जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारे लिए उस इंसान के बगैर जीना मुश्किल सा हो जाता है. क्योंकि वो नुकसान इतना बड़ा होता है की उसकी भरपाई दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं कर सकती. पर इससे भी बड़ी मुश्किल तब जन्म लेती है जब किसी बच्चे के माता पिता की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाए.
वयस्कों की तरह, बच्चे भी उसी भयावह दुख की प्रक्रिया से गुजरते हैं. और जैसे माता-पिता के होने के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, वैसे ही अपने माता पिता के बगैर बच्चे कैसे प्रतिक्रिया करेंगे,इसके लिए भी कोई नियम पुस्तिका नहीं है.
बच्चे कभी-कभी बहुत दुखी और परेशान हो सकते हैं, कभी-कभी वे शरारती या क्रोधित हो सकते हैं, और हो सकता है की आपको कभी-कभी यह प्रतीत हो की वो भूल गए हैं. लेकिन सच कहूँ तो वे भूलते नहीं है ,एक बच्चा शायद ही कभी मौखिक रूप से अपने दुख को व्यक्त कर सकता है. इसी कारण से कम उम्र के बच्चे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो रहे है.
अवसाद के संकेतों को कैसे पहचाने-
बच्चे और वयस्कों में अवसाद के समान लक्षण हो सकते हैं: हो सकता है वो दूसरों से बात करने से कतराएँ,हो सकता है वो अकेला रहना चाहे, या ये भी हो सकता है की वो कुछ भी नहीं करना चाहे .
वैसे तो यह दु: ख की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा हो सकता है. लेकिन अगर यह लंबे समय तक चलता है तो आप मनोचिक्त्सक से कन्सल्ट कर सकते है.
बच्चो को इस अवसाद से बचाने के लिए ये समझना जरूरी है की बच्चे और किशोर मृत्यु को कैसे देखते है?