नन्ही खुशी उदास बैठी थी. आज स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेते समय वह गिर पड़ी थी. एक तो दौड़ से बाहर हो गई दूसरे सभी दोस्तों ने उस का खूब मजाक उड़ाया.

‘‘अरे मेरी परी, तू तो मेरी रानी बेटी है. बहादुर बच्चे ऐसे हिम्मत हार कर नहीं बैठते. अगली बार तुम पक्का फर्स्ट आओगी, मुझे पूरा विश्वास है,’’ मां के इन चंद प्यारे बोलों ने उस पर जादू सा असर किया और वह उछलतीकूदती फिर चल पड़ी बाहर खेलने.

15 वर्षीय होनहार छात्र मयंक अपना 10वीं कक्षा का रिजल्ट आने पर बहुत दुखी था. उस के उम्मीद के  मुताबिक 90% से कम मार्क्स आए थे. अपने पेरैंट्स और टीचर्स का प्यारा आज अकेले बैठे आंसू बहा रहा था. उसे अपने मम्मीपापा की आशाओं पर पूरा न उतर पाने का बहुत दुख था. वह हताशा के भंवर में पूरी तरह डूब चुका था.

तभी उस के दादाजी का उस के घर आना हुआ. अपने कमरे में उदास बैठे मयंक के कंधे पर जैसे ही दादाजी ने हाथ रखा वह चौंक गया. उस का मुरझाया चेहरा देख दादाजी ने बड़े प्यार से कारण पूछा, तो अपने दादा से लिपट कर रोने लगा और बोला कि उस जैसे हारे हुए लड़के को जिंदगी जीने का हक नहीं है. वह मर जाना चाहता है.

मासूम मयंक के मुंह से ऐसी बातें सुन कर दादाजी को बहुत हैरानी हुई. फिर बोले, ‘‘अरे तेरे 82% मार्क्स सुन कर ही तो मैं तुझे बधाईर् देने आया हूं और तू इस तरह की बातें कर रहा है. बेटा तूने बहुत अच्छे नंबर लिए हैं. हम सभी को तुझ पर गर्व है. आइंदा कभी ऐसे विचार मन में मत लाना,’’ कह कर दादाजी ने उसे गले से लगा लिया.

दादाजी की इतनी सी तारीफ ने मयंक में  एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया. वह जिंदगी को सकारात्मक तरीके से जीने लगा. अगर उस वक्त मयंक अपने दादाजी से नहीं मिला होता तो निराशा और हताशा की उस स्थिति में शायद आत्महत्या ही कर लेता.

 ‘‘अरे मां, भाभी की बात का क्या बुरा मानना. वे दूसरे घर से आई हैं. आप को अभी अच्छी तरह जानती नहीं. मुझे पूरा विश्वास है धीरेधीरे आप उन्हें सब सिखा देंगी. मेरी मां हैं ही इतनी प्यारी, वे सब से तालमेल बैठा लेती हैं,’’ स्नेहा द्वारा कहे गए तारीफ के चंद शब्दों ने उस की मां अलका का खोया विश्वास वापस ला दिया.

इन सभी स्थितियों में जरा सी तारीफ या प्रशंसा भरे बोलों से इनसान में सकारात्मक बदलाव आते देखा. उम्र बचपन की हो या फिर 56 की अथवा युवावस्था आखिर प्रोत्साहन सभी को चाहिए. अपनों के स्नेह में पगे दो बोल व्यक्तिविशेष पर जादू सा असर करते हैं.

आज आधुनिकतम सुविधाओं और तकनीकों से लैस हमारा जीवन बहुत व्यस्त तथा प्रतिस्पर्धी हो चुका है. फलस्वरूप हमें कई बार बेहद जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. इस के चलते हम अत्यधिक तनाव में जीने लगते हैं और निराशावादी हो जाते हैं. यदि कोई कार्य हमारे मनमुताबिक नहीं होता या किसी कार्य में मेहनत करने के बाद भी हमें आशातीत सफलता नहीं मिलती तो जीवन के प्रति हम उदासीन हो जाते हैं और कई बार यह उदासीनता आगे बढ़ कर विकराल रूप धारण कर लेती है, जो आत्महत्या जैसे दुखांत परिणाम के रूप में सामने आती है.

होता यों है कि जब नकारात्मकता हम पर पूरी तरह हावी हो जाती है, तो जिंदगी के प्रति हमारी सोच और नजरिया भी पूरी तरह बदल जाता है. अचानक जिंदगी से सभी खुशियां रूठी हुई सी लगती हैं. चारों ओर दुख व निराशा के बादल मंडराते से नजर आते हैं. दुखी मन नकारात्मक विचारों के प्रवाह को जन्म देता है. ये नकारात्मकता हमारे आसपास निराशा की एक ऐसी चादर बुन देती है, जिस से एक अनजाना सा भय पैदा हो जाता है और अपने आसपास की कोई भी खुशी हमें नजर नहीं आती. हम कुछ भी करने में अपनेआप को असमर्थ पाते हैं.

हम सभी के जीवन में कभी न कभी ऐसा एक पल जरूर आता है जब हम अपनेआप को अकेला महसूस करते हैं. खुद को दुनिया का सब से बेकार इनसान समझते हैं, जिस की जरूरत किसी को नहीं है. उस वक्त किसी के द्वारा की गई जरा सी तारीफ हमारे भीतर एक नया जोश भर देती है. प्रशंसा में कहे उस के शब्द संजीवनी बूटी का काम करते हैं, जिस से हमारे भीतर का डर नष्ट हो जाता है तथा आशा की किरण स्फुटित होती दिखाई देती है.

