खाने की मेज सिर्फ रोटी, भाजी, खीरपूड़ी आदि का संगम नहीं है, बल्कि बातचीत और गिलेशिकवे सुधारने की एक जिंदा इकाई भी है. यहां पर हर सदस्य को स्वाद और संवाद दोनों ही मिलते हैं.
किसी ने खूब कहा भी है कि परिवार ही वह पहली पाठशाला है जहां जीवन का हर छोटाबड़ा सबक सीखा जा सकता है. इसलिए जब भी अवसर मिले परिवार के साथ ही बैठना चाहिए. इस का सब से आसान उपाय यही है कि भोजन ग्रहण करते समय सब साथ ही बैठें.
अनमोल पल
जब पूरा परिवार साथ बैठ कर भोजन का आनंद लेता है तो उस समय हर पल अनमोल होता है. मनोवैज्ञानिक इसे गुणवत्ता का समय मानते हैं.साथसाथ भोजन करना कई मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
आजकल सभी अपने कामों और जिंदगी में इतना बिजी रहते हैं कि एकसाथ रहते हुए भी परिवार के साथ बैठने का समय तक नहीं मिल पाता है. इसी वजह से परिवार के साथ बैठ कर भोजन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, लेकिन ऐसा करना बच्चोंे और परिवार के लिए बहुत जरूरी है.
परिवार के साथ खाना खाने से आपस में दोस्ताना संबंध बनता है, स्वानस्य्वा की तरफ से लापरवाही में कमी आती है, शांतिपूर्ण विचार मन में पनपते हैं और मानसिक स्तर जैसे उदासी, ऊब, बेचैनी, घबराहट आदि महसूस नहीं होते.
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बेहतर चलन है
अगर कुछ ऐसे पारिवारिक मसले आ गए हैं जिन का हल नहीं निकल रहा है तो साथ खाने का चलन जरूर शुरू करें. यह बहुत अच्छा तरीका है, फैमिली यूनिट बनाने का और बच्चों के साथ अपने रिश्ते सुधारने का.
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