विदेश में रहते हुए भी वीडियो और दूसरे माध्यमों से एकदूसरे से इतने जुडे़ होते हैं जितने कि पास रह रहे बेटेबहू भी नहीं जुड़ पाते हैं. औनलाइन जरूरत का सामान भेज देते हैं. किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो भी मैनेज कर देते हैं.
कभी खुद मिलने चले आते हैं तो कभी पेरैंट्स को बुला लेते हैं.दूर या पास रहना कोई बड़ी बात नहीं होती है. जरूरी यह है कि दिल से बच्चे आप के साथ जुडे़ रहें. समय के साथ परिवर्तित होना अति आवश्यक है. सिंगल फैमिली या अलग रहने वाले बेटेबहू को गलत समझना ठीक नहीं होता है. फैस्टिवल पर पेरैंट्स के साथ रहें. उन के साथ मजे करें. फैस्टिवल में अकेले रहना ठीक नहीं होता. परिवार के साथ खुशियां मनाएं. अलगअलग रहते हुए भी अकेलापन महसूस न हो इस का ध्यान रखें.
कठिन परिस्थितियों में पेरैंट्स के साथ खड़े रहें.आर्थिक और भावनात्मक सहायता देने में पीछे न हटेंकोई भी बड़ा फैसला करना हो तो पेरैंट्स की राय जरूर लें. उन की राय बिना किसी स्वार्थ के होती है. अलग रहते हुए भी कोई ऐसे काम न करें जो उचित न हो. मातापिता अपने बच्चों का पालनपोषण इसीलिए करते हैं कि उन के बच्चे बड़े हो कर वृद्धावस्था में उन्हें सहारा दें. उन से दूर भले ही रहना पडे़ पर उन्हें अकेला न छोड़ें खासतौर पर जब मातापिता में से कोई एक हो. तब बहुत ध्यान रखें. तब अलग रहने पर सवाल नहीं उठेंगे.