एक शाम को सैर पर निकली तो पार्क के एक कोने में कुछ नन्हेंमुन्हे बच्चे आपस में बातें कर रहे थे. उन की नटखट हरकतें और मीठी आवाज ने बरबस ही मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित कर लिया.
एक बच्चा कह रहा था, ‘फ्रैंड्स, मेरी दादी के मोबाइल में ढेर सारे गेम्स हैं. जब मैं बिना नखरे किए सारा दूध पी लेता हूं तो दादी मुझे अपने मोबाइल में गेम्स खेलने देती हैं.’
दूसरे ने कहा, ‘मेरी नानी मुझे जब तक 5-6 कहानियां नहीं सुनाती हैं, मैं तो सोता ही नहीं हूं.’
तभी एक प्यारी सी बच्ची इतराते हुए बोल पड़ी, ‘अरे, तेरी दादी के पास तो सिर्फ गेम्स हैं पर मेरी दादी के मोबाइल में तो गेम्स के साथसाथ ढेर सारे गाने भी हैं. जब मैं बोर होने लगती हूं तो दादी गाने लगा देती हैं और मैं डांस करने लग जाती हूं. अगर उस समय दादाजी होते हैं तो वे अपने मोबाइल से मेरा डांसिंग पोज में फोटो ले कर पूरे घर को दिखाते हैं. तब बहुत मजा आता है.’
उन की भोलीभाली बातों ने सहसा मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी जब हम चारों भाईबहन दादीनानी की कहानियां सुनते हुए मीठी नींद में सो जाया करते थे. उन कहानियों को सुनते समय हम उन से न जाने कितने ऊलजलूल तरह के प्रश्न किया करते थे तथा उन प्रश्नों के जवाब भी हमें बड़े प्यार से मिल जाया करते थे. उस जमाने में शायद बचपन में हर मर्ज की एक दवा नजर आती थी, अपनी समस्या को ग्रैंडपेरैंट्स के साथ शेयर करना. पर कभीकभी दादाजी से थोड़ा डर भी लगता था.