अपनों को जरा सा तारीफ का तोहफा दे कर हम उन्हें अवसाद में जाने से बचा सकते हैं. जिंदगी बहुमूल्य होती है, पर अवसाद में घिरा व्यक्ति इतना दुखी व व्यथित होता है कि उसे जीवन के दूसरे सकारात्मक पहलू दिखाई ही नहीं देते. वक्त के थपेड़ों से वह इतना भयक्रांत हो जाता है कि उसे जिंदगी जीने की तुलना में मौत को गले लगाना अधिक सरल लगता है.

कई लोगों को लगता है कि सिर्फ छोटे बच्चों को ही तारीफ या प्रोत्साहन की जरूरत होती है, जबकि सचाई यह है कि तारीफ और प्रोत्साहन किसी उम्र विशेष से संबंधित नहीं है, बल्कि हर उम्र के इनसान को इस की दरकार होती है. इस का सीधा सा कारण है कि हम कितने भी बड़े हो जाएं मन में भावनाएं ज्यों की त्यों ही रहती हैं. हां, बड़े हो कर हम कुछ हद तक उन पर काबू रखना अवश्य सीख जाते हैं. लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में जब हम अपने को कमजोर व अकेला महसूस करते हैं तब हमारी तारीफ में कहे गए किसी के दो शब्द भी हमारी तकलीफ व तनाव को कम करने के लिए काफी होते हैं. उस से अवसाद की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है. यहां तक कि भयंकर तनाव के बीच आत्महत्या करने का मन बना चुका व्यक्ति भी अगर किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आ जाए जो उसे पौजिटिव ऐनर्जी दे, तो वह बड़ी आसानी से उक्त विचार को त्याग सकता है.

सारिका के केस में ऐसा ही हुआ. 17 वर्षीय सारिका आधुनिक खयालात की मस्त बिंदास लड़की थी. उस के इसी खुले व्यवहार का फायदा उठा कर उस के क्लासमेट अंकित ने पहले तो उस से दोस्ती की और फिर उसी दोस्ती को प्यार का जामा पहना कर उसे फुसला कर उस से प्रेम संबंध बनाए. यही नहीं अपने बीच बने संबंधों का वीडियो बना कर उस ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. हर समय हंसतीखिलखिलाती रहने वाली सारिका अचानक बुझीबुझी व उदास सी रहने लगी.

सारिका के स्वभाव में अचानक हुआ यह परिवर्तन उस की मां की अनुभवी आंखों से छिप न सका. उन के बहुत पूछने पर भी सारिका उन्हें उस हादसे के बारे में बताने की हिम्मत न जुटा सकी. ऐसे में उस की समझदार मां ने उस की तारीफ कर न सिर्फ अपनी बेटी का हौसला बढ़ाया, बल्कि उसे विश्वास भी दिलाया कि जिंदगी के हर कदम, हर परेशानी में वे उस के साथ खड़ी हैं.

मां से जरा सा स्नेह और सहारा मिलने पर सारिका बच्चों की तरह फफक पड़ी और उस ने अपनी मां को सारी हकीकत बता दी. उस की मां यह जान कर और भी हैरत से भर उठीं जब उन्हें सारिका ने बताया कि कोई और रास्ता न निकलता देख इस जिल्लत से तंग आ कर वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सोच रही है.

तारीफ करनी होगी सारिका की मां की जिन्होंने अपनी बेटी पर नजर रख कर उसे आत्महत्या जैसा संगीन जुर्म करने से बचा लिया. और फिर अपनी कोशिशों से कुसूरवार अंकित को न सिर्फ सजा दिलवाई, बल्कि सारिका का खोया आत्मविश्वास भी लौटाया.

प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. सुनील मित्तल के अनुसार हमारे देश में आज डिप्रैशन इतना आम हो चुका है कि लोग इसे बीमारी के तौर पर नहीं लेते. लेकिन समस्या अगर वाकई बड़ी हो तो काउंसलर के पास पीडि़त को ले जाने में ही भलाई होती है अन्यथा नतीजा घातक सिद्ध हो सकता है.

इसी बारे में मनोचिकित्सक डा. समीर कलानी कहते हैं कि आज के आधुनिक जीवन की जटिलताओं एवं सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के कारण डिप्रैशन की स्थितियों में तेजी आई है. अत: आज जरूरत इस बात की है कि हम अपनों की समस्याओं को समझने के तौरतरीकों व दृष्टिकोण में बदलाव लाएं. साथ ही अपनों की तारीफ में कुछ बातें कह उन के साथ मस्ती के कुछ पल अवश्य बिताएं.

आप को जान कर आश्चर्य होगा कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में तो हर साल 6 फरवरी का दिन तारीफ के लिए ही होता है. उन लोगों द्वारा यह दिन एक विशेष अंदाज में मनाया जाता है. इस दिन लोग अपनों को बाकायदा ग्रीटिंग कार्ड्स भेंट कर उन की तारीफ करते हैं. इतना ही नहीं कार्यालयों में भी इस दिन ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि अधिकारी व अधीनस्थों के बीच संवाद और विश्वास की नींव मजबूत हो सके. तो अब किसी की तारीफ करने में कंजूसी क्यों? हम सब भी आज से ही बल्कि अभी से देना शुरू कर सकते हैं, अपनों को तारीफ का अनमोल तोहफा.

– पूनम पाठक

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